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लोकसभा चुनाव में नया मुहावरा गढ़ते दंपति

९ मई २०१९

सन 1978 में आई फिल्म 'मुसाफिर' का गीत 'मोरे सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का' इतना लोकप्रिय हुआ कि यह मुहावरे के रूप में आज भी प्रचलित है. लेकिन यदि 'सैंया' और 'सजनी' दोनों कोतवाल बन जाएं तब कौन-सा मुहावरा होगा?

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Bildergalerie Indien Wahlen 30.04.2014
तस्वीर: UNI

जाहिर है, बिल्कुल नया मुहावरा होगा और इसे गढ़ रहे हैं चार दंपति, जो संसद जाने की जुगत में इस बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. इन चार दंपतियों में अखिलेश यादव-डिंपल यादव, राजेश रंजन (पप्पू यादव)-रंजीत रंजन, शत्रुघ्न सिन्हा-पूनम सिन्हा, सुखबीर सिंह बादल-हरसिमरत कौर बादल शामिल हैं.

अखिलेश यादव-डिंपल यादव

समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट से गठबंधन के उम्मीदवार हैं. इसके पहले वह तीन बार (2000, 2004, 2009) कन्नौज लोकसभा सीट से निर्वाचित हो चुके हैं. 15 मार्च, 2012 को वह 38 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. तीन मई, 2012 को उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, और पांच मई, 2012 को वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हो गए थे. आजमगढ़ में अखिलेश का मुख्य मुकाबला भाजपा उम्मीदवार भोजपुरी गायक-अभिनेता दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' से है. कांग्रेस ने इस सीट से उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.

Indien - Opfer von Säureangriffen
तस्वीर: DW/S. Waheed

अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव पति अखिलेश की पुरानी सीट कन्नौज से उम्मीदवार हैं. डिंपल हालांकि अपना पहला लोकसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार राज बब्बर से फिरोजाबाद सीट से हार गई थीं. तब अखिलेश ने दो सीटों- कन्नौज और फिरोजाबाद से चुनाव लड़ा था, और दोनों पर उन्होंने जीत दर्ज की थी. बाद में उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी थी.

हालांकि, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एसपी की जीत के बाद अखिलेश ने कन्नौज सीट भी छोड़ दी और 2012 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में डिंपल निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं. डिंपल ने 2014 के चुनाव में भी इस सीट से जीत दर्ज की. वह तीसरी बार कन्नौज से चुनाव मैदान में हैं. लेकिन अभी तक पति-पत्नी दोनों एक साथ संसद नहीं जा पाए हैं. शायद इस बार दोनों की मुराद पूरी हो जाए.

राजेश रंजन (पप्पू यादव)-रंजीत रंजन

दूसरे दंपति पप्पू यादव और रंजीत रंजन दो बार एक साथ संसद में काम कर चुके हैं, और एक बार फिर साथ-साथ संसद जाने के लिए चुनाव मैदान में हैं. लेकिन दोनों की पार्टियां अलग-अलग हैं.

पप्पू ने पहली बार 1991 में पूर्णिया लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी. इसके पहले वह मधेपुरा की सिंहेश्वर स्थान विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए थे. पप्पू यादव 1996, 1999 और 2004 के आम चुनावों में भी बिहार की विभिन्न सीटों से संसद के लिए निर्वाचित हुए थे. लेकिन 2009 का लोकसभा चुनाव वह नहीं लड़ पाए, क्योंकि हत्या के एक मामले में अदालत ने उन्हें दोषी ठहरा दिया था, और पटना उच्च न्यायालय ने उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी. उसके बाद 11 अप्रैल, 2009 को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया. हालांकि 2013 में पटना उच्च न्यायालय ने उन्हें मामले से बरी कर दिया.

Die indischen Behörden überführen den ehemaligen Parlamentsagbeordneten Rajesh Ranjan
तस्वीर: UNI

वर्ष 2014 के आम चुनाव में आरजेडी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पप्पू ने मधेपुरा लोकसभा सीट से जनता दल (युनाइटेड) के शरद यादव को परास्त कर एक बार फिर संसद में दस्तक दी. पप्पू ने 2015 में खुद की जन अधिकार पार्टी बनाई और इस बार वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में एक बार फिर मधेपुरा से मैदान में हैं.

पप्पू की पत्नी रंजीत रंजन पहली बार सहरसा लोकसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के टिकट पर 2004 में जीत दर्ज संसद पहुंची थीं. लेकिन 2009 के चुनाव में वह सुपौल सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हार गईं. यह एक ऐसा दौर था, जब पति-पत्नी दोनों संसद से बाहर थे. पप्पू जेल में और रंजीत घर संभाल रही थीं. लेकिन 2014 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के ही टिकट पर सुपौल सीट से जीत दर्ज कराई. रंजीत और पप्पू एक बार फिर साथ-साथ संसद पहुंच गए. रंजीत तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से चुनाव मैदान में हैं. अब देखना यह है कि इस बार भी पति-पत्नी एक साथ संसद जा पाते हैं, या नहीं, क्योंकि दोनों सीटों पर मुकाबला कड़ा है.

शत्रुघ्न सिन्हा-पूनम सिन्हा

संसद जाने की कतार में तीसरा जोड़ा फिल्मों से राजनीति में आए शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा का है. शत्रुघ्न अपनी परंपरागत पटना साहिब सीट से इस बार भी चुनाव मैदान में हैं. लेकिन इस बार उनकी पार्टी भाजपा नहीं, कांग्रेस है. वहीं उनकी पत्नी पूनम सिन्हा एसपी की उम्मीदवार के रूप में लखनऊ सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जहां उनका मुकाबला केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से है. शत्रुघ्न से शादी से पहले फिल्मों में बतौर अभिनेत्री काम कर चुकीं पूनम इस चुनाव से अपना राजनीतिक करियर शुरू कर रही हैं.

Patna Sahib Lok Sabha
तस्वीर: UNI

शत्रुघ्न सिन्हा पहली बार 2009 में पटना साहिब से भाजपा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. इसके पहले हालांकि वह दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके थे. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में वह कैबिनेट मंत्री भी रहे थे.

शत्रुघ्न 2014 के आम चुनाव में भी पटना साहिब से निर्वाचित हुए. लेकिन 2019 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए. इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से है. दोनों पति-पत्नी के सामने जीत की चुनौती काफी कठिन है.

सुखबीर सिंह बादल-हरसिमरत कौर बादल

संसद साथ जाने का सपना संजोने वाला चौथा जोड़ा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर का है. शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल 11वीं और 12वीं लोकसभा में फरीदकोट संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के कैबिनेट में 1998-1999 तक वह कैबिनेट मंत्री रहे थे, और 2004 में वह फरीदकोट सीट से ही 14वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. 2008 में वह अकाली दल के अध्यक्ष बने और 2009 में उन्हें पंजाब का उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन छह महीने बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे. हालांकि जलालाबाद विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने के बाद अगस्त, 2009 में वह दोबारा उपमुख्यमंत्री नियुक्त किए गए. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी चुनाव जीत कर फिर सत्ता में आई और सुखबीर एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बनाए गए.

Indien Grenzsoldatinnen
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सुखबीर ने आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार भगवंत मान को पराजित किया, लेकिन उनकी पार्टी चुनाव हार गई. मौजूदा लोकसभा चुनाव में सुखबीर फिरोजपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, और उनका मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार शेर सिंह घुबाया से है, जिन्होंने अकाली दल छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है.

सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर पहली बार 2009 में 14वीं लोकसभा के लिए बठिंडा सीट से अकाली दल के उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुईं थीं. वह 2014 में दोबारा इसी सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाई गईं. वह तीसरी बार इसी सीट से चुनाव मैदान में हैं. उनका मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार अमरिंदर सिह राजा से है. सुखबीर और हरसिमरत दोनों संसद तो जा चुके हैं, लेकिन संसद में साथ-साथ जाने का मौका नहीं मिल पाया है.

17वीं लोकसभा चुनाव के लिए सात चरणों में 11 अप्रैल से मतदान शुरू हुआ है, जो 19 मई को समाप्त हो जाएगा। मतगणना 23 मई को होगी, और उसी दिन पता चलेगा कि ये चारों दंपति साथ संसद पहुंचकर नया मुहावरा गढ़ पाते हैं, या नहीं.

सरोज कुमार (आईएएनएस)

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