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भारत में कई जन प्रतिनिधि ही यौन अपराधों के आरोपी हैं

१२ दिसम्बर २०१९

जिस देश में हर घंटे 40 से भी ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं, उस देश में कानून बनाने वालों में ही 76 ऐसे लोग हैं जिन पर खुद इस तरह के अपराध का आरोप है.

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Indien Kuldeep Singh Sengar, Angeklagter in Vergewaltigungsfall
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के रोज नए मामलों के बीच इन दिनों भारत में यह निरंतर चिंता का विषय बना हुआ है कि ये हिंसा क्यों थमती नहीं. पर एक नई रिपोर्ट ने एक नए प्रश्न को जन्म दिया है-  जब जनप्रतिनिधि ही इस तरह के मामले में शामिल हों तब सुधार की कितनी उम्मीद है?

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) एक गैर सरकारी संस्था है जो प्रत्याशियों के चुनाव आयोग में जमा किए गए चुनावी हलफनामों से जानकारी निकाल कर उसकी समीक्षा करती है. एडीआर ने अपनी एक नई रिपोर्ट में दावा किया है कि कम से कम 76 सांसदों और विधायकों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ जुर्म के मामले दर्ज हैं. इन जन प्रतिनिधियों ने यह जानकारी खुद ही चुनाव आयोग को दी है. इनमें 58 विधायक हैं और 18 सांसद. इनमें से नौ सांसद और विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने बलात्कार जैसे अपराध के मामले घोषित किए हैं. इनमें से तीन सांसद हैं और छह विधायक हैं.

अगर इन जन प्रतिनिधियों के दलों की बात करें, तो इनमें सबसे ज्यादा बीजेपी के नेता है. केंद्र में और 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्तारूढ़ बीजेपी के 21 सांसद और विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराध के घोषित मामले हैं. कांग्रेस के ऐसे 16 सांसद व विधायक हैं और वाईएसआरसीपी के 7 हैं. 

अगर स्थिति को राज्यवार देखें तो 16 ऐसे विधायकों और सांसदों के साथ पश्चिम बंगाल सबसे आगे है. इसके बाद स्थान है ओडिशा और महाराष्ट्र हैं, जहां ऐसे 12-12 दागी हैं. और भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस तरह की आरोपों वाले जन प्रतिनिधियों  की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है. 2009 से 2019 के बीच लोकसभा में महिलाओं के खिलाफ घोषित आरोप वाले सांसदों की दो सांसदों से बढ़कर 18 हो गई. 

यह तो बात हुई उन लोगों की जो चुनाव जीते. इनसे कहीं ज्यादा बड़ी संख्या उन कुल उम्मीदवारों की हैं जो चुनाव हार गए. पिछले पांच साल में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में 572 उम्मीदवार ऐसे थे जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं. इनमें से 410 ऐसे थे जिन्हें किसी न किसी राजनितिक दल ने टिकट दिया था. असफल उम्मीदवारों की सूची में महाराष्ट्र सबसे आगे है, जहां 84 ऐसे उम्मीदवार थे. बिहार से ऐसे 75 उम्मीदवार थे और पश्चिम बंगाल से 69.  

भारत में अभियुक्तों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी नहीं है. चुनाव ना लड़ने का प्रतिबंध उन्हीं पर लागू है जिनके अपराध सिद्ध हो जाते हैं और वे अपराधी साबित हो जाते हैं. अगर किसी जन प्रतिनिधि के खिलाफ अपराध साबित हो जाता है और उसे न्यूनतम दो साल की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाती है. वह नेता जब सजा काट कर बाहर निकलता है तो उसे अगले छह साल तक चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होती.  इसी व्यवस्था का फायदा आरोपी उम्मीदवार और पार्टियां उठाती हैं. भारत में मुकदमे लंबे चलते हैं और जब तक कोई अपराधी सिद्ध नहीं हो जाता तब तक पार्टियां उसे टिकट देती रहती हैं.

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