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वायरस और बैक्टीरिया को खत्म करेगा सुदूर पराबैंगनी प्रकाश

क्लेयर रोठ
२ अप्रैल २०२२

रिसर्चरों का कहना है कि उनके सुदूर पराबैंगनी प्रकाश वाले लैंप, वायरस और बैक्टीरिया को मिनटों में खत्म कर देते हैं. उनके मुताबिक ये लैंप सुरक्षित हैं और जिंदगियां बचाने में काम आएंगे.

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पराबैगनी किरणों का इस्तेमाल दांत के डॉक्टर करते रहे हैं
पराबैगनी किरणों का इस्तेमाल दांत के डॉक्टर करते रहे हैंतस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance

अल्ट्रावायलट लाइट यानी पराबैंगनी प्रकाश- खासकर यूवीसी (अल्ट्रावायलट सी), कीटाणुओं को खत्म करने में अव्वल है. अस्पतालों में साफ-सफाई के लिए ये एक टिकाऊ और मजबूत उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जाता है. पीने के पानी को साफ करने, हवा को शुद्ध करने और सतहों को संक्रमण से मुक्त करने में भी ये काम आता है. हालांकि आमतौर पर इसे इंसानो के प्रत्यक्ष संपर्क से काफी दूर रखा जाता है.

घरों के अंदर- खासकर बहुत सारे लोगों की आवाजाही या रहने की जगहों पर, जैसे स्कूल, जिम, हवाई अड्डों और बड़े दफ्तरों में, इसे सुरक्षित इस्तेमाल के लायक बनाना एक चुनौती है. शोधकर्ता वर्षों से इस आइडिया पर काम करते आ रहे हैं.

हालांकि ये वही आइडिया नहीं है जो कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सुझाया था.

ट्रंप का ख्याल था कि क्या लोगों को डिसइंफेक्टेंट यानी कीटाणुनाशक का इंजेक्शन लगाया जा सकता है या अपने शरीर को हम सीधे पराबैंगनी प्रकाश के रूबरू रख सकते हैं. विज्ञान कहता है कि ये ख्याल अच्छा नहीं है. पराबैंगनी प्रकाश खतरनाक हो सकता है. सीधे सामने पड़ जायें तो इससे स्वास्थ्य की कई गंभीर विकटताएं खड़ी हो सकती हैं.

हालांकि एक नया अध्ययन यह बता रहा है कि कोविड जैसे वायरसों या बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए रिसर्चरों ने  इस पराबैंगनी प्रकाश की एक किस्म के उपयोग का सुरक्षित तरीका शायद ढूंढ लिया है.

डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि पराबैंगनी किरणों को शरीर में डाल कर कोरोना के वायरस को मार देंगे
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि पराबैंगनी किरणों को शरीर में डाल कर कोरोना के वायरस को मार देंगेतस्वीर: John Raoux/AP/picture alliance

तीन प्रकार का पराबैंगनी प्रकाश

हम लोग रोजाना सूरज से मिलने वाले पराबैंगनी प्रकाश को ग्रहण करते हैं. यूवीसी पराबैंगनी प्रकाश का एक प्रकार है.

तीन प्रकार के पराबैंगनी प्रकाश हैं- यूवीए, यूवीबी और यूवीसी. तीनों प्रकार, त्वचा और आंखो को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

यूवीए से पृथ्वी के वायुमंडल का अधिकांश पराबैंगनी विकिरण बनता है. यह धरती की सतह तक पहुंचता है और मिसाल के लिए, त्वचा में झुर्रियों से लेकर कैंसर तक का कारण बन सकता है. मोतियाबिंद भी इससे हो सकता है.

यूवीबी किरणें त्वचा की ऊपरी परत को जला देती हैं. उनसे हमारी देह धूप से तप या झुलस जाती है.

यूवीसी किरणें तीनों में सबसे ज्यादा खतरनाक होती हैं. लेकिन वायुमंडल प्राकृतिक यूवीसी को पूरी तरह सोख लेता है लिहाजा बाहर हम इससे महफूज रह पाते हैं.

यूवीसी पर छोटे स्तर का शोध

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में रेडियोलॉजिकल रिसर्च सेंटर के निदेशक डेविड ब्रेनर, इंसानी हदों में वायरसों को खत्म कर देने की यूवीसी प्रौद्योगिकी की सामर्थ्य के बारे में अध्ययन कर रहे हैं.

ब्रेनर ने पाया कि यूं यूवीसी प्रकाश लोगों के लिए हानिकारक होता है लेकिन उसका एक रूप ऐसा भी है जो हमारी त्वचा या आंखों को नुकसान पहुंचाए बगैर वायरसों को खत्म कर सकता है- इसी रूप या किस्म को कहा जाता है- फार-यूवीसी यानी सुदूर-पराबैंगनी सी प्रकाश. ब्रेनर की टीम ने इस आधार पर अपने परीक्षणों से एक फार-यूवीसी लैंप तैयार किया है.

सुदूर पराबैंगनी किरणें अदृश्य होती हैं लेकिन तस्वीर में आप लैंपशेड के पास बॉक्स देख सकते हैं जिनसे ये किरणें निकलती हैं.
सुदूर पराबैंगनी किरणें अदृश्य होती हैं लेकिन तस्वीर में आप लैंपशेड के पास बॉक्स देख सकते हैं जिनसे ये किरणें निकलती हैं. तस्वीर: Club Cafe Boston / Edward Nardell

यूवीसी प्रकाश से नुकसान तब होता है जब कि वो त्वचा और आंखों की सतह में बहुत अंदर तक जा सकने में समर्थ हो जाए और शरीर की अंदरूनी जीवित कोशिकाओं तक जा पहुंचे.

लेकिन त्वचा और आंखों की बाहरी सतहें, सुदूर-यूवीसी प्रकाश को सोख लेती हैं. नतीजतन सुदूर-यूवीसी अंदरूनी जीवित कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता है लिहाजा किसी नुकसान के काबिल भी नहीं रहता.

शोधकर्ताओं ने अपनी थ्योरी को चूहों पर टेस्ट किया है और लगता है कि वो काम कर गई है.

इंसानों पर भी परीक्षण से जुड़े दो छोटे अध्ययन हुए हैं. उनसे भी दिखता है कि छोटी अवधि में इंसानी एक्सपोजर के लिए फार-यूवीसी सुरक्षित है. लेकिन मनुष्यों पर लंबी अवधि के अध्ययन और 20 लोगों से ज्यादा बड़े समूहों के बीच हुए अध्ययन के नतीजे अभी सामने नहीं आए हैं. 

सुदूर-पराबैंगनी सी प्रकाश वाले लैंप

ब्रेनर टी टीम ने मार्च में प्रकाशित एक अध्ययन में दिखाया है कि उनका तैयार किया फार-यूवीसी लैंप एक बड़े आकार वाले कमरों में बैक्टीरिया को खत्म कर देता है.

ऐसे पांच लैंपों का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि पांच मिनट से भी कम समय में कमरे के भीतर हवा में पैदा होने वाले रोगाणुओं के स्तर में 98 फीसदी से ज्यादा की कमी आ गई थी.

शोधकर्ताओं ने कमरे में बैक्टीरिया की एक लगातार फुहार छोड़ी, फिर एक घंटे तक उसे स्थिर होने दिया. उसके बाद फार-यूवीसी लैंप ऑन कर दिए. अगले 50 मिनट में उन्होंने हवा की माप ली और धीमे, तेज, तीखे प्रकाश का अलग अलग परीक्षण किया.

उनके मुताबिक, लैंपों से आते धीमे प्रकाश में भी 92 फीसदी बैक्टीरिया, 15 मिनट में ही खत्म हो गए.

एक बड़े आकार के कमरे में प्रौद्योगिकी को परखने वाला ये पहला अध्ययन है. सुदूर यूवीसी प्रकाश को लेकर पूर्व के प्रयोग, लैबोरेटरी में ही हुए हैं.

अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानक

पराबैंगनी विकिरण को वेवलैंथ यानी तरंग दैर्ध्य में मापा जाता है और उसकी यूनिट है नैनोमीटर (एनएम).

अमेरिका में, जहां ब्रेनर और उनकी टीम का ठिकाना है, वहां पराबैंगनी प्रकाश का अधिकतम रोजाना एक्सपोजर 222 नैनोमीटर रखा गया है. वे उसे अपने प्रयोगों के लिए एक मानक की तरह रखते हैं. और उन स्तरों पर, वे अपने फार-यूवीसी लैंप अमेरिकी बाजार में भी रख सकते हैं.

ये मानक दुनिया में अलग अलग है. जैसे जर्मनी में अधिकतम पराबैंगनी एक्सपोजर, अपेक्षाकृत रूप से कम है.

लेकिन ब्रेनर कहते हैं कि जर्मनी की नियामक सीमा में रहते हुए भी कमरों में मौजूद कीटाणुओं के स्तर में बड़ी कमी लाई जा सकती है. 

ब्रेनर के मुताबिक, "अगर जर्मनी के बहुत सारे सार्वजनिक ठिकानों में फार-यूवीसी लाइटें लगा दी जाते और उन्हें मौजूदा जर्मन नियामक सीमाओं के तहत ही संचालित किया जाता तो इस बात के पूरे पूरे आसार हैं कि कोविड-19 से इतनी संख्या में मारे गए लोग अभी जीवित होते.”

दूसरी प्रयोगशालाओं और फिलिप्स जैसी कंपनियों ने ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित कर ली है जो पराबैंगनी सी प्रकाश को अप्रत्यक्ष रूप से वितरित कर देती है- जैसे किसी कमरे के ऊपरी हिस्से में लगाए गए प्रकाश उपकरणों और चैंबरों से निकलने वाली रोशनी.

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