लॉकडाउन से जूट मिल मजदूर भुखमरी के कगार पर
१ अप्रैल २०२०कोरोना वायरस को रोकने के लिए हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद पश्चिम बंगाल के लगभग दो लाख जूट मिल मजदूरों के सामने अनिश्चित भविष्य मुंह बाए खड़ा है. किसी दौर में सोना उगलने वाला यह उद्योग पहले से ही बदहाली के दौर से गुजर रहा है. अक्सर कहीं न कहीं किसी मिल के बंद होने की खबरें मिलती हैं. इनसे नाराज मजदूर हिंसा और आगजनी भी करते रहे हैं. अभी बीते महीने ही एक मिल बंद होने से नाराज मजदूरों ने जमकर तोड़फोड़, हिंसा और आगजनी की थी. अब कोरोना वायरस की वजह से जारी लॉकडाउन इस उद्योग के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है. बंगाल की इन मिलों में 90 फीसदी मजदूर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के रहने वाले हैं. यह लोग कई पीढ़ियों से इनमें काम करते रहे हैं.
काम ठप्प
पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर 52 जूट मिलें हैं. इनमें से 46 मिलों में मार्च के तीसरे सप्ताह तक कामकाज सामान्य चल रहा था. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब 22 मार्च को लॉकडाउन का एलान किया तो इन मिलों में मशीनों का शोर थम गया. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के लॉकडाउन के एलान ने इन मिलों में रोजगार की रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है. हुगली जिले के भद्रेश्वर स्थित एक जूट फैक्टरी में काम करने वाले मुनरिका दास कहते हैं, "हमें हमेशा लॉकआउट यानी तालाबंदी का डर लगा रहता है. उससे हमारे बेरोजगार होने का खतरा होता है. लेकिन अब ल़ॉकडाउन की वजह से हम कंगाल तो हो ही जाएंगे, भविष्य में रोजगार की संभावना खत्म हो जाएगी.”
21 दिन लंबे लॉकडाउन के दौरान संक्रमण रोकने के लिए सोशल डिस्टैंसिंग पर पूरा जोर होने की वजह से राज्य के लगभग दो लाख जूट मजदूरों का भविष्य अनिश्चित हो गया है. इन मिलों में फिलहाल तीन तरह के मजदूर काम करते हैं. इनमें से पहला वर्ग स्थायी मजदूरों का है. लेकिन कुल कर्मचारियों में इनकी तादाद महज पांच फीसदी है. ऐसे मजदूरों को मासिक वेतन औऱ दूसरी सुविधाओं के साथ सेवानिवृत्ति का लाभ भी मिलता है. मजदूरों के दूसरे वर्ग में ठेके पर काम करने वाले शामिल हैं. इनको हर महीने वेतन मिलता है. लेकिन यह ठेका सीमित समय के लिए होता है और समय-समय पर इसका नवीनीकरण किया जाता है. इन मजदूरों में सबसे बड़ी तादाद बदली मजदूरों की है. यह लोग दैनिक मजदूर के तौर पर काम करते हैं और इनको साप्ताहिक वेतन मिलता है.
"कोरोना से तो बच सकते हैं, भूख से नहीं"
लॉकडाउन के एलान से सबसे ज्यादा प्रभावित ये बदली मजदूर ही हैं. मुनरिका कहते हैं, "हम रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं. हमारे पास इतना पैसा नहीं होता कि हम तीन सप्ताह का राशन और दूसरी जरूरी चीजें एक साथ खरीद सकें. हमारे लिए यह गंभीर संकट का दौर है." उत्तर 24-परगना जिले की एक जूट मिल में बदली मजदूर के तौर पर काम करने वाले रामलाल पासवान कहते हैं, "प्रधानमंत्री ने हमें घरों के भीतर रहने को कहा है. हम इसका पालन कर रहे हैं. लेकिन अब हालत यह है कि हम कोरोना से तो बच सकते हैं, भूख से नहीं. लॉकआउट होने की स्थिति में तो हम दूसरा छोटा-मोटा काम कर कुछ कमा लेते थे. लेकिन इस समय तो हम रिक्शा या वैन भी नहीं चला सकते. ज्यादातर लोग भुखमरी के कगार पर हैं.”
सीपीएम से संबद्ध ट्रेड यूनियन सीटू के नेता गार्गी चटर्जी कहते हैं, "मजदूरों के सामने गंभीर संकट है. उनमें आतंक भी है. वे यह नहीं जानते कि भविष्य में क्या होगा. यह उद्योग पहले से ही बदहाली के दौर से गुजर रहा है. ऐसे में कई कमजोर मिलों के सामने आगे चल कर स्थायी तौर पर बंद होने का खतरा मंडराने लगा है.” एक अन्य संगठन मजदूर क्रांति परिषद के नेता अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं, "जूट उद्योग में उत्पादन फिलहाल शून्य है. दैनिक मजदूरों को कोई राहत भी नहीं मिल रही है. लॉकडाउन की वजह से ट्रेड यूनियनें भी उनकी खास मदद नहीं कर सकतीं. ऐसे में उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है.” वह कहते हैं कि अगर सरकार ने तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया तो इन मजदूरों के सामने भुखमरी का खतरा पैदा हो जाएगा.
मजदूर कर रहे हैं मदद का इंतजार
इस बीच, भारतीय जूट आयोग और पश्चिम बंगाल सरकार के श्रम विभाग ने इन मजदूरों के हितों की रक्षा करने का भरोसा दिया है. आयोग के एक अधिकारी कहते हैं, "केंद्र सरकार ने संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पैकेज का एलान कर दिया है. इन मिलों के मालिकों को संबंधित मंत्रालय से संपर्क करना चाहिए.” खाद्य औऱ आपूर्ति विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रभावित लोगों के लिए राशन की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि राज्य में किसी को भूखों नहीं मरने दिया जाएगा. सरकार इन मजदूरों को राशन और दूसरी जरूरी चीजें मुहैया कराएंगी.
पश्चिम बंगाल के श्रम मंत्री मलय घटक कहते हैं, "यह एक अपरिहार्य परिस्थिति है. हमारे पास लॉकडाउन के अलावा कोई चारा नहीं है. इससे दैनिक मजदूरों के सामने भारी संकट है. सरकार ने उनके लिए मुफ्त राशन का एलान किया है.” वह बताते हैं कि स्थानीय पार्षद और विधायकों से ऐसे गरीब लोगों की सहायता करने को कहा गया है. सरकार के तमाम दावों के बावजूद फिलहाल जूट मजदूर इस मदद की राह देख रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से ऐसे बेरोजगार लोग अपने गांव भी नहीं लौट पा रहे हैं.
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