'भ्रष्टाचार जुर्म तो नहीं...'
१७ अगस्त २०१३दुर्गा शक्ति नागपाल पर कथित तौर पर नोएडा में एक मस्जिद की दीवार ढहाने के आदेश देने का आरोप है. इसके बाद सांप्रदायिक तनाव पैदा होने के खतरे का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया. मामले में स्थानीय रेत माफिया के शामिल होने की बात सामने आने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर कहा कि इस बात का पूरा ख्याल रखा जाए कि दुर्गा के साथ नाइंसाफी न हो. तब से इस मामले में नए नए गवाह और बयान जुड़ते जा रहे हैं. अभी तक साफ नहीं है कि क्या नागपाल वाकई दोषी हैं या फिर राजनीति का शिकार हो रही हैं. (कैसे बचें पर्दाफाश करने वाले!)
भारत जैसे देश में जहां महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों की रक्षा हमेशा ही विवादास्पद विषय रहता है, क्या एक महिला अधिकारी के लिए तंत्र में रहना और अपनी जिम्मेदारियों को अंजाम देना उतना आसान है? एक युवा प्रशासनिक महिला अधिकारी अपने अनुभवों के बारे में डॉयचे वेले के साथ बात करने को तो तैयार हो गईं लेकिन अपना नाम सामने ना आने की शर्त पर. उनकी यह झिझक भी प्रशासनकि तंत्र की कमजोरियों और उनमें मौजूद असुरक्षा की भावना दिखाती है.
प्रशासनिक सेवा में आने के बाद सब कुछ आपको वैसा ही लगा जैसा आपने सोचा था या कुछ और?
जब हम अधिकारी बनते हैं तब इस बात का एहसास होता है कि जो हमने पढ़ा और सीखा है, असलियत उससे बहुत अलग है. एक स्थिति ऐसी भी आ जाती है जब भ्रष्टाचार जुर्म की श्रेणी में आता ही नहीं बल्कि तर्कसंगत जरूरत बन जाता है. इसके बावजूद बेदाग रहना मुमकिन है लेकिन उसके लिए आपको अपने मूल्यों की बलि देनी पड़ती है. शुरुआती दो तीन साल तो सिर्फ सिस्टम को समझने में ही निकल जाते हैं.
भारत में महिलाओं का एक बड़ा तबका मर्दों के खराब बर्ताव का शिकार है. लेकिन आपने तो एक अधिकारी के रूप में समाज का दूसरा चेहरा देखा होगा?
उच्च पद पर होने के बावजूद महिला अधिकारी होने के नाते कई बार हमारे अधीन काम करने वाले भी हमें वह सम्मान नहीं देते जितना कि किसी पुरुष अधिकारी को देते हैं. उन्हें महिलाओं से आदेश लेना पसंद नहीं. हालांकि ऐसे लोग कम हैं. एक अधिकारी अपनी टीम के सहयोग से ही काम को अंजाम दे सकता है लेकिन कई बार ऐसे लोग काम में मददगार साबित होने के बजाय रोड़े अटकाते हैं.
तो क्या आप सिस्टम से संतुष्ट नहीं हैं?
मैं ऐसा नहीं कह सकती कि मुझे सिस्टम से कोई शिकायत है. हां, वह गलतफहमी जो मैं लेकर आई थी कि एक बार अधिकार हाथ में आने के बाद मैं कुछ अच्छे बदलाव ला सकती हूं, अब दूर हो गई है. समाज का कुछ भी भला करने से पहले आपको कुछ नियम, कानून और दूसरी बातें ध्यान में रखनी होती हैं. सिस्टम अपनी जगह सही है लेकिन इसको चलाने वाले जब तक सही ना हों आप चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते हैं.
क्या आपको कभी किसी राजनीतिक या सामाजिक दबाव में ऐसे फैसले लेने पड़े जो आपको सही ना लगे हों?
हां मुझे भी लेने पड़े हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे समाज के खिलाफ फैसले थे, बस वे मेरे अपने विचारों के खिलाफ थे. मैं हमेशा कोशिश करती हूं कि मेरे फैसले जरूरत और कानून के अनुसार ही हों. ऐसे अधिकारी भी हैं जो ईमानदार अधिकारियों की कद्र और इज्जत करते हैं, वहीं वो लोग भी हैं जो ऐसा नहीं करते.
दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में आपकी क्या राय है?
जहां तक दुर्गा के मामले की बात है उन्होंने ऐसा फैसला क्यों लिया यह खुद दुर्गा के अलावा और कोई सही सही नहीं जानता. इस मामले की अभी जांच चल रही है. लेकिन जिस तरह उनका निलंबन हुआ और जिस तरह केन्द्र सरकार ने मामले में हस्तक्षेप किया, इस सबको देखते हुए किसी भी ईमानदारी अधिकारी को अपने रास्ते बदलने की कोई जरूरत नहीं नजर आती.
कभी इस बात का डर लगता है कि आप उनकी जगह होतीं तो?
इस बात की चिंता कभी कभी होती है मेरे किस फैसले का क्या प्रभाव होगा, लेकिन भारतीय संविधान में प्रशासनिक अधिकारियों के अधिकारों का खास ख्याल रखा गया है. हमारा निलंबन या किसी दूसरी जगह तबादला हो सकता है लेकिन हमसे हमारी नौकरी ले लेना आसान नहीं है.
भारतीय प्रशासनिक सेवा में करीब चार साल बिताने के बाद आपको क्या लगता है, विवादों से दूर रहने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
मैं आपके इस सवाल का जवाब नहीं दे सकती.
इंटरव्यू: समरा फातिमा
संपादन: निखिल रंजन