रूस के बाजार में चीनी कंपनियों का माल कब तक बिकेगा
७ मार्च २०२२एप्पल, नाइकी और नेटफ्लिक्स से लेकर फैशन ब्रांड एचएंडएम और मनोरंजन जगत की डिज्नी जैसी कंपनियां रूस से अपना कारोबार समेटने लगी हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले की दुनियाभर में निंदा हो रही है और पश्चिमी देशों का कारोबारी जगत अपने देशों की सरकारों के रुख के साथ कदमताल कर रहा है. भले ही इसका मतलब उनके लिए बड़ा आर्थिक नुकसान है. इन सब के बीच चीनी कंपनियों ने रूस में अपने कारोबार के मामले में अब तक चुप्पी साध रखी है.
24 फरवरी को यूक्रेन पर हमले से कुछ ही हफ्ते पहले रूस और चीन ने "नो लिमिट" कारोबारी समझौता किया था. चीन की सरकार ने इस संकट के लिए नाटो के विस्तार को जिम्मेदार ठहराया और इस स्थिति को संभालने के लिए बातचीत का रास्ता सुझाया है. सोशल मीडिया पर चीन के लोग रूसी हमले का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं. रूस ने इस हमले को "स्पेशल ऑपरेशन" करार दिया है.
चीनी कंपनी पर लोगों का गुस्सा
मोबाइल ऐप के जरिए किराए पर गाड़ियां मुहैया कराने वाली चीनी कंपनी डीडी चुक्सिंग ने पिछले हफ्ते जब रूस से बाहर निकलने की घोषणा की, तो उसे लोगों के भारी गुस्से का सामना करना पड़ा. सोशल मीडिया पर लोगों ने उसे रूस पर अमेरिका दबाव के आगे झुकने का आरोप लगाया. बाद में कंपनी ने बिना कोई कारण बताए अपना फैसला वापस ले लिया.
पर्सनल कंप्यूटर बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी लेनोवो के बारे में बेलारूस के एक मीडिया संस्थान ने खबर दी कि वह रूस में अपनी सप्लाई रोक रही है. मीडिया संस्थान ने यह नहीं बताया कि उसे यह खबर कहां से मिली है. हालांकि, इतने भर से ही लेनोवो की भी तीखी आलोचना शुरू हो गई. लेनेवो ने इस मुद्दे पर पूछे सवाल का जवाब नहीं दिया है.
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चीनी कंपनियों के लिए रूसी बाजार तुलनात्मक रूप से छोटा है. अगर वे दूसरी कंपनियों की तरह रूस छोड़कर जाना चाहें, तो यह उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. खासतौर से तब, जब रूस आर्थिक प्रतिबंधों के कारण मुश्किलों में घिरा होगा. इकोनॉमिक रिसर्च करने वाली एजेंसी गावेकाल ड्रैगोनॉमिक्स के एनालिस्ट डान वांग ने एक रिसर्च नोट में लिखा है, "ज्यादातर चीनी कंपनियों के लिए रूस इतना छोटा बाजार है कि विकसित बाजारों से उनके दूर हो जाने या फिर उनके खुद पर प्रतिबंध लग जाने के खतरे के लिहाज से इसकी कोई कीमत ही नहीं है." उदाहरण के लिए अगर तुलना करके देखें, तो रूस के स्मार्टफोन बाजार में पिछले साल कुल 3.1 करोड़ फोन बिके. यह चीन के घरेलू बाजार का महज दसवां हिस्सा है.
कब तक रूस में चीन का माल बिकेगा
रूस में बने रहने का फैसला कर चीनी कंपनियां मुमकिन है कि यहां के बाजार में अपना हिस्सा बढ़ा लें. हालांकि, निर्यात की बढ़ती पाबंदियों और प्रतिबंधों के कारण वे कब तक अपना माल बेच पाएंगी, यह कहना मुश्किल है. रूस में सैमसंग और एप्पल के साथ चीन के शाओमी और ऑनर फोन खूब बिकते हैं. इसके अलावा ग्रेट वाल मोटर्स और बीवाईडी जैसी कार कंपनियों ने भी हाल के वर्षों में रूसी बाजार को अपना लक्ष्य बनाया है.
चीनी स्मार्टफोन कंपनियां जिस चिप का इस्तेमाल करती हैं, उसे आंशिक रूप से अमेरिकी तकनीक की मदद से तैयार किया गया है. ऐसे में रूस पर लगे प्रतिबंधों का दायरा फॉरेन डायरेक्ट प्रॉडक्ट रूल के तहत उन तक पहुंच सकता है. इस नियम के मुताबिक अमेरिकी तकनीक की मदद से बनने वाली चीजें बिना उचित लाइसेंस के इन देशों में नहीं भेजी जा सकतीं.
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हुआवे टेक्नोलॉजी और सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्प यानी एसएमआईसी, ये दो ऐसी कंपनियां हैं, जो चिप्स और नेटवर्किंग का सामान बनाती हैं. ये दोनों प्रतिबंधों के दायरे में आ सकती हैं. इन कंपनियों को अपना सामान बनाने के लिए विदेशी तकनीक की जरूरत होती है.
सिंगापुर में ट्रेड और एंटीट्रस्ट लॉ से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ नाथन बुश कहते हैं, "चीनी कंपनियों को सहज ज्ञान और तकनीकी फैसले के आधार पर तय करना होगा कि जो सामान वे बना रहे हैं, उससे जुड़ी चीजें और संयंत्र कहीं इन जटिल नियमों के दायरे में तो नहीं आते." बुश का कहना है कि फिलहाल कंपनियां थोड़ा ठहरकर अपनी सप्लाई चेन पर आशंकित खतरों का अंदाजा लगा रही हैं.
शाओमी और ऑनर ने फिलहाल इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि एसएमआईसी, ग्रेट वाल और बीवाईडी ने प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है. कम से कम फिलहाल के लिए तो यही लग रहा है कि चीनी कंपनियां रूस में पहले की तरह अपना कारोबार करती रहेंगी और खतरों का सामना करेंगी.
एनआर/वीएस(रॉयटर्स)