भारत चीन विवाद में क्या अरुणाचल पर निशाना है
३१ अगस्त २०२०चीन ने अरुणाचल प्रदेश से सटे अपने सीमावर्ती इलाके से तिब्बतियों को हटाना शुरू कर दिया है. हालांकि इस समय भारत के साथ लद्दाख के विभिन्न मोर्चों पर विवाद चल रहा है और भारत चीन से अपने सैनिकों को अप्रैल वाली स्थिति पर वापस करने की मांग कर रहा है, चीन तवांग के पास स्थित सीमावर्ती इलाकों मेंअपनी सैन्य मौजूदगी मजबूत करने में लगा है. इसी इलाके से कुछ ही दूरी पर वह सतह से हवा में मार करने वाली मसिाइलें तैनात कर रहा है.
सीमा पर सक्रियता
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि दक्षिण पश्चिम चीन में शन्नान काउंटी से तमाम लोग हटाए जा रहे है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन भारत और भूटान से लगे अपने 96 गांवों के लोगों को सीमा से दूर नए घर बनाकर बसा रहा है.
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इन नए घरों में ग्रामीणों के लिए बिजली, पानी और इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराई गई है. चीन ने 30 सितंबर तक सभी 96 गांवों के लोगों को नई जगह बसाने का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा है. उसने भारत-भूटान सीमा पर स्थित डोकलाम में भी मिसाइलें तैनात की हैं. हाल में भूटान के साथ उसके विवाद के निशाने पर भी अरुणाचल ही था.
हालांकि चीन का दावा है कि सीमा से तिब्बती लोगों को हटाने का काम वर्ष 2018 में ही शुरू हो गया था. उस समय ले गांव के 24 घरों के 72 लोगों को नए घरों में शिफ्ट कर दिया गया था. यह नए घर उनके मूल गांव से काफी दूर बनाए गए हैं. साफ है कि चीन की मंशा सीमावर्ती इलाकों को खाली कराने की है. हालांकि उसका कहना है कि इससे तिब्बती लोगों की आमदनी बेहतर हो रही है. लेकिन इसकी टाइमिंग से उसके दावों पर सवाल उठ रहे हैं.
निगाहें अरुणाचल पर
दरअसल, चीन की निगाहें शुरू से ही अरुणाचल प्रदेश और बौद्ध मठ तवांग पर रही हैं. वर्ष 1962 के युद्ध के समय भी तवांग पर उसका कब्जा हो गया था. लेकिन बाद में युद्धविराम के तहत उसे पीछे हटना पड़ा था. चीन तवांग को अपने साथ लेकर तिब्बत की तरह ही प्रमुख बौद्ध स्थलों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है. वह तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है. उसका दावा है कि तवांग और तिब्बत में काफी सांस्कृतिक समानताएं है. तवांग मठ को एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.
अरुणाचल को अपना हिस्सा मानने की वजह से ही वह दलाई लामा, भारतीय प्रधानमंत्री और दूसरे शीर्ष मंत्रियों के दौरों का विरोध करता रहा है. इस राज्य के लोगों को स्टैपल वीजा जारी करने के चीनी फैसले का भी काफी विरोध हुआ था. लेकिन चीन अपने रवैए पर कायम रहा. इस राज्य पर चीन के दावों में कोई दम नहीं है. उसने वर्ष 1951 में तिब्बत पर कब्जा किया था जबकि वर्ष 1938 में खींची गई मैकमोहन लाइन के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है. तवांग भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए भारत उस पर किसी भी सूरत में कब्जा छोड़ नहीं सकता. तवांग के कब्जे में आने पर ही चीन देर-सबेर पूरे राज्य पर अपना दावा ठोंक सकता है.
प्रदेश की खासियत
देश के पूर्वोत्तर छोर पर बसा अरुणाचल प्रदेश अपने आप में कई खासियतें समेटे है. इस राज्य में आबादी का अनुपात भी दिलचस्प है. राज्य की आबादी में महज 10 प्रतिशत लोग तिब्बती हैं. 68 प्रतिशत आबादी भारत-मंगोलियाई जनजातियों की है और बाकी लोग असम और नागालैंड से यहां आकर बसे हैं. 37 प्रतिशत की आबादी के साथ हिंदू अब भी राज्य में सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है. बौद्धों की आबादी 13 फीसदी है. राज्य में 50 से ज्यादा भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं. अरुणाचल की करीब दस लाख की आबादी 17 शहरों और साढ़े तीन हजार से ज्यादा गांवों में फैली है.
सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण तवांग की सीमाएं तिब्बत और भूटान से मिलती हैं. इसी वजह से हाल में चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद को तूल देते हुए उसके साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य पर दावा ठोका है. यह इलाका तवांग से सटा है. इस इलाके पर कब्जे के बाद चीन सीधे असम तक पहुंच सकता है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन की मंशा लद्दाख में भारत को उलझाकर अरुणाचल प्रदेश व खासकर तवांग पर दबाव बनाने की है. हाल के दिनों में सीमा पर उसकी ओर से तैनात मिसाइलें और बख्तरबंद टुकड़ियां उसकी इस रणनीति का सबूत हैं. उसने डोकलाम में भी मिसाइलें तैनात करते हुए सैनिकों की तादाद बढ़ा दी है.
'स्थायी समाधान जरूरी'
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीवन लामा कहते हैं, "भूटान की निगाहें शुरू से ही अरुणाचल प्रदेश पर हैं. वह तवांग समेत पूरे राज्य को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है. भूटान के साथ सीमा विवाद को तूल देना भी उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है. यह बात जगजाहिर है कि पूर्वी क्षेत्र में चीन और भूटान के बीच कभी सीमा विवाद रहा ही नहीं है.” भूटान के अंग्रेजी अखबार भूटानीज के संपादक तेनजिंग लामसांग भी प्रोफेसर लामा की दलीलों का समर्थन करते हैं. वह मानते हैं कि चीन दरअसल भूटान के जरिए भारत पर दबाव बढ़ाने और इलाके में अपनी बादशाहत कायम करने की रणनीति पर बढ़ रहा है. चीन इससे पहले भी वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद के जरिए भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर चुका है.
राजनीति पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत को चीन की रणनीति का जवाब देने के लिए ठोस नीति बना कर आगे बढ़ना होगा. अरुणाचल पर कब्जे की चीन की मंशा को और रणनीति को समझते हुए उसका मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी है. जेएनयू में सेंटर फार चाइनीज एंड साउथ एशियन स्टडीज की डॉ. गीता कोच्चर कहती हैं, "इस समस्या का स्थायी समाधान जरूरी है. ऐसा नहीं हुआ तो यह समस्या आगे चल कर नासूर बन सकती है.”
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