यूरोप के युवाओं का चेहरा
२५ अगस्त २०१३घुटने की ऊंचाई तक काले मोजे, काले शॉर्ट्स और स्पोर्ट्स जैकेट पहने काले बाल और गोल चेहरे वाले एक युवा की तस्वीर, यह रेफरी हो सकता है. चेहरे पर थोड़ी आशंकाएं भी हैं लेकिन आराम से है और ऐसा दिखता है जैसे चलने को तैयार है. डैनियल नाम का यह युवा 1989 में पैदा हुआ लेकिन थोड़ी ज्यादा उम्र का दिखता है. तस्वीर के नीचे कैप्शन है, "हाई स्कूल स्टूडेंट." प्रदर्शनी में सबसे पहले यही दिखा. फोटोग्राफर एडगार जिपेल ने 100 तस्वीरों के युवाओं के देश बताने का जिम्मा दर्शकों पर छोड़ रखा है. उनकी तस्वीरों में दिख रहे 18-24 साल के युवा मोल्दोवा, पोलैंड, आइसलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, पुर्तगाल, इटली या जर्मनी के हैं.
डैनियल पूर्वी यूरोप का है या शायद आइसलैंड का. दर्शक पहले अपने मन में बसी छवियों से तुलना करते हैं क्योंकि तस्वीर की पृष्ठभूमि से उस जगह के बारे में कुछ पता नहीं चलता. यहां कपड़े, चेहरे और नाम से धोखा हो सकता है. यह बात दर्शकों को जल्दी ही पता चल जाती है. अब मारियो को ही देखिए जो रोडियो पैंट और काउबॉय वाली हैट तो पहने हैं लेकिन हैं जर्मनी की. प्रदर्शनी के कैटेलॉग से आखिर में सच्चाई का पता चल जाता है.
आज के युरोपीय युवा
बर्लिन के म्यूजियम फॉर यूरोपीयन कल्चर्स की यह प्रदर्शनी मानव जाति विज्ञान से जुड़ी तस्वीरों की परंपरा का हिस्सा है. जिपेल का यह प्रोजेक्ट 21वीं सदी के शुरुआती दौर में यूरोपीय युवाओं का ऐतिहासिक अभिलेख बन जाएगा, जिसमें उनके वर्ग और पेशे की बात की गई है. 100 युवाओं के बीच समानता बिल्कुल साफ है. मोल्दोवा का मछुआरा भी वैसे ही कपड़े पहनता है जैसे कि पुर्तगाल का. खाली समय में उनका पहनावा एक जैसा ही है. इसी तरह लंदन के बैंकर करीम यूरोप के किसी और शहर के भी हो सकते हैं. गहरे रंग के बालों वाला, ग्रे सूट पहने, हाथों में मोबाइल लिए ये स्मार्ट युवा चमचमाती काली कार की ओर बढ़ रहा है. इन तस्वीरों से यह साफ हो जाता है कि फैशन और स्टेटस सिंबल से जुड़ी चीजें पूरी दुनिया में एक जैसी होती जा रही हैं. यह प्रदर्शनी छवियों से बचने की एक कोशिश भी है, जो हर चेहरे की अलग पहचान पर ज्यादा ध्यान देती है. हर चेहरा सीधे दर्शक की आंखों में झांक रहा है और इनमें से ज्यादातर के चेहरे पर आराम का भाव है.
फोटोग्राफर की इन तस्वीरों में दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि इस वर्ग के युवाओं के बारे में कई सवालों के जवाब नहीं मिल रहे. जिपेल कहते हैं, "मेरा ख्याल है कि आप चेहरों में बहुत कुछ पढ़ सकते हैं." आप जीवन के लिए मिग्वेल के हर दिन के संघर्ष को पढ़ सकते हैं. अकॉर्डियन बजाने वाला ये युवक गली में कुत्ते के साथ बैठा नजर आ रहा है.
जिपेल ने बहुत ध्यान देकर उन देशों को चुना है, जिन्हें वह अपने कलेक्शन में दिखाना चाहते थे. इनमें से रोमानिया जैसे कुछ देशों से तो वह परिचित थे लेकिन कुछ देशों में पहली बार गए. जिपेल ने बताया कि जब वो कहीं गए तो सड़क पर यूं ही बस किसी युवा से बात कर ली और ज्यादातर मौकों पर किस्मत ने उनका साथ दिया. हालंकि लिस्बन की महिला पुलिसकर्मी एना को लुभाने में उन्हें थोड़ी मेहनत करनी पड़ी. इसके बाद एना ने अपने नाम की प्लेट वर्दी से हटाई और बेल्ट में अंगूठा फंसा कर पोज दिया.
हालांकि सारी तस्वीरें किस्मत के भरोसे नहीं छोड़ी गई. जिपेल ने अपने दोस्तों और सहयोगियों की भी मदद ली ताकी खास तरह की उन परिस्थितियों या पेशे को दिखा सकें जिनसे उस देश का गहरा संबंध हैं. इटली में इसके लिए उन्हें किसी का स्कूटर पर पीछा करना पड़ा. इसी तरह सारडीनिया के एक पहाड़ी गांव में उन्हें असल तस्वीर मिल गई, जब एक से ज्यादा युवा महिलाएं स्कूटर पर उनके सामने से गुजरीं. हालांकि उस दिन रविवार था और जब सोमवार को वो तस्वीर लेने पहुंचे तो सारे युवा गांव से जा चुके थे.
आखिरकार वो उस तस्वीर को नहीं ले सके और ऐसा कई बार हुआ. ज्यादातर मौके पर स्वाभाविक तस्वीरें लेना ही काम आया, तैयारी से और योजना बनाने में अकसर नाकामी ही हाथ आई. जिपेल ने तस्वीर खिंचाने वालों से सवाल भी पूछे जैसे कि वो जिंदगी में क्या करना चाहते हैं या उन्हें किस बात का इंतजार है, साथ ही यह भी कि उनका डर क्या है. उनके जवाब बहुत हैरान करने वाले नहीं थे. उन्हें भी प्रदर्शनी में शामिल किया गया है.
युवाओं की प्राथमिकता में करियर और परिवार पहले नंबर पर है. हालांकि ज्यादा दिलचस्प उनके डर हैं. रोमानिया का ऑर्थोडॉक्स मॉन्क कयामत के दिन से डरता है. इटली का चरवाहा माटिया अपने सपनों को हासिल न कर पाने से चिंता में है
किसी का डर नहीं
पोलैंड के एक स्कूल टीचर को अपनी जिंदगी बर्बाद करने का डर है. दूसरी तरफ डैनियल, और रोमानिया के एथलेटिक हाईस्कूल के छात्र समेत ऐसे भी कम नहीं जो भविष्य के लिए उम्मीद से भरे हैं और जिन्हें किसी बात का डर नहीं. इनका बयान, "मैं किसी से नहीं डरता" प्रदर्शनी का नाम है और 100 चेहरे वो बयां करने की कोशिश में हैं जो यूरोप के संकटग्रस्त क्षेत्र के युवा से उम्मीद की जाती है.
रिपोर्टः आंद्रेया कासिस्के/ एनआर
संपादनः आभा मोंढे