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कानून का राज्य

विकास दुबे के मुठभेड़ में मारे जाने पर उठ रहे हैं सवाल

१० जुलाई २०२०

आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपी विकास दुबे शुक्रवार सुबह उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों मारा गया. पुलिस इसे मुठभेड़ बता रही है, लेकिन इस तथाकथित मुठभेड़ पर कई सवाल उठ रहे हैं.

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UP-Polizistenmörder Vikas Dudey in MP verhaftet
तस्वीर: IANS

पुलिस का कहना है कि विकास दुबे को जिस गाड़ी में मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा था वो रास्ते में पलट गई थी. मौके का फायदा उठा कर विकास ने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन कर भागने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस की "जवाबी कार्रवाई" में उसे गोली लग गई और अस्पताल के रास्ते में उसकी मौत हो गई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में तीन जुलाई की रात विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस टीम के आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे, जिनकी हत्या का आरोप विकास पर लगा था. उसके बाद से विकास छह दिनों तक फरार रहा जिस बीच खबरें आती रहीं कि उसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कई जगह देखा गया है. गुरूवार नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में उसे मध्य प्रदेश पुलिस ने पकड़ कर बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस को सौंप दिया.

उत्तर प्रदेश पुलिस विकास को वापस कानपुर ला रही थी और रास्ते में ही यह हादसा हुआ. पुलिस इसे मुठभेड़ बता रही है, लेकिन इस तथाकथित मुठभेड़ पर कई सवाल उठ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि विकास जब से पकड़ा गया था तब से उसने भागने की कोई भी कोशिश नहीं की थी, फिर अचानक वो पुलिस की पूरी एक टीम के बीच बंदूक छीन कर भागने की कोशिश क्यों करेगा.

इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास को कानपुर लाने के लिए ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं ली थी. जानकार यह भी कह रहे हैं कि इस मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि विकास पुलिस, माफिया और राजनीतिक नेताओं की मिली भगत के तंत्र का एक बड़ा गवाह था और कानूनी कार्रवाई के तहत उस से इस तंत्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की जा सकती थी. अब उसके मारे जाने जाने से वो सारे रहस्य रहस्य ही रह जाएंगे.

पहले भी हुई है इस तरह की 'मुठभेड़'

दिसंबर 2019 में आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में एक 26-वर्षीय महिला के सामूहिक बलात्कार और हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किए गए चार आरोपी भी एक पुलिस "मुठभेड़" में मारे गए थे. पुलिस का कहना था कि जुर्म के दृश्य की फिर से रचना करने के लिए उन्हें मौके पर ले जाया गया था, जहां उन्होंने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन कर भागने की कोशिश की और पुलिस की "जवाबी कार्रवार" में मारे गए.

भारत में इस तरह संदिग्ध हालत में पुलिस के साथ मुठभेड़ में लोगों का मारे जाना एक बड़ी समस्या है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 2017-18 में पूरे देश में पुलिस के साथ मुठभेड़ के कम से कम 155 मामले दर्ज हुए थे. इनमें से सबसे ज्यादा मामले, कुल 44, उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए थे.

अगर 2014 से 2018 के बीच चार साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश से ज्यादा गंभीर स्थिति कुछ और राज्यों में उभर कर आती है. इन चार सालों में पूरे देश में पुलिस द्वारा मुठभेड़ के 849 मामले दर्ज हुए जिनमें 232 मामलों के साथ छत्तीसगढ़ सबसे आगे है, 195 मामलों के साथ असम दूसरे नंबर पर है और 81 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है.

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