भारत यूरोप संधि पर जर्मनी का जोर
११ अप्रैल २०१३बर्लिन में गुरुवार को जर्मनी और भारत के नेताओं की अहम बैठक हुई. दोनों देशों के कई केंद्रीय मंत्रियों के साथ हुए सम्मेलन की अध्यक्षता भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने की. इसके बाद सिंह और मैर्केल ने मुक्त व्यापार वार्ताओं को शीघ्र पूरा करने का पक्ष लिया. 2007 से चल रही वार्ता में अभी तक संघ और भारत सहमति नहीं हासिल कर पाए हैं. यूरोपीय संघ के लिए 1.2 अरब की आबादी वाला भारत अहम बाजार है तो भारत के लिए यूरोप निवेश का अहम स्रोत भी.
सहमति की उम्मीद
लेकिन अब सहमति की उममीद बन रही है. चांसलर मैर्केल ने कहा, "एक ऐसी स्थिति है जिसमें ऐसी संधि हासिल करने लायक लग रही है, लेकिन हमने सभी समस्याओं का हल नहीं पाया है." जर्मनी के लिए ऑटोमोबाइल उद्योग बहुत ही महत्वपूर्ण है. वह इस मसले पर रियायत चाहता है तो भारत की कृषि और रोजगार के क्षेत्र में मांगें हैं. मैर्केल ने संकेत दिया कि समस्या हल धीरे धीरे ही हो सकता है.
भारतीय पक्ष मानता है कि यूरोपीय कारों का उत्पादन भारत में कर शुल्क की समस्या सुलझा सकता है. सिंह ने कहा कि समझौता जल्द होना चाहिए. भारत और जर्मनी दोनों ही जगह चुनाव होने वाले हैं. दूसरी ओर अमेरिका ने भी यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार में दिलचस्पी दिखाई है और एक बार अगर दोनों की बातचीत शुरू हो जाती है तो प्राथमिकताएं बदल सकती हैं.
यूरोप की मांग
यूरोपीय देश बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में भी रियायतों की मांग कर रहे हैं. मनमोहन सिंह ने इस इलाके के उदारीकरण का भरोसा दिलाया है लेकिन साथ ही कहा कि अंतिम फैसला संसद को लेना होगा. मैर्केल ने सेवा क्षेत्र और बौद्धिक संपदा के इलाके को ऐसा मुद्दा बताया, जिस पर और विचार करने की जरूरत है. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अहले हफ्ते ब्रसेल्स में होने वाली बैठक में कुछ मुद्दे पर सहमति बन सकती है, लेकिन अंतिम फैसला होने में थोड़ा वक्त लगेगा.
जर्मनी भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है लेकिन आर्थिक मुश्किलों के कारण दोनों देशों के पारस्परिक व्यापार में पिछले साल कमी आई है. 2011 के मुकाबले 2012 में द्विपक्षीय कारोबार में 5.4 फीसदी की कमी हुई. जर्मनी का निर्यात 4.5 फीसदी घट कर साढ़े 17 अरब यूरो हो गया और आयात में करीब सात फीसदी की कमी आई और वह गिर कर सात अरब हो गया. व्यापारिक संतुलन के लिए भारत को अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए दिमाग पर जोर डालना होगा.
दोनों नेताओं ने कोरिया, ईरान और सीरिया पर भी बातचीत की. भारतीय प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मध्यपूर्व के इलाके के महत्व पर जोर दिया और कहा कि विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से होना चाहिए. मैर्केल ने कहा कि हम इस बात का समर्थन करते हैं कि परमाणु शस्त्र हासिल नहीं किए जाएं. मनमोहन सिंह ने ईरान के परमाणु तकनीक के नागरिक इस्तेमाल के अधिकार पर जोर दिया लेकिन साथ ही कहा कि उसे एनपीटी संधि के प्रावधानों का पालन करना चाहिए.
दूसरे दौर की बातचीत
भारत और जर्मनी के बीच मंत्रिस्तरीय वार्ता का यह दूसरा दौर था. पहली बैठक का आयोजन भारत ने 2011 में नई दिल्ली में किया था. आज की बातचीत के अनुभवों के बारे में भारतीय अधिकारी इसे अपना अद्भुत अनुभल बताते हैं. इस मौके पर विभिन्न मंत्रालयों के प्रभारियों ने द्विपीक्षीय संबंधों का व्यापक मूल्यांकन किया और उसे प्रधानमंत्री और चांसलर की उपस्थिति में पूर्ण सभा में पेश किया. भारतीय विदेश सचिव रंजन मथाई ने दोनों देशों के परामर्शी बैठक को अत्यंत सफल और बातचीत का नया तरीका बताया.
इस मौके पर दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण समझौते किए. इसमें भारतीय स्कूलों में जर्मन भाषा को प्रोत्साहन देना, विश्वविद्यालयों के बीच रणनैतिक सहयोग विकसित करना, व्यवासायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग करना, नागरिक सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना और अक्षत ऊर्जा के विकास और नेटवर्क निर्माण में साझेदारी शामिल है. नागरिक सुरक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों के विशेषज्ञ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन, शहरी सुरक्षा और नागरिक सुरक्षा के सामाजिक पहलू पर परियोजनाएं तैयार करेंगे. दोनों देशों ने उच्च तकनीक के क्षेत्र में निर्यात संबंधी फैसलों को तेज करने के लिए हाई सिक्योरिटी ग्रुप बनाने का फैसला किया है जो दोनों सरकारों को सलाह देगा.
रणनैतिक साझेदारी पर भारत और जर्मनी के विचार एक दूसरे से एकदम अलग रहे हैं. भारत के लिए सामरिक सहयोग का मतलब रक्षा क्षेत्र में सहयोग से रहा है जबकि जर्मनी का जोर भविष्य की सुरक्षा करने वाले ऊर्जा, खाद्य और विकास सुरक्षा जैसे मुद्दों से रहा है. दूसरी परामर्श बैठक के बाद लगता है कि जर्मनी भारत को अपनी बात समझाने में कामयाब रहा है. विदेश सचिव रंजन मथाई ने कहा, "राष्ट्रीय क्षमता विकसित करना भी देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है."
रिपोर्टः महेश झा, बर्लिन
संपादनः अनवर जे अशरफ