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मैनेजर मोदी पर हावी दंगों का भूत

२८ फ़रवरी २०१२

गुजरात अगर दंगों की वजह से जाना जाता है, तो उद्योग और बिजनेस की वजह से भी. नरेंद्र मोदी के दौर में अगर सांप्रदायिक फासला बढ़ा है, तो आर्थिक प्रगति भी बढ़ी है. लेकिन मुख्यमंत्री मोदी इस विकास से ज्यादा दंगों में फंसे हैं.

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तस्वीर: AP

गुजरात भारत के दूसरे हिस्सों से अलग है. रतन टाटा को जब महात्वाकांक्षी नैनो परियोजना को पूरा करने के लिए पश्चिम बंगाल में लोहे के चने चबाने पड़े, नरेंद्र मोदी के गुजरात ने उन्हें फौरन मदद दी. तुरंत जमीन मिल गई और कार फैक्ट्री भी लग गई. निवेश पाने के लिए गुजरात के प्रयासों ने उसे आज भारत का सरताज बना दिया है.

गुजरात में पैसा लगा रहे दूसरे उद्योगपति भी सरकार का गुणगान करते नहीं थकते. वहां लालफीताशाही कम है, बड़ी परियोजनाओं के लिए जमीन आसानी से मिल जाती है. बिजली पानी की कमी नहीं है, नेता और अधिकारियों की रिश्वतखोरी कम है. निवेशकों को और क्या चाहिए. टायर कंपनी सिएट को अपना प्लांट लगाने में सिर्फ 24 महीने लगे. इसका असर उत्पादन और रोजगार पर भी झलक रहा है. भारत की पांच फीसदी आबादी वाला गुजरात आज भारत में 16 फीसदी औद्योगिक उत्पादन कर रहा है.

लेकिन दस साल पहले के दंगों ने उसकी और उसके प्रशासन की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया है. मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर दंगे में पक्षपात के आरोप हैं. उन पर मुकदमे चल रहे हैं, जांच चल रही है. दंगों में मोदी प्रशासन की भूमिका के कारण अमेरिका ने उन्हें वीजा नहीं दिया. उसके बाद से यूरोपीय देशों में भी उन्हें पसंद नहीं किया जाता. जहां आर्थिक सहयोग के पीछे राजनीतिक इच्छाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, इसका असर आर्थिक विकास पर भी पड़ा है. शुरुआती वर्षों में गुजरात से दूर रहने के बाद भारत के प्रमुख उद्यमी फिर से गुजरात की ओर रुख करने लगे हैं और अमिताभ बच्चन ने भी गुजरात का ब्रैंड एम्बैसेडर बनना स्वीकार कर लिया है.

Tata Nano Werk in Indien
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बहुत कठिन है

लेकिन राजनीतिक वर्ग अभी भी मुख्यमंत्री मोदी से दूरी दिखा रहा है. औद्योगिक निवेश विशेषज्ञ अनुपम चतुर्वेदी कहते हैं, "उन्होंने चाहे प्रोएक्टिवली हिस्सा न लिया हो, लेकिन कुछ न करने की वजह से जो आरोप आ गए. उससे उनको अभी तक काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है."

डेढ़ हजार किलोमीटर से लम्बे समुद्र तट वाला गुजरात भारत की अर्थव्यवस्था में प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है. लोथल सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण शहरों में शामिल है. उसे दुनिया का पहला बंदरगाह भी माना जाता है. मध्ययुग तक विदेशों के साथ गहन कारोबार के सबूत हैं, खास कर फारस की खाड़ी में सुमेर के साथ. इस समय तक यह इलाका इतना धनी हो गया कि उस पर विदेशी शासकों की भी नजर पड़ गई. सोमनाथ पर महमूद गजनी का हमला इसमें से एक था. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अंग्रेजों ने गुजरात के सूरत में कपड़ा मिलें बनाईं जो आजाद भारत में भी गुजराती अर्थव्यवस्था की रीढ़ था.

तेजी से विकास

आज वहां सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और वह देश के सबसे औद्योगीकृत प्रांतों में शामिल है. अनुपम चतुर्वेदी कहते हैं कि परिवर्तन की शुरुआत कोई दो दशक पहले हुई जब परंपरागत कपड़ा उद्योग मुश्किलों का सामना कर रहा था. इस उद्योग के साथ जुड़े लोगों ने उसके बाद नई संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी.

आज गुजरात के मुख्य औद्योगिक क्षेत्रों में कपड़ा, सीमेंट, इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग शामिल हैं. भारत में आर्थिक सुधारों के बाद से नए उद्यमों में फर्टिलाइजर और पेट्रोकेमिकल उद्योग का तेज विस्तार हुआ. नए रोजगार बने. कृषि क्षेत्र में उसने दूध उत्पादन के साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाया है और गन्ने, मूंगफली और खजूर की खेती के लिए जाना जाता है. गुजरात आबादी में इटली के बराबर है, लगभग 6 करोड़. सकल घरेलू उत्पादन में अंगोला के बराबर 80 अरब डॉलर और प्रति व्यक्ति आय के मामले में कांगो के बराबर. 4.150 डॉलर. लेकिन भारत में सकल घरेलू उत्पादन के मामले में वह चौथे स्थान पर है और आमदनी के मामले में आठवें नंबर पर.

Narendra Modi
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रोल मॉडल नहीं

इस सबके बावजूद वह देश के दूसरे प्रांतों को आगे बढ़ने में बहुत मदद नहीं दे पाया है. और इसकी वजह प्रांत का पंगु राजनीतिक नेतृत्व है. गुजरात दंगों के कारण उसकी ऐसी बदनामी हुई है कि कोई उसके साथ सहयोग करने को तैयार नहीं दिखता. अनुपम चतुर्वेदी कहते हैं कि दंगों का असर ये हुआ है कि "गुजरात अपने आप में विकास का हब बन गया है लेकिन उस मॉडल को हिंदुस्तान में न तो रेप्लिकेट कर सकते हैं और न शोकेस कर सकते हैं."

पुराने समय से समुद्री व्यापार के कारण हाल के दिनों में भी गुजरात विदेश निवेश का लक्ष्य बना हुआ है. जर्मनी के साथ भी उसके निकट संबंध है. वहां के तेज औद्योगीकरण में जर्मन मशीनों की भी भूमिका है. जर्मन भारत वाणिज्य संघ में सक्रिय अनुपम चतुर्वेदी कहते हैं कि खास कर रासायनिक उद्योग के क्षेत्र में तेज विकास हो रहा है. बहुत सी कंपनियां अपने प्लांट महाराष्ट्र से गुजरात ले गई हैं. "काफी बड़ी बड़ी कंपनी जैसे लैन्कसेस है, बीएएसएफ है, बायर है, इनके बड़े बडे कारखाने गुजरात में शिफ्ट हो गए हैं." भारत और जर्मनी के आपसी व्यापार में भी गुजरात महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. क्लास, मेट्रो और बायर जैसी कंपनियां गुजरात में प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के तहत कृषि क्षेत्र को विश्वस्तरीय बनाने में योगदान दे रही हैं. वहां छोटे मशीन केंद्र बनाकर 5 लाख छोटे किसानों को आधुनिक खेती में मदद देने का इरादा है.

गुजरात की सफलता प्रशासनिक है. नेशनल रूरल गारंटी स्कीम या बच्चों को पढ़ाने की स्कीम जैसे सरकारी कार्यक्रमों को लागू करने में सफलता मिली है. विदेशी निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाकर राज्य में उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है. राज्य सरकार समझ गई है कि औद्योगिक विकास से ही प्रगति संभव है. राष्ट्रीय विकास दर भले ही घट गई हो, गुजरात की विकास दर दो अंकों में बनी रहेगी. गुजरात भारत के विकास का मोटर साबित हो सकता है. लेकिन नरेंद्र मोदी का भूत गुजरात के सिर पर अभी भी सवार है. दंगा होने देने या दंगों को रोक न पाने वाले प्रशासक की छवि नरेंद्र मोदी की औद्योगिक विकास वाले प्रशासक की छवि पर हावी है.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: अनवर जे अशरफ

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