लद्दाख में सड़कें बनाते झारखंड के मजदूर
पैसे के लिए आदमी क्या कुछ नहीं करता. ऐसा ही उदाहरण हैं झारखंड से लद्दाख पहुंचे वे मजदूर जो सड़कों का निर्माण कर रहे हैं. हालांकि मजदूर इस बात से खुश हैं कि लद्दाख में काम करते हुए उनका पैसा बच जाता है.
लद्दाख में सड़क निर्माण
हजारों मील दूर अपना घरबार छोड़ कर गए मजदूरों का एक समूह हिमालय के क्षेत्र में दुनिया की सबसे ऊंची सड़कों में शामिल सड़क को बनाने का काम कर रहे हैं. भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर चांग ला पास पर झारखंड से आए 13 मजदूर काम कर रहे हैं.
टूरिस्टों के लिए
झारखंड जैसे गर्म प्रदेश से आए इन मजदूरों को ठंडे मौसम में काम करने का कोई खास अनुभव नहीं है. चार महीने के लिए इन्हें लद्दाख के टांगसे जिले में सड़क बनाने के लिए नियुक्त किया गया है. इस क्षेत्र में साल भर बर्फानी तूफान आते हैं. इन मजदूरों का मुख्य काम यह सुनिश्चित करना है कि नुबरा घाटी और पेंगोंग झील जाने वाला रास्ता बढ़िया स्थिति में रहे.
मेहनताना बस कुछ हजार
इस कमरतोड़ काम के बाद इन मजदूरों को 40 हजार रुपये तक मिलेंगे. 1.3 अरब की आबादी वाले देश भारत में जहां 21 फीसदी लोग प्रतिदिन 170 रुपये से कम में गुजारा करते हैं वहां 40 हजार एक ठीक ठाक कमाई है. यहां काम कर रहे 30 साल के सुनील टूटू कहते हैं कि उनके गृह प्रदेश में कोई खास काम नहीं है. वहां काम ढूंढना मुश्किल है. इसलिए वे लोग झारखंड से आ गए हैं.
हफ्ते का एक दिन
ये लोग हफ्ते के छह दिन काम करते हैं. रविवार ही इकलौता ऐसा दिन होता है जब लोग नहा पाते हैं, दाढ़ी बना पाते हैं. सड़क बनाने के काम में कुछ लद्दाखी लोग भी मदद करते हैं और महिलाएं भी सहयोग करती है.
काम तक पहुंचने का तरीका
हर सुबह नाश्ते में ब्रेड और चाय के बाद मजदूर ट्रकों के इंतजार में बैठ जाते हैं. ट्रक उन्हें उनके कार्य स्थल तक ले कर जाते हैं.
बिना बिजली जीवन
काम के बाद मजदूर अपने तंबू में जाते हैं और सूर्यास्त के बाद दाल-चावल खाते हैं. इन तंबुओं में कोई बिजली नहीं है. खाना बनाने के लिए स्टोव और मिट्टी के तेल बस है. इसके बावजूद ये मजदूर इस काम की शिकायत नहीं करते. सुनील टूटू कहते हैं कि अगर उन्हें मौका मिलेगा तो वे फिर यहां काम करने आएंगे.
वापस आने का कारण
33 साल के मजदूर राजशेखर ने कहा कि यहां वह पैसा बचा पाते हैं. उन्होंने कहा कि घर में हम पैसा नहीं बचा पाते, वहां हम खाते हैं, पीते हैं और इसमें पैसे खत्म हो जाते हैं. राजशेखर ने कहा कि उन्हें सड़क बनाने का काम यहां अच्छा लगता है. हालांकि वह ठंडे माहौल को पसंद नहीं करते.
प्रवासी मजदूर
ग्रामीण क्षेत्रों से अकसर लोग काम की तलाश में शहर की ओर आ जाते हैं. गैर सरकारी संस्था आजीविका ब्यूरो एजेंसी के मुताबिक लाखों मजदूर बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं. (स्रोत-एएफपी)