विज्ञापनों में महिलाएं
विज्ञापनों का मकसद सामान बेचना होता है. इसके लिए खरीदार को टार्गेट किया जाता है. कभी महिलाएं खुद टार्गेट होती हैं, तो कभी उनकी वजह से पुरुष कोई खास सामान खरीदने को प्रेरित होते हैं.
अधिकतम असर
विज्ञापन तैयार करने वालों का काम होता है अधिकतम असर पैदा करना. इसके लिए हर तरीका जायज माना जाता है. अधिकतम असर का मतलब है असर की गहराई और गहनता.
हाउसवाइफ की छवि
विज्ञापनों में महिलाओं की छवि जर्मनी सहित पूरी दुनिया में पिछले दशकों में काफी बदली है. जर्मनी में पहले महिलाओं को घर गृहस्थी चलाने वाली पोशाक में दिखाया जाता था.
कामयाबी के सबूत
बाजार में कामयाबी सेक्स से संबंधित प्रचार के जरिए मिलती है, अब इसके सबूत हैं. इसलिए विज्ञापनों में उसका इस्तेमाल पहले से कहीं ज्यादा हो रहा है.
सेक्स सिंबल
समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनकी छवि भी बदली है. आधुनिक विज्ञापनों में महिलाओं को सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया जाता है.
बदली भूमिका
दुनिया भर में समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनको दिखाए जाने का तरीका भी बदला है. लेकिन पूरी दुनिया में विज्ञापनों में उनका इस्तेमाल जारी है.
कामकाजी महिलाएं
अभी भी करियर बनाने वाली महिलाएं ज्यादातर जगहों पर एक छोटा सा वर्ग है. इसलिए पश्चिमी देशों में भी उन्हें विज्ञापनों में कम ही दिखाया जाता है. विज्ञापनों में भेदभाव बड़ी समस्या है.
आम महिलाएं
मीडिया में दिखने वाली तस्वीरें समाज का प्रतिबिंब नहीं होती. फिल्मों या टेलिविजन पर दिखाई जाने वाली महिलाएं आम जिंदगी में दिखने वाली महिलाओं से अलग दिखती हैं.
सेक्सिज्म के आरोप
विज्ञापनों में अक्सर महिलाओं के शरीर के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं. और दुनिया में हर कहीं इनका अलग अलग तरीके से विरोध भी हो रहा है.