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म्यूनिख में बैक रूम कूटनीति की प्रयोगशाला

मथियास फॉन हाइन
१५ फ़रवरी २०१९

जर्मन शहर म्यूनिख में हर साल दुनिया के शक्तिशाली लोग विश्व शांति की बात करते हैं. लेकिन वार्षिक सुरक्षा सम्मेलन सिर्फ ताकत का मंच नहीं है, यह प्रमुख रूप से बैक रूम कूटनीति और कूटनीतिक संभावनाओं की प्रयोगशाला है,

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Deutschland Münchner Sicherheitskonferenz
तस्वीर: Imago/S. Zeitz

करीब 35 राज्य व सरकार प्रमुख, करीब 80 विदेश और रक्षा मंत्री और कुल मिलाकर 600 सुरक्षा नीति विशेषज्ञ म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में भाग ले रहे हैं. सम्मेलन के आयोजक वोल्फगांग इशिंगर इसे 50 साल पहले हुई स्थापना के बाद से सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सम्मेलन बताते हैं. शुक्रवार से 48 घंटे के लिए चलने वाले सम्मेलन के दौरान दर्जनों कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं जिनमें राष्ट्रपति बोलेंगे, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री बहस करेंगे, एक दूसरे से इत्तफाक नहीं रखने वाले देशों के भी.

यह कूटनीतिक संभावनाओं की प्रयोगशाला भी खोलता है जिसमें अलग अलग दृष्टिकोणों की चर्चा होती है, सहमतियों की तलाश होती है और ये सब पर्दे के पीछे, चुपचाप और बिना किसी बाधा के. एक फायदा तो सम्मेलन स्थल का भी है जहां बायरिशे होप का खुला खुला विशाल परिसर नेताओं को पत्रकारों और अनिच्छित पर्यवेक्षकों से दूर रखता है. गोपनीय बैठकों के लिए आयोजकों ने 100 कमरे रिजर्व कर रखे हैं.

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अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री मैडलीन ऑलब्राइटतस्वीर: Imago/C. Thiel

ऑपरेटिव राजनीति का मंच

म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के प्रमुख वोल्फगांग इशिंगर कहते हैं, "म्यूनिख का सम्मेलन वह जगह है जहां विचारों को परखा जा सकता है, गठबंधन गढ़े जा सकते हैं और शांति प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने या शुरू करने की तैयारियां की जा सकती हैं." मुख्य सभाओं जितना ही महत्वपूर्ण म्यूनिख आए प्रतिनिधिमंडलों की आपसी मुलाकातें हैं. इनकी वजह से सुरक्षा सम्मेलन ऑपरेटिव राजनीति का मंच बन जाता है. इशिंगर परमाणु हथियार समझौते न्यू स्टार्ट का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इसके लिए बातचीत की शुरुआत 2009 में म्यूनिख सम्मेलन में अलग से हुए एक बैठक से शुरू हुई.

इस साल सम्मेलन में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस भी भाग ले रहे हैं. यदि उनकी सभाओं में कम लोग होंगे तो इसलिए नहीं कि लोग म्यूनिख के पर्यटनस्थल देखने चले जाएंगे बलेकि इसलिए कि उस समय कोई न कोई द्विपक्षीय वार्ता हो रही होगी. आयोजकों के अनुसार पिछले साल करीब 2200 ऐसी वार्ताएं हुई थीं. यदि एकांत का कमरा और दुभाषिया उपलब्ध हो तो बातचीत के लिए सड़क पर जाने की जरूरत नहीं रह जाती. बहुत से सरकारी प्रतिनिधियों को दो दिनों के अंदर दूसरे देशों के बहुत सारे प्रतिनिधियों से मिलने का मौका मिल जाता है.

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होटल बायरिशे होफतस्वीर: Imago/S. Zeitz

बातचीत के बदले ट्विटर

लेकिन विदेश नीति में इन दिनों कूटनीति की जगह ट्विटर ने ले ली है. खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने साथियों और विरोधियों दोनों को ही बार बार अपने ट्वीटों के जरिए ताज्जुब में डालते रहते हैं. लेकिन जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए अपने साथियों और विरोधियों से सीधी बातचीत का महत्व खत्म नहीं हुआ है. शीतयुद्ध की तुलना में भी नहीं जिसके विकास के साथ म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन का महत्व बढ़ना शुरू हुआ था. चांसलर मैर्केल कहती हैं, "हालांकि दुनिया अब दो ध्रुवीय नहीं रह गई है, लेकिन स्थानीय विवाद और आतंकवाद जैसी चुनौतियां बढ़ गई हैं."

इस साल अमेरिकी राष्ट्रपति ने भले ही दावोस में विश्व आर्थिक फोरम से किनारा कर लिया हो, लेकिन म्यूनिख अमेरिका का अब तक का सबसे बड़ी प्रतिनिधिमंडल आ रहा है. उप राष्ट्रपति माइक पेंस के अलावा विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो भी आ रहे है. डेमोक्रैटिक बहुमत वाली प्रतिनिधि सभा की नेता नैंसी पलोसी भी बजट का झगड़ा खत्म होने के बाद म्यूनिख आ रही हैं. ऐसा लगता है कि ट्विटर कूटनीति से परे भी अमेरिका कूटनीति के रास्ते तलाश रहा है.