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मवेशियों की तरह बिक रहे हैं इंसान

२ दिसम्बर २०१७

फार्म पर काम करने के लिए मजबूत लड़के, ऐसे विज्ञापनों के जरिये लीबिया में अफ्रीका के गरीब और मजबूर लोगों की मंडी लगी है. मवेशियों की तरह गुलामों की बोली लग रही है. फ्रेड मुवुन्यी का ब्लॉग.

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Libyen Falle für Flüchtlinge
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/D. Etter

वे न तो मवेशी हैं, न कल पुर्जे और न ही माल. वे अफ्रीकी पुरुष, महिलाएं और बच्चे हैं, जो अच्छे भविष्य की तलाश में यूरोप के लिए निकले थे. लेकिन उन्हें लीबिया में रोक लिया गया और अब उन्हें गुलाम बनाया जा रहा है.

यकीन करना भले मुश्किल हो, लेकिन सच्चाई यही है कि इंसानों की सेल लगी हुई है. वहां खरीदार भी हैं. कम से कम दाम करीब 400 डॉलर लगता है. शारीरिक डील डौल और उम्र से तय हो रहा है कि कौन कितने में बिकेगा.

Libyen Flüchtlinge
परदेस में अकेले पड़े लोगतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Turkia

अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन के वीडियो में कथित रूप से यह दिखाया भी गया कि युवा लड़के औसत दाम में बड़ी जल्दी बिक जाते हैं. नीलामी करने वाले एक शख्स ने अपने विज्ञापन में पश्चिमी अफ्रीका के एक ग्रुप का हवाला दिया. विज्ञापन में कहा गया कि खेत पर काम करने के लिए मजबूत लड़के चाहिए. मैंने कभी नहीं सोचा था कि 16 से 19 शताब्दी के बीच फलने फूलने वाली दास प्रथा 21वीं सदी में वापसी करेगी. इंसानियत के खिलाफ ऐसे अपराध किये जा रहे हैं और अधिकारों के लिए लड़ने वाले ग्रुप और सरकारें खामोश हैं.

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'स्वर्ग' का सुख भोगने आये थे, बन गये गुलाम

Kommentarbild Fred Muvunyi  PROVISORISCH
फ्रेड मुवुन्यी

इनमें से ज्यादातर युवा नाइजर, घाना और नाइजीरिया से आये. यूरोप पहुंचने के लिए उन्हें खतरनाक रास्ता लेना होगा. उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने भूमध्यसागर पार कर लिया तो बेहतर जिंदगी मिलेगी.

नाइजीरिया अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. दुनिया भर के तेल उत्पादकों की सूची में वह 13वें स्थान पर आता है. वहां हर दिन 20 लाख बैरल तेल निकाला जाता है. दूसरे देश नाइजर में भले ही तेल का उत्पादन कम हो, लेकिन वह भी अपने नागरिकों की देखभाल कर सकता है. तेल से समृद्ध एक और देश घाना गरीबी की चपेट में है.

इन तीन देशों ने भी अब तक अपने नागरिकों को गुलाम की तरह बेचे जाने के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है. लीबिया में दास बनाकर रखे गये लोगों को कैसे वापस लाया जाएगा, इस बारे में कोई प्लान नहीं बनाया गया है.

2015 में यूरोपीय संघ ने लीबिया को सीमा सुरक्षा और नियंत्रण को बेहतर करने के लिए पैसा दिया. फंड का मकसद था कि अफ्रीका के लोगों को अपना देश छोड़ने से रोका जा सके. ऑपरेशन सोफिया के कारण यूरोप की तरफ जाने वाले लोगों की संख्या में 20 फीसदी कमी आयी. यूरोपीय संघ के कदमों के चलते अफ्रीकी लोग भले ही भूमध्यसागर पार कर इटली न पहुंच जा रहे हों, लेकिन लीबिया में वे गुलाम जरूर बन रहे हैं. दास प्रथा या गुलामों का सौदा मानवता के खिलाफ अपराध है. सख्ती के साथ इसकी आलोचना होनी चाहिए और इस खत्म करने के गंभीर प्रयास होने चाहिए.

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फ्रेड मुवुन्यी