मानव तस्करी में आई कमी लेकिन चिंता में हैं कार्यकर्ता
२३ अक्टूबर २०१९दक्षिण एशिया दुनिया के उन इलाकों में है जहां मानव तस्करी के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और भारत इस इलाके के केंद्र में है. हजारों गरीब, ग्रामीण महिलाएं और बच्चों को बहला फुसला कर शहरों में लाया जाता है. इन्हें अच्छी नौकरी का झांसा देकर ऐसी जगहों पर बेच दिया जाता है जहां आज के दौर की गुलामी कराई जाती है. भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जारी किए आंकड़ों के मुताबिक 2017 में मानव तस्करी के 3000 मामले दर्ज किए गए. 2016 में यह तादाद 8000 थी इसका मतलब है कि एक साल के समय में इसमें करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है.
आमतौर पर हर साल जारी होने वाले तस्करी के आंकड़ों को समाजसेवी संगठनों के इसके खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. अभियान चलाने वालों का कहना है कि तस्करी के मामलों में गिरावट की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि सरकार समर्थित जागरुकता अभियानों की वजह से निगरानी बढ़ गई है. तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने वाले दिग्विजय कुमार का कहना है कि तस्करों ने अपनी चालें बदल ली हैं ताकि अधिकारियों के घेरे से निकल सकें. दिग्विजय कुमार ने कहा, "तस्करों ने अपनी कार्यशैली बदल दी है, वो पुराने रास्तो्ं को छोड़ रहे हैं और नए की तलाश कर रहे हैं. कई मामलों में पुलिस तस्करी के खिलाफ कानूनों के तहत मामले दर्ज नही करती है."
भारतीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर बयान देने से इनकार कर दिया. पश्चिम बंगाल के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, "मानव तस्करी के खिलाफ हमारे जागरुकता अभियान की सफलता चौंका देने वाली थी." पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के मामले 2016 में 3500 थे जो 2017 में घट कर महज 350 रह गए. ये आंकड़े सोमवार को एक साल की देरी के बाद जारी किए गए हैं.
ये आंकड़े गुलामी के खिलाफ काम करने वाले संगठन वॉक फ्री फाउंडेशन के आंकड़ों से भी मेल खाते हैं. वाक फ्री फाउंडेशन ने भारत में गुलामी झेल रहे लोगों की संख्या का अनुमान 2016 के 1.8 करोड़ से घटा कर 2017 में 80 लाख कर दिया. अभियान चलाने वालों का कहना है कि भारत में मानव तस्करी के आंकड़ों में गुमशुदा बच्चों की संख्या भी अपरहण किए गए शामिल होनी चाहिए.
मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संगठन से जुड़े साजी फिलिप का कहना है कि बहुत से मामलों का इसलिए पता नहीं चलता क्योंकि तस्कर अब ज्यादातर ऑनलाइन काम कर रहे हैं.
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
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