महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीति
२२ सितम्बर २०१७कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि लोकसभा में अपने बहुमत का लाभ उठाते हुए उनकी सरकार को लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक लाकर उसे पारित कराना चाहिए. उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस हमेशा इस विधेयक के समर्थन में रही है और इस बार भी इसे पारित करने में वह भरपूर सहयोग करेगी. सोनिया गांधी यह याद दिलाना भी नहीं भूलीं कि पंचायतों और नगरपालिका आदि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित करने का प्रस्ताव उनके पति और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने 1989 में रखा था, लेकिन तब विपक्ष के विरोध के कारण ये विधेयक पारित नहीं हो पाये थे. बाद में 1993 में संसद के दोनों सदनों ने इन्हें पारित किया.
कांग्रेस के महिला संगठन की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने भी यह घोषणा की है कि पिछली 21 मई से, जो राजीव गांधी का जन्मदिन भी है, कांग्रेस ने देश भर में महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चलाया था. अब पार्टी की महिला नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट के लिए समय मांगा है ताकि "लाखों” हस्ताक्षर सौंपे जा सकें.
सोनिया गांधी के पत्र का तत्काल असर हुआ और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से मिलकर इस विषय पर चर्चा की. अब भारतीय जनता पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श हो रहा है, जिसके केंद्र में इस विधेयक के पारित होने का आगामी चुनावों पर पड़ सकने वाला असर है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी लोकप्रियता भले ही अभी तक बरकरार हो, उनकी सरकार की लोकप्रियता में खासी कमी आयी है. इसका कारण नोटबंदी और जीएसटी का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा बुरा असर माना जा रहा है. रोजगार के नये अवसर पैदा होने के बजाय लोगों के पास जो रोजगार था, वह भी छिन रहा है. अखबारों में खबर छपी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक अंदरूनी सर्वेक्षण के मुताबिक भाजपा आगामी चुनावों में हार का सामना कर सकती है. ऐसे में यदि भाजपा महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश करके उसे पारित करा लेती है, तो उसे देश की महिलाओं का समर्थन हासिल करने में सफलता मिल सकती है और उसकी चुनावी नैया पार लग सकती है. कांग्रेस ने यह विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित करा लिया था लेकिन लोकसभा में यह पेश भी नहीं हो सका.
इस मुद्दे पर पहल करके सोनिया गांधी ने देश की महिलाओं को जता दिया है कि उनके अधिकारों के प्रति अन्य दलों के मुक़ाबले कांग्रेस और स्वयं वह खुद कहीं अधिक गंभीर हैं. इसी के साथ उन्होंने यह भी जता दिया है कि पिछले साढ़े तीन साल में भाजपा को महिलाओं की सुध नहीं आयी. उधर उनकी अपनी पार्टी का सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल भी विधेयक के पक्ष में नहीं है. न ही अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तथा अनेक अन्य क्षेत्रीय दल ही इसके पक्ष में हैं. दरअसल इस विधेयक में सभी विधानसभाओं और लोकसभा में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों का एक-तिहाई इन समुदायों की महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा. इस पर सबसे अधिक आपत्ति अन्य पिछड़े वर्गों के शरद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को है जिन्हें लगता है कि आरक्षण का लाभ ऊंची जातियों की पढ़ी-लिखी महिलाओं को मिलेगा और उनकी अपनी जातियों की महिलाएं उससे वंचित रह जाएंगी. विधेयक के खिलाफ एक तर्क यह भी है कि पार्टियां टिकट बांटते समय एक-तिहाई सीटों पर महिला उम्मीदवारों को क्यों नहीं खड़ा करतीं? अगर वे ऐसा करने लगें, तो फिर आरक्षण की जरूरत ही न रहे.
भाजपा को इस मुद्दे पर फैसला लेने में कुछ समय तो लगेगा ही. यदि उसने वाकई सोनिया गांधी की चुनौती स्वीकार कर ली और महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने का सेहरा उसके सिर पर बंध भी गया, तब भी महंगाई और सरकार की आर्थिक नीतियों से बेहाल महिलाओं का समर्थन मिलने की कोई गारंटी नहीं है. लेकिन यदि उसे यह समर्थन मिल गया, तो सोनिया गांधी के लिए इस खेल में मात से बचना मुश्किल हो जाएगा.