वह घर घर पहुंचाते हैं किताब
४ अप्रैल २०११उन्होंने हर घर तक किताबों को पहुंचाने को ही अपना मिशन बना लिया है. वह अपनी वैन के जरिए पाठकों तक उनकी मनपसंद किताबें पहुंचाते हैं.बस इसके लिए उनको एक फोन करना ही काफी है. इसके एवज में पाइक हर पाठक से मासिक पांच रुपये की फीस लेते हैं.लेकिन बहुत गरीब लोगों को वह मुफ्त में ही किताबें देते हैं.
अपनी पूरी जिंदगी गरीबी में गुजारने वाले पाइक ने 1998 में इस मोबाइल लाइब्रेरी की स्थापना की. 50 पुस्तकों से शुरू हुई उनकी लाइब्रेरी में अब साहित्य, राजनीति, खेल और विज्ञान समेत विभिन्न विषयों पर बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी में 10,000 से ज्यादा पुस्तकें हैं. पाइक कहते हैं, "इस पुस्तकालय पर दो लाख रुपये की लागत आई.इसके लिए राजा राम मोहन राय फाउंडेशन ने कुछ आर्थिक सहायता दी है." वह अपनी वैन के साथ घूमते हैं और फोन करने वाले किसी भी व्यक्ति को किताबें पढ़ने के लिए उधार देते हैं. पाइक बताते हैं कि आर्थिक तंगी की वजह से वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. शिक्षा की कमी जीवन के लिए अभिशाप बन सकती है. इसलिए उन्होंने बरसों से साक्षरता फैलाने को ही अपना मिशन बना लिया है. वह किताबों का स्टॉक अपने झोपड़ीनुमा मकान में रखते हैं. उनमें से कुछ सौ किताबें लेकर वह हर मोहल्ले में घूमते रहते हैं.
पाइक ने 1970 में 20 साल की उम्र से ही पेट काट काट कर किताबें खरीदनी शुरू कर दी. उसके बाद लगभग 40 वर्षों के दौरान अपने काम में उनको काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा.लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह कोलकाता की कुछ छोटी लाइब्रेरियों में लाइब्रेरियन के तौर पर भी काम चुके हैं. उनके बंद हो जाने के बाद उन्होंने घर घर पुस्तकें पहुंचाने को ही अपना पेशा बना लिया.राज्य सरकार ने 1999 में उनके इस पुस्तकालय का पंजीकरण भी कर दिया.
अब 61 साल की उम्र में भी उनकी मासिक आय महज 2000 रुपए है.लेकिन इसके बावजूद पाइक के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है.वह बताते हैं, "फिलहाल लाइब्रेरी के 356 सदस्य हैं. इनमें बच्चों और महिलाओं से लेकर पेशेवर लोग तक शामिल हैं. मेरे पास बच्चों की कहानियों के अलावा राजनीतिक और साहित्य तक सबकी पसंद की किताबें हैं. इनमें प्रेमचंद और शरतचंद्र से लेकर शरलक होम्स तक की पुस्तकें शामिल हैं."
इस काम ने उनको पूरे इलाके में लोकप्रिय बना दिया है. पाइक की लाइब्रेरी के एक सदस्य मोहम्मद काजिम अली शेख कहते हैं, "यह बहुत अच्छा काम है. पाइक की वजह से हमें घर बैठे मनपसंद किताबें पढ़ने को मिल जाती हैं." एक अन्य सदस्य सुनील सरकार कहते हैं कि वह हमें पढ़ने के लिए बढ़िया किताबें दे जाते हैं. उनसे हमारा ज्ञान बढ़ता है.
रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता
संपादनः ए जमाल