मशीन जोड़ेगी बरसों पुराने दस्तावेजों के टुकड़े
२ मई २०१३विज्ञान:
1. सोने की दीवानगी को भारतीयों से बेहतर कौन समझ सकता है. बीते साल धनतेरस और दीवाली में तो देश भर में साढ़े छह हजार किलो सोना बिका. अफ्रीका महाद्वीप की बात की जाए, तो तंजानिया वहां का चौथा सबसे बड़ा सोने का उत्पादक है. बीते एक दशक में यहां कई बड़ी खनन कंपनियां आईं, लेकिन कुछ कंपनियों को घुसपैठियों से जूझना पड़ रहा है. ये घुसपैठिये पत्थरों से सोना निकालना जानते हैं. करीब 70 फीसदी स्थानीय निवासी फेंके गए पत्थरों की गैरकानूनी चोरी से फायदा उठाते हैं. लेकिन सोना निकालने के लिए वे जहरीले पारे का इस्तेमाल करते हैं. इसे निकालने वाले आए दिन अपनी और पर्यावरण की सेहत को पारे से नुकसान पहुंचा रहे हैं. पैसा है, लेकिन साथ में जोखिम भी.
2. सोने की ही बात करते हुए अगली रिपोर्ट में हम आपको तंजानिया से जॉर्जिया ले कर जा रहे हैं जहां पुरातत्वविदों को 5000 साल पुरानी खदान मिली है. इसे देखकर पता चलता है कि हम इंसानों में सोने की दीवानगी कोई नई बात नहीं, यह तो हजारों साल पुरानी है. सिर्फ पत्थर को औजार बनाकर प्राचीन काल में लोगों ने यहां 70 मीटर की सुरंग बना डाली. बहुत ही संकरी सुरंगों में पहले बच्चों को भेजा जाता था. मृतकों के अवशेषों की जांच से पता लगाया जा रहा है कि इतना जोखिम क्यों उठाया गया. सुरंग की दीवारों का सुनहरा रंग इसका जवाब हो सकता है. यह सुनहरा रंग सोना है.
तकनीक:
1. खुफिया एजेंसियों के दस्तावेज हमेशा महफूज रखे जाते हैं और अगर खुफिया एजेंसी कहीं तानाशाही हूकूमत से जुड़ी हो तो इस पर ज्यादा एहतियात बरती जाती है. पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस श्टासी ने भी पूरी कोशिश की ताकि उनके दस्तावेज किसी के हाथ न लग जाएं. हर कागज के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाते. लेकिन अब सुपर कंप्यूटर की मदद से इन टुकड़ों को फिर से जोड़ा जा रहा है. फाड़े गए टुकड़ों को जोड़ना आसान नहीं, इसमें खूब वक्त लगता है. हाथ से हर दस्तावेज को जोड़ने में कई सौ साल लग जाएंगे. बर्लिन के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट में सुपर कंप्यूटर कतरनों को जोड़कर दस्तावेजों को दोबारा बना रहा है. करतनों को दोनों तरफ से स्कैन कर कंप्यूटर में लोड किया जाता है. फिर प्रोग्राम को जरूरी निर्देश दिये जाते हैं.
2.पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस श्टासी और इन दस्तावेजों की अहमियत समझाएंगे महेश झा. वह बता रहे हैं कि इन दस्तावेजों को इस तरह से नष्ट करने की जरूरत क्यों पड़ी. खुफिया पुलिस पूर्वी जर्मनी की सरकार की एक नियंत्रण संस्था जैसी थी. 1,70,000 खुफिया कर्मचारियों वाली स्टासी देश के हर नागरिक पर नजर रखती थी.
1989 में आम लोगों के विद्रोह ने पूर्वी जर्मनी की सरकार को उखाड़ फेंका. जनवरी 1990 में लोगों ने श्टासी के मुख्यालय पर धावा बोल दिया. महेश झा भी उस समय पूर्वी जर्मनी में रह रहे थे, वह कार्यक्रम में अपने तजुर्बे साझा कर रहे हैं.
जीवनशैली:
1. मंथन में अकसर आपको कला के नए नमूने दिखाए जाते हैं. कला केवल पेंटिंग या मूर्तियां बनाना नहीं, बल्कि नीरस फर्नीचर में भी कला को घोला जा सकता है. कुर्सी जैसी साधारण चीज आपको दुनिया भर में मशहूर कर सकती है. आज आपको मिलवाते हैं नीदरलैंड्स के ऐसे कलाकार से जो प्रकृति से प्रेरणा लेकर नई चीजें रच रहा है. चुंबक, प्लास्टिक और लोहे के कमाल से यह कलाकार अजीबो गरीब स्टूल बना रहा है जो यूरोप में सैकड़ों यूरो के भाव बिक रहे हैं.
2. हमारी अगली कलाकार भी कुछ खास है. वह फर्नीचर या पेंटिंग बना कर कला नहीं करतीं, इनकी कला है उनका खेल- एक पहिए की साइकिल का खेल. बर्फीले रास्ते हों या पथरीली चट्टानें, वह कहीं भी इस पहिए के साथ सफर कर सकती हैं. जिस रास्ते पर पैदल चलने में घबराहट होती है, वहां वह एक पहिये से नीचे उतर आती हैं. वह अपने साथियों के साथ आल्प्स की पहाड़ियों को पार करते हुए जर्मनी से इटली भी जा चुकी हैं. वह फ्री स्टाइल की दो बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं और कभी कभार बर्लिन में अपनी साइकिल का आनंद उठाती नजर आ जाती हैं.
रिपोर्टः ईशा भाटिया
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन