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समाज

ईसाइयों को दफनाने की जगह नहीं

फैसल फरीद
१ नवम्बर २०१७

मृत्य जीवन का एक सच है. अलग अलग धर्म के लोग अपने धर्म के अनुसार मृतको का अंतिम संस्कार करते हैं. लेकिन लखनऊ में रहने वाले ईसाई समुदाय के लिए मृतकों का अंतिम संस्कार मुश्किल होता जा रहा है. इसका कारण है जगह की कमी.

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Indien christlicher Friedhof Nishatganj
लखनऊ का निशातगंज कब्रिस्तान तस्वीर: DW/F. Fareed

मजबूरी में अब नये मृतको को दफन करने के लिये पुरानी कब्रों को खोद कर खत्म किया जा रहा है. ईसाई आबादी भी बढ़ी है लेकिन पिछले सौ साल में कोई नया कब्रिस्तान नहीं बना है. ऐसे में ईसाई समाज ने मांग शुरू की है कि सरकार उनको नया कब्रिस्तान बनाने की जगह उपलब्ध कराये.

लखनऊ भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी है. सन 2011 में हुए जनसंख्या सर्वेक्षण के मुताबिक उत्तर प्रदेश की आबादी करीब 20 करोड़ है. इसमें ईसाई समाज की संख्या केवल 35 हजार है. ज्यादातर ईसाई समुदाय के लोग लखनऊ में रहते हैं. ये कुछ इस वजह से भी है कि लखनऊ राजधानी थी और ब्रिटिश शासन काल में ईसाई अफसर यहीं रहते थे. उन्होंने कई चर्च और स्कूल बनवाये, जो आज भी मौजूद हैं.

ब्रिटिश काल से ही लखनऊ में ईसाई समाज के लिए दो कब्रिस्तान निर्धारित किये गये. इसमें एक माल एवन्यू में है, जिसको गोरा कब्रिस्तान कहते हैं. ऐसा इस वजह से क्योंकि इसमें सिर्फ ब्रिटिश अफसर ही दफन होते थे. आज भी उनकी कब्रें वहां मौजूद हैं. दूसरा कब्रिस्तान लखनऊ के निशातगंज इलाके में है. ये 1874 में बनाया गया था और इसमें आम ईसाई लोगो की कब्रें बनायी जाती हैं. आज भी ईसाई समाज अपने मृतको का अंतिम संस्कार यहीं करता है.

लेकिन अब इसमें जगह की कमी होने लगी है. नये मुर्दों के लिए जगह नहीं बची है. हाल में संजोग वाल्टर, जो अपने मित्र के अंतिम संस्कार करने निशातगंज ईसाई कब्रिस्तान गए थे, उन्होंने देखा कि कब्र एक पुरानी कब्र को खोद कर बनायी गयी. वाल्टर बताते हैं की जिस पुरानी कब्र को खत्म किया गया, वह 1905 में बनी थी, "शायद वह किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की कब्र रही हो. लेकिन उसको खोद कर खत्म कर दिया गया. तब हम लोगों ने अपने मित्र को वहीं दफनाया." वाल्टर के अनुसार यह काम ईसाई धर्म की मान्यताओ के विरुद्ध है. वे कहते हैं कि ईसाई समाज में कब्र का बहुत अहम स्थान है. लोग पक्की कब्र बनवाते हैं और कोशिश यह रहती है कि यह हमेशा रहे. उसको खत्म न किया जा सके, इसीलिए कब्रों के ऊपर एंजेल के प्रतीक बना दिये जाते हैं. लेकिन लखनऊ में अब कब्रों को पलटा जा रहा है.

ईसाई समाज के फादर मोरिस कुमार के अनुसार कब्रों का मामला बहुत संवेदनशील होता है. वे पूछते हैं कि अगर उनके परिजन की ही कब्र हो, तो वे कैसे इजाजत दे दें कि उसको खोद कर खत्म कर दिया जाये. फादर मोरिस असेंबली ऑफ बेलिएवेस चर्च इन इंडिया के उत्तर प्रदेश के संयोजक हैं. 

फादर मोरिस बताते हैं कि लखनऊ में कई ईसाई कब्रिस्तान अब संरक्षित स्मारक घोषित कर दिये गये हैं. इस वजह से वहां अब मुर्दे नहीं दफन हो सकते. ऐसे दो कब्रिस्तान एक चौक और दूसरा आलमबाग में मौजूद हैं.

फादर मोरिस का कहना है, "अब हम लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमें नयी जगह उपलब्ध करायी जाये जहां नया कब्रिस्तान बनाया जाये. इसके अलावा अपने पैसे से खरीदकर भी जमीन तो ली जा सकती है लेकिन उसको कब्रिस्तान घोषित करना सरकार का काम है." फिलहाल ईसाई समाज लखनऊ में अपने लिए एक अदद कब्रिस्तान की तलाश में हैं जहां वे अपने मुर्दों को शांति से दफन कर सकें.