भारत ने वायरस को कैसे काबू में किया है
१६ फ़रवरी २०२१कोरोना वायरस की महामारी ने जब भारत में कदम बढ़ाए तो लगा कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश की कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं इसका बोझ नहीं सह पाएंगी और स्थिति भयानक होगी. कई महीने तक संक्रमित लोगों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ती रही और एक समय यह भी लगा कि भारत अमेरिका को संक्रमण के मामले में पीछे छोड़ देगा और यहां सबसे ज्यादा लोग वायरस की चपेट में आएंगे.
हालांकि सितंबर में संक्रमण की दर नीचे जाने लगी और अब यहां हर रोज बमुश्किल 11,000 लोग संक्रमित हो रहे हैं. सबसे खराब हालत में प्रतिदिन संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या एक लाख से ज्यादा थी. सार्वजनिक स्वास्थ्य के जानकारों के साथ ही डॉक्टर और रिसर्चर भी यह देख कर हैरान हैं. उन लोगों ने अचानक संख्या गिरने के कई संभावित कारण सुझाए हैं. वैज्ञानिक यह भी अनुमान जता रहे हैं कि भारतीय लोगों में इस वायरस से संरक्षण देने वाली कोई चीज पहले से ही मौजूद थी.
भारत सरकार ने लोगों के मास्क पहनने को इसका कुछ श्रेय दिया है. भारत में सार्वजनिक जगहों पर मास्क को जरूरी किया गया है और कुछ शहरों में इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना लगाया गया है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति को समझना कहीं ज्यादा जटिल है क्योंकि बड़ी बात यह भी है कि संक्रमण में गिरावट हर इलाके में है और इनमें से कई इलाके ऐसे हैं जहां मास्क पहनने के नियम का पालन प्रभावी तरीके से नहीं हुआ है. इस पहेली को सुलझाना इतना आसान नहीं है, लेकिन अगर यह सुलझ जाए तो इससे अधिकारियों को दूसरे इलाकों में कोरोना पर लगाम कसने में मदद मिलती. भारत के अशोका यूनिवर्सिटी में वायरसों का अध्ययन करने वाले डॉ. शाहिद जमील का कहना है, "अगह हम कारण नहीं जानते तो मुमकिन है कि हम अनजाने में ऐसी चीजें कर रहे हैं जो इसे उलझाने में मदद कर सकती हैं."
हर्ड इम्युनिटी आ गई है?
दूसरे देशों की तरह ही भारत में भी बहुत से संक्रमित लोगों का पता नहीं चल सका, इसके साथ ही एक सवाल भारत में संक्रमित लोगों की संख्या गिनने के तरीके पर भी है. हालांकि अस्पतालों में आ रहे मरीजों की संख्या भी बीते हफ्तों में तेजी से कम हुई है. इससे पता चलता है कि वायरस के फैलाव में कमी आई है. नवंबर में जब संक्रमित लोगों की संख्या 90 लाख को पार गई तभी दिल्ली के अस्पातलों में वेंटिलेटर वाले बिस्तर 90 फीसदी भर गए. बीते गुरुवार को इनमें से महज 16 फीसदी बिस्तर ही भरे हुए थे.
इस कामयाबी का श्रेय टीकाकरण को नहीं दिया जा सकता क्योंकि भारत में टीके जनवरी में लगने शुरू हुए हैं. हालांकि ज्यादा लोगों के टीका लगने के साथ हालात और बेहतर होंगे इसमें कोई दो राय नहीं है. बहुत से विशेषज्ञ देशों में नजर आए वायरस के उस नए संस्करण को लेकर चिंता जता रहे हैं जो ज्यादा तेजी से फैल रहा है.
संक्रमितों की संख्या घटने के पीछे एक संभावित कारण यह माना जा सकता है कि वहां हर्ड इम्युनिटी आ गई है. भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी की विनीता बल मानती हैं कि हर्ड इम्युनिटी इसके पीछे हो सकता है. हर्ड इम्युनिटी का मतलब उस स्तर से है जहां किसी समुदाय के इतने लोगों में इम्युनिटी विकसित हो गई है कि अब वहां संक्रमण नहीं हो रहा. यह या तो अधिक संख्या में लोगों के बीमार होने की वजह से हुआ या फिर टीकाकरण के कारण.
हालांकि विशेषज्ञ यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर कुछ इलाकों में हर्ड इम्युनिटी संख्या गिरने की वजह है तो देश की बड़ी आबादी अब भी खतरे में है और उन्हें सावधानी बरतना जारी रखना चाहिए. यह सावधानी वाकई जरूरी है क्योंकि एक नई रिसर्च में पता चला है कि वायरस के एक संस्करण से संक्रमित हुए लोग ठीक होने के बाद दूसरे संस्करण की चपेट में आ सकते हैं. उदाहरण के लिए ब्राजील के मानाउस में रहने वाले लोगों में 75 फीसदी के शरीर में वायरस के एंटीबॉडी अक्टूबर में थे. इसके बाद वहां जनवरी में फिर से मामले बड़ी तेजी से बढ़ने लगे. विनीता बल ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इस सवाल का किसी के पास बिल्कुल सही जवाब है."
पांच में से एक भारतीय वायरस की चपेट में
भारत में स्वास्थ्य एजेंसियों ने जो लोगों की जांच की है उसके आधार पर अनुमान लगाया गया है कि करीब 27 करोड़ लोगों में एंटीबॉडी मौजूद है यानी हर पांच में से एक भारतीय टीकाकरण के पहले वायरस की चपेट में आया है. कोरोना वायरस की हर्ड इम्युनिटी के लिए यह दर कम से कम 70 फीसदी होनी चाहिए. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के प्रमुख डॉ. बलराम भार्गव का कहना है, "संदेश साफ है कि आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी खतरे में है."
हालांकि सर्वे से भारत में संक्रमितों की संख्या गिरने के बारे में कई और दिलचस्प बातें पता चली हैं. इसने दिखाया है कि ज्यादा से ज्यादा लोग गांव की बजाय शहरों में संक्रमित हुए हैं. इसके साथ ही वायरस धीरे धीरे ग्रामीण इलाकों की तरफ जा रहा है. पब्लिक हेंल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी का कहना है, "ग्रामीण इलाकों में आबादी का घनत्व कम है, लोग खुली जगहों में काम करते हैं और उनके घर भी हवादार हैं." जो शहरी इलाके हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रहे हैं वहां भी संक्रमण को कई तरीकों से सीमित किया जा रहा है. इनमें मास्क और सामाजिक दूरी सबसे प्रमुख है. रेड्डी का कहना है कि वायरस धीरे धीरे गांवों की तरफ जा रहा है, शायद इसी वजह से शहरों में संक्रमित लोगों की संख्या घट रही है.
इसके अलावा एक संभावना यह भी है कि भारत के लोग हैजा, टायफॉयड और टीबी जैसी कई बीमारियों से लड़ते रहे हैं. इन बीमारियों के संपर्क में रहने की वजह से उनके शरीर में उनसे लड़ने की ताकत भी आई है और उसके लिए इम्युनिटी भी विकसित हुई है. यही इम्युनिटी वायरस से शुरुआती तौर पर लड़ने में कारगर साबित हो रही है. डॉ. शाहिद जमील का कहना है, "अगर कोविड वायरस को फेफड़े तक पहुंचने से पहले नाक या गले में भी नियंत्रित किया जा सके तो यह खतरनाक नहीं होगी. स्वाभाविक इम्युनिटी इसी स्तर पर काम करती है और वायरस के संक्रमण को फेफड़े तक पहुंचने से रोकती है."
अच्छी खबरों के बावजूद वायरस के नए संस्करणों के उभार से भारत और दुनिया के दूसरे कई हिस्सों के लिए चिंता बनी हुई है. वैज्ञानिकों ने भारत में भी कई संस्करणों की पहचान की है. इनमें से कुछ ऐसे हैं जो पुराने संस्करणों की चपेट में आ चुके लोगों को भी अपना शिकार बना रहे हैं. हालांकि इन वायरसों का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नतीजों का अभी अध्ययन किया जा रहा है.
विशेषज्ञ इस बात पर भी विचार कर रहे हैं कि क्या नए संस्करण दक्षिणी राज्य केरल में नए संक्रमणों के बढ़ने के पीछे हैं. केरल ने कोरोना को प्रभावी रूप से रोकने में सफलता पाई थी. हालांकि फिलहाल पूरे भारत में संक्रमित होने वाले लोगों में से आधे इसी राज्य के हैं. सरकार की तरफ से कराई रिसर्च इसके लिए नए संक्रमणों को दोषी मान रही है.
भारत की कोरोना वायरस से जंग में सफलता का कारण साफ नहीं है. ऐसे में जानकारों की चिंता है कि कहीं लोग बचाव के उपायों को ना छोड़ दें. भारत के ज्यादातर हिस्से में जिंदगी सामान्य होने लगी है. जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के डॉ. जीश्नु दास पश्चिम बंगाल सरकार को कोरोना वायरस की महामारी से नियंत्रण के उपायों में सलाह दे रहे हैं. उनका कहना है, "हम यह नहीं जानते कि क्या वायरस दो तीन चार महीने में वापस आएगा."
एनआर/आईबी (एपी)
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