मिलिए खेलों की कुछ सुपर महिलाओं से
महिलाएं खेलों में पुरुषों के साथ बराबरी के लिए दशकों से लड़ रही हैं. कई सफल महिला खिलाड़ियों के इस संघर्ष ने खेलों की दुनिया को हिला के रख दिया, लेकिन कई क्षेत्रों में वो सफलता ज्यादा वक्त तक चली नहीं.
एक बड़ी लैंगिक बाधा ध्वस्त
10 अप्रैल, 2021 को रेचल ब्लैकमोर ने खेलों की दुनिया की सबसे बड़े लैंगिक बाधाओं में से एक को तोड़ दिया. वो इंग्लैंड की कठिन ग्रैंड नेशनल प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली महिला जॉकी बन गई हैं. आयरलैंड की रहने वाली 31 वर्षीय ब्लैकमोर ने जीत हासिल करने के बाद उन्होंने कहा, "मैं अभी पुरुष या महिला जैसा महसूस ही नहीं कर रही हूं. बल्कि मैं अभी इंसान जैसा भी महसूस नहीं कर रही हूं. यह अविश्वसनीय है."
टेनिस की दुनिया का चमकता सितारा
1970 के दशक में बिली जीन किंग ने टेनिस में पुरुष और महिला खिलाड़ियों को एक जैसी पुरस्कार राशि देने के लिए संघर्ष किया था. 12 ग्रैंड स्लैम जीत चुकीं किंग ने कुछ और महिला खिलाड़ियों के साथ विरोध में अपनी अलग प्रतियोगिताएं ही शुरू कर दीं, जो आगे जाकर महिला टेनिस संगठन (डब्ल्यूटीए) बनीं. उनके संघर्ष का फल 1973 में मिला, जब पहली बार यूएस ओपन में एक जैसी पुरस्कार राशि दी गई.
हर चुनौती को हराया
कैथरीन स्विटजर बॉस्टन मैराथन में भाग लेने वाली और उसे पूरा करने वाली पहली महिला थीं. उस समय महिलाओं को इस मैराथन में सिर्फ 800 मीटर तक भाग लेने की इजाजत थी, जिसकी वजह से स्विटजर ने अपना पंजीकरण गुप्त रूप से करवाया था. इस तस्वीर में जैकेट और टोपी पहने गुस्साए हुए रेस के निर्देशक ने स्विटजर का रेस नंबर फाड़ देने की कोशिश की थी. उनके विरोध के कुछ साल बाद महिलाओं को लंबी दूरी तक दौड़ने की अनुमति मिली.
दर्शकों की पसंद
इटली की साइक्लिस्ट अल्फोंसिना स्ट्राडा ने 1924 की जीरो दी इतालिया के लिए अल्फोंसिन स्ट्राडा के नाम से पंजीकरण करवा कर आयोजनकर्ताओं को चकमा दे दिया. उन्हें पता ही नहीं चला कि वो एक महिला हैं. बाद में जब उन्हें पता चला तो उसके बावजूद स्ट्राडा को रेस में भाग लेने की अनुमति दे दी गई और इस तरह वो पुरुषों की रेस को शुरू करने वाली अकेली महिला बन गईं.
छू लो आकाश
1990 के दशक तक महिलाएं स्की जंपिंग में हिस्सा नहीं ले सकती थीं, लेकिन 1994 में एवा गैंस्टर पहली महिला "प्री-जंपर" बनीं. 1997 में वो ऊंचे पहाड़ से छलांग लगाने वाली पहली महिला जंपर बनीं. पहला विश्व कप 2011 में आयोजित किया गया और ओलंपिक में यह खेल पहली बार 2014 में खेला गया.
आइस हॉकी में महिलाएं
मेनन ह्यूम ने 1992 में उत्तरी अमेरिका के लोकप्रिय नेशनल हॉकी लीग में हिस्सा लेने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया. उन्होंने एक प्री सीजन मैच में एक पीरियड के लिए खेला लेकिन बाद में उसी साल वो बाकायदा सीजन में प्रोफेशनल मैच में खेलने वाली पहली महिला भी बनीं.
फुटबॉल में रेफरी
1993 में स्विट्जरलैंड की निकोल पेटिनात पुरुषों के चैंपियंस लीग फुटबॉल मैच में रेफरी बनने वाली पहली महिला बनीं. वो स्विस लीग, महिलाओं के विश्व कप और यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में भी रेफरी बनीं. हालांकि उनकी उपलब्धियों के बावजूद आज भी महिला रेफरियों की संख्या ज्यादा नहीं है. जर्मनी की बिबियाना स्टाइनहाउस इस मामले में अपवाद हैं.
महिला ड्राइवर
इटली की मारिया टेरेसा दे फिलिप्पिस उन दो महिलाओं में से एक हैं जिन्हें फार्मूला वन रेस में गाड़ी चलाने वाली महिला होने का गौरव हासिल है. 1958 से 1959 के बीच, मारिया ने तीन ग्रां प्री में भाग लिया. इटली की ही लैला लोम्बार्दी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलीं और 1974 से 1976 के बीच में 12 रेसों में हिस्सा लिया. उसके बाद से आज तक एफवन रेसों में महिलाएं हिस्सा नहीं ले पाई हैं.
पुरुषों की कोच
कोरीन डाइकर चार अगस्त 2014 को पुरुषों की यूरोपीय फुटबॉल लीग में चोटी की दो श्रेणियों के एक मैच में कोच बनने वाली पहली महिला कोच बनीं. वो 2017 में फ्रांस की राष्ट्रीय महिला टीम की कोच भी बनीं. पुरुषों के फुटबॉल में आज भी उनकी अलग ही जगह है. आज भी कई महिला टीमों के कोच पुरुष हैं.
महिलाओं के लिए जीवन समर्पित
जर्मन फुटबॉल कोच मोनिका स्टाब एक सच्ची पथ प्रदर्शक हैं. वो पूरी दुनिया में घूम घूम कर महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं. उनका मानना है कि "खेलों में सकारात्मक फीडबैक आत्मविश्वास को बढ़ा देता है. जिंदगी से गुजरने के लिए यह आवश्यक है." - आंद्रेआस स्तेन-जीमंस