भारत सरकार और रिजर्व बैंक में तनाव है?
३१ अक्टूबर २०१८भारत सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता "जरूरी" है. कहा जा रहा है कि देश के केंद्रीय बैंक के साथ भारत सरकार की तनातनी सार्वजनिक होने पर निवेशकों की चिंता देख सरकार ने यह बयान दिया है. बुधवार को इस बयान के आने से पहले भारतीय शेयर बाजार और रुपये की कीमत गिर गई थी. मीडिया में ऐसी खबरें आ रही थीं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल सरकार के साथ चली आ रही तनातनी की वजह से इस्तीफा दे सकते हैं. खबरों में तो यहां तक कहा गया कि सरकार ने सार्वजनिक हित के मसलों पर केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निर्देश देने के लिए ऐसे अधिकार का इस्तेमाल किया जो आमतौर पर नहीं किया जाता.
वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि रिजर्व बैंक की "स्वतंत्रता एक अत्यावश्यक और स्वीकृत शासन की जरूरत" थी. इसके साथ ही सरकार की तरफ से कहा गया है कि केंद्रीय बैंक के साथ वह विस्तृत विमर्श जारी रखेगा ताकि मुद्दों पर अपना आकलन और संभावित हल के बारे में सुझाव दे सके.
हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि क्या सरकार ने रिजर्व बैंक को निर्देश देने के लिए पहली बार आरबीआई एक्ट के तहत काम किया है. भारत के प्रमुख अखबार 'द इकोनॉमिक टाइम्स' में छपी खबरों के मुताबिक सरकार ने इस अधिकार का इस्तेमाल कर गवर्नर को पत्र लिखे हैं. भारत के दो टीवी चैनलों ने भी इससे पहले खबर दी थी कि उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं. रिजर्व बैंक ने इस बारे में प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया.
मुंबई में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की प्राइमरी डीलरशिप में प्रमुख अर्थशास्त्री ए प्रसन्ना ने कहा, "बयान अस्पष्ट है और कई मुद्दे हैं जिनके बारे में पूरी तरह से स्पष्टीकरण नहीं देता. फिर भी ऐसा लग रहा है कि वित्त मंत्रालय आंच को कम करने की कोशिश में है." इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि धारा 7 के अधिकारों का इस्तेमाल गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की तरलता से लेकर कमजोर बैंकों की पूंजी जरूरतों के साथ ही छोटी और मझोली कंपनियों के लिए कर्ज तक के मामलों में किया गया है.
रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तनाव की बात तब सामने आई, जब डेपुटी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को कमजोर करना "सशक्त रूप से विनाशकारी" हो सकता है. साफ है कि बैंक पर अगले साल मई के आम चुनाव से पहले सरकार की तरफ से नीतियों में छूट और अपने अधिकारों को कम करने के लिए दबाव है और वह उसके खिलाफ जोर लगा रही है.
निवेशक इस बात से चिंता में हैं कि सरकार और रिजर्व बैंक के बीच चली आ रही तनातनी फैसले लेने को प्रभावित कर सकती है. खासतौर पर ऐसे वक्त में जब भारत का वित्तीय बाजार बड़े बुनियादी निर्माण के लिए धन देने वाली कंपनियों के कर्ज भुगतान में नाकामी के कारण संकट में है. इसकी वजह से पूरे नॉन बैंकिंग फाइनेंस सेक्टर में तरलता(लिक्विडिटी) की भारी कमी आ सकती है.
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज में इंस्टीट्यूशनल रिसर्च के प्रमुख धनंजय सिन्हा कहते हैं, "सार्वजनिक बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के बीच हमारा वित्तीय तंत्र मोटे तौर पर कमजोर है, अगर रिजर्व बैंक के शीर्ष अधिकारी पद छोड़ देते हैं तो यह आशंका होगी की अस्थिरता बनी रहेगी और इसका अर्थव्यवस्था और बाजार पर असर हो सकता है."
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था फ्रांस को पीछे छोड़ दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई और अब यह ब्रिटेन से ज्यादा पीछे नहीं है.
आचार्य का बयान सरकार और रिजर्व बैंक के बीच 48.73 अरब डॉलर के रिजर्व को लेकर लंबे समय से चल रही खींचतान के बाद आया. देश के आर्थिक घाटे को कम करने के लिए रिजर्व बैंक इस रिजर्व का इस्तेमाल करे या नहीं इसे लेकर दोनों में विवाद है.
सरकार के अधिकारी रिजर्व बैंक से कमजोर बैंकों के लिए कर्ज लेने के नियमों को आसान बनाने की भी मांग कर रहे हैं. यहां तक कि रिजर्व बैंक के नियामक अधिकारों में कटौती कर एक नई भुगतान नियामक एजेंसी भी बनाने की तैयारी है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को केंद्रीय बैंक पर 2008-2014 के दौरान कर्ज लेने में आई तेजी को रोकने में नाकम रहने का आरोप लगाया. जेटली के मुताबिक इसकी वजह से बैंक पर 150 अरब डॉलर का कर्ज चढ़ गया.
गवर्नर उर्जित पटेल और उनके सहयोगी जल्दी ही वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कर सकते हैं. इस बीच टीवी चैनलों पर यह भी खबर आ रही है कि पटेल ने रिजर्व बैंक के बोर्ड की बैठक 19 नवंबर को बुलाई है.
एनआर/एके (रॉयटर्स)