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महामारी से लेकर प्रलय तक के लिए तैयार है आर्कटिक वॉल्ट

१६ मार्च २०२०

किसी महामारी के फैलने या परमाणु युद्ध छिड़ने की स्थिति में खाने का संकट पैदा होने पर यह गुंबद काम आएगा. पृथ्वी के सुदूर आर्कटिक क्षेत्र में स्थित इस इमारत में दुनिया भर से लाकर अनाज की अहम किस्मों को रखा जाता है.

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Norwegen Saatgut-Depot "Global Seed Vault"
तस्वीर: Getty Images/AFP/NTB/scanpix/L. Aserud

हाल ही में आर्कटिक में बने अपनी तरह के इस खास स्टोर रूम में बीज की दस लाखवीं किस्म को जोड़ा गया है. वॉल्ट कहलाने वाले इस खास गुंबद में अनाजों की अलग अलग किस्में बचा कर रखी जाती हैं ताकि किसी संकट की स्थिति में इस खजाने से उसके बीज निकाले जा सकें और उन्हें मानवता के लिए फिर से उपलब्ध कराया जा सके. यहां रखे बीजों को खराब होने से बचाने के लिए इसके दरवाजे भी बहुत कम ही खोले जाते हैं.

विश्व भर में खाने की चीजों की आपूर्ति निर्बाध गति से बनाए रखने में इसकी अहम भूमिका मानी जाती है. असल में हम अपनी ऊर्जा की ज्यादातर जरूरत के लिए कुछ गिनती के अनाजों पर ही निर्भर करते हैं. आर्कटिक इलाके में स्थित स्वालबार्ड ग्लोबल सीड वॉल्ट में चावल, गेहूं और कुछ अन्य प्रमुख अनाजों की किस्में रखी गई हैं.

Svalbard Global Seed Vault, Norwegen
तस्वीर: Global Crop Diversity Trust

साल 2008 में एक पहाड़ के पास बनाई गई इस स्टोरेज फेसिलिटी की शुरुआत इस मकसद से की गई थी कि अगर कभी परमाणु युद्ध छिड़ जाए या कोई महामारी फैल जाए तो उस स्थिति में प्रभावित इलाकों में फिर से उगाने के लिए खाद्यान्नों की किस्में बचाई जा सकें. इसीलिए इसका लोकप्रिय नाम "डूम्स डे वॉल्ट" यानि प्रलय गुंबद है.

यह जगह नॉर्वे और उत्तरी ध्रुव के बीच में स्थित है और यहां गिनती के इंसान ही रहते हैं. साल में केवल कुछ ही बार इसके दरवाजे खोले जाते हैं ताकि बीजों की देखभाल के लिए जो जरूरी काम हों वे किए जा सकें.

हाल के समय में 25 फरवरी 2020 को इसे खोला गया जब भारत, माली और पेरू के 30 जीन बैंकों की ओर से लाए गए बीज यहां जमा करवाए गए. लेकिन ऐसी आपातकालीन स्थिति के अलावा शांतिकाल में भी इसके कुछ इस्तेमाल होते हैं. जैसे कि अगर कभी पौधों की नई किस्में विकसित करने वाले ब्रीडरों को जरूरत हो तो उन्हें यहां से बैक अप किस्में मुहैया कराई जाती हैं.

पहले के समय में विश्व में 7,000 विभिन्न तरह के पौधे उगाए जाते थे. विशेषज्ञ बताते हैं कि अब इंसान अपनी ऊर्जा की 60 फीसदी जरूरत केवल तीन मुख्य किस्मों - मक्का, गेहूं और चावल - से ही लेने लगा है. इसका बुरा पहलू यह है कि जलवायु परिवर्तन के चलते उपज खराब होती है तो पूरी आबादी की फूड सप्लाई प्रभावित होगी.

वॉल्ट का प्रबंधन करने वाले जर्मनी के बॉन में स्थित संगठन क्रॉप ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक श्टेफान श्मित्स कहते हैं, "धरती पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की वैश्विक प्रणाली का बैक अप है सीड वॉल्ट."
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, आज भी विश्व में हर नौ में से एक व्यक्ति रात को भूखा सोने को मजबूर है. वैज्ञानिक बता चुके हैं कि मौसम के अनियमित पैटर्न से आगे चल कर दुनिया में खाने की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही घटती जाएगी.

सन 2015 में ऐसी नौबत आई थी जब पहली बार रिसर्चरों को वॉल्ट से बीज निकालने पड़े थे. सीरिया के गृह युद्ध के दौरान जब अलेप्पो शहर की तबाही में वहां के सीड बैंक भी नष्ट हो गए तो वॉल्ट से बीज निकाले गए थे. दो साल बाद इन बीजों को उगाकर फिर से उसका सैंपल स्वालबार्ड वॉल्ट में जमा कराया गया.

बीते साल नॉर्वे ने करीब एक साल तक चले इस इमारत के अपग्रेड प्रोग्राम में 1.1 करोड़ डॉलर खर्च किए. आर्कटिक के बेहद ठंडे माहौल में इसे यह सोच कर बनाया गया था कि अगर संकट की स्थिति में पावर फेल हो जाए तो भी यहां रखे बीज जल्दी खराब नहीं होंगे. लेकिन असल में अब आशंका यह भी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खुद प्रलय गुंबद पर भी मुसीबत आ सकती है.

आरपी/आईबी (एएफपी)

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