ममता की परेशानी बढ़ाता त्रिपुरा
५ मार्च २०१८ममता बनर्जी ने हालांकि इन नतीजों के लिए कांग्रेस और लेफ्ट की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि त्रिपुरा व बंगाल की राजनीतिक परिस्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है. वैसे, बंगाल में बीजेपी धीरे-धीरे सीपीएम और कांग्रेस को पीछे धकेलते हुए नंबर दो की कुर्सी पर काबिज हो रही है लेकिन नंबर एक पर रहने वाली तृणमूल कांग्रेस से उसका फासला बहुत ज्यादा है. फिलहाल तो त्रिपुरा के नतीजे ने साबित कर दिया है कि कुछ भी असंभव नहीं है.
ममता की दलील
चुनावी नतीजों के बाद ममता बनर्जी ने बीजेपी की कामयाबी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि लेफ्ट ने भगवा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है. वह कहती हैं, "कांग्रेस ने अगर चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस व दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल के उनके प्रस्ताव पर सहमति दे दी होती तो नतीजा अलग होता." मुख्यमंत्री का दावा है कि त्रिपुरा के नतीजों का बंगाल के चुनावों पर कोई असर नहीं होगा. ममता कहती हैं, "दो संसदीय सीटों और 26 लाख वोटरों वाले त्रिपुरा की जीत कोई खास मायने नहीं रखती. बीजेपी बंगाल व ओडिशा में कभी जीत नहीं सकती. उसका यह सपना कभी हकीकत में नहीं बदलेगा." ममता के मुताबिक, त्रिपुरा सीपीएम ने भगवा पार्टी के खिलाफ लड़ाई में कभी गंभीरता नहीं दिखाई थी. उसे इसी का नतीजा भुगतना पड़ा.
ममता को शायद पहले से ही इस खतरे का अहसास हो गया था. इसलिए नतीजों के दो दिन पहले ही विधानसभा में कहा था कि त्रिपुरा में लेफ्ट फ्रंट की जीत की स्थिति में उनको खुशी होती लेकिन, लेफ्ट ने वहां गलतियों की वजह से खुद अपनी कब्र खोद डाली है. सीपीएम की कट्टर दुश्मन रही ममता अगर उसकी जीत की कामना करती हैं तो उनके मन में मंडराते खतरे का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि अब पार्टी की निगाहें बंगाल पर हैं. त्रिपुरा का लालकिला फतह करने के बाद पार्टी बंगाल में नए हौसले के साथ आगे बढ़ेगी. यहां बीते लोकसभा चुनावों के बाद से ही लगभग हर चुनाव और उपचुनाव में बीजेपी को मिलने वाले वोटों में लगातार इजाफा हो रहा है. त्रिपुरा व पश्चिम बंगाल में इस लिहाज से काफी समानता है कि दोनों राज्यों में बांग्लाभाषी आबादी की तादाद ज्यादा है और यह दोनों बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ से पीड़ित हैं. बीजेपी यहां तृणमूल कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति के तहत घुसपैठ को बढ़ावा देने के आरोप लगाती रही है.
कांग्रेस का आरोप
त्रिपुरा के नतीजों के लिए ममता ने जहां कांग्रेस की गलती को जिम्मेदार ठहराया है वहीं कांग्रेस उस राज्य की मौजूदा परिस्थिति के लिए ममता को ही जिम्मेदार ठहराती है. बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व सांसद अधीर चौधरी कहते हैं, "त्रिपुरा में ममता ने ही कांग्रेस को कमजोर किया है. उन्होंने पहले पार्टी को छह विधायकों को तोड़ कर उनको तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया और उसके बाद वह सब बीजेपी में चले गए." उनका कहना है कि त्रिपुरा में कांग्रेस को बीजेपी से जितना नुकसान नहीं हुआ, उससे ज्यादा नुकसान ममता की तृणमूल कांग्रेस से हुआ है. वह ममता को राज्य में कांग्रेस को कमजोर करने और उसका खाता तक नहीं खुलने के लिए जिम्मेदार करार देते हैं.
त्रिपुरा मॉडल
त्रिपुरा की कामयाबी के बाद प्रदेश बीजेपी अब बंगाल में भी त्रिपुरा मॉडल को लागू करने पर विचार कर रही है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "अपनी इस रणनीति के तहत पार्टी ने इस साल होने वाले पंचायत चुनावों से पहले राज्य के सभी 77 हजार मतदान केंद्रों पर घर-घर जाकर अभियान चलाने का फैसला किया है." बीजेपी ने त्रिपुरा में इसी रणनीति पर चल कर भारी कामयाबी हासिल की है. घोष कहते हैं कि त्रिपुरा की तर्ज पर पार्टी अब बंगाल में भी बदलाव की रणनीति पर काम कर रही है. हम यहां लोगों के समक्ष तृणमूल कांग्रेस का विकल्प पेश करेंगे, सूत्रों के मुताबिक, अमित शाह अब जल्दी ही राज्य में इस योजना की शुरुआत करेंगे. बीजेपी ने पंचायत चुनावों को क्वार्टर फाइनल, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को सेमी-फाइनल और वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों को फाइनल करार दिया है.
पूर्वोत्तर और खासकर त्रिपुरा के नतीजों के बाद बदले हुए सियासी समीकरणों ने अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है. हालांकि तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि त्रिपुरा व बंगाल की जमीनी परिस्थिति में काफी अंतर है. उनका दावा है कि बीजेपी का फार्मूला यहां बेअसर साबित होगा. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि त्रिपुरा भले बंगाल के मुकाबले बहुत छोटा राज्य है. लेकिन राज्य में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट के राजनीतिक हाशिए पर पहुंचने की वजह से यहां भी त्रिपुरा जैसे ही हालत हैं. बीजेपी विपक्ष की खाली जगह पर कब्जे की ओर बढ़ रही है. ऐसे में उसे कमतर आंकना गलती होगी. बंगाल की राजनीतिक नब्ज पर गहरी पकड़ रखने वाली ममता से बेहतर इस बात को भला कौन समझ सकता है.