भारत के बाद चुनौती पाकिस्तान को खुश करने की
१७ दिसम्बर २०१०चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत दौरा खत्म करके शुक्रवार को पाकिस्तान पहुंच रहे हैं. उनका यह दौरा बड़ी चुनौती है क्योंकि उन्हें भारत के साथ रिश्ते सुधारने हैं लेकिन पाकिस्तान को भी वह नाराज नहीं कर सकते. पाकिस्तान में चीन को बहुत अच्छा दोस्त माना जाता है. हालांकि हाल के सालों में भारत के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ी हैं. तीन दिन के भारत दौरे में वेन ने बार बार यही संदेश दिया. लेकिन वेन जियाबाओ की पाकिस्तान यात्रा कई मुद्दों पर आधारित होगी.
आर्थिक समझौते
भारत और चीन के बीच इस दौरे पर कई बड़े व्यापारिक और आर्थिक समझौते हुए. इसलिए पाकिस्तान की उम्मीदें बढ़ गई हैं. दोनों मुल्कों के बीच कई बड़े समझौते होने हैं. हो सकता है चीन और पाकिस्तान के कुछ समझौते भारत को नागवार गुजरें.
इनमें सबसे बड़ा मुद्दा तो विवादित परमाणु समझौते का है. पाकिस्तान चीन की मदद से एक गीगावॉट का परमाणु संयत्र लगा रहा है और भारत इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. परमाणु ऊर्जा के मसले पर दुनियाभर में पाकिस्तान को संदेह की नजर से देखा जाता है इसलिए चीन और पाक का यह करार पश्चिमी दुनिया को भी रास नहीं आ रहा है. पाकिस्तान ने एनपीटी पर भी दस्तखत नहीं किए हैं.
हालांकि पाकिस्तान में जानकार एनपीटी को ज्यादा अहमियत नहीं देते. कराची यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले प्रोफेसर मूनिस अहमर कहते हैं कि चीन पाक परमाणु करार में एनपीटी की कोई अहमियत नहीं है. वह कहते हैं, "यह सच है कि परमाणु मामलों में पाकिस्तान का रिकॉर्ड संदेहास्पद रहा है. खासतौर पर एक्यू खान के मामले में. लेकिन इस वक्त पाकिस्तान बड़े ऊर्जा संकट से गुजर रहा है इसलिए चीन और पाकिस्तान यह करार करने जा रहे हैं."
भारत ने भी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए हैं. पाकिस्तान का मानना है कि अगर अमेरिका भारत को परमाणु सुविधाएं दे सकता है तो उसका भी बराबर का हक है और अगर परमाणु ऊर्जा अमेरिका से नहीं मिलेगी तो वह अपने पुराने सहयोगी चीन की मदद लेगा.
चीन पारंपरिक हथियारों का पाकिस्तान का बड़ा सप्लायर है. ऐसा भी माना जाता है कि परमाणु बम बनाने में चीन ने ही पाकिस्तान की मदद की.
कश्मीर विवाद
भारतीय कश्मीर के लोगों को नत्थी वीजा देने की चीन की नीति पर भारत को सख्त एतराज है. चीन पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर में बांध बना रहा है और भारत उस पर भी एतराज जताता रहा है. भारत चाहता है कि इस मुद्दे पर चीन संवेदनशीलता बरते और पाकिस्तान में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि हाल के बरसों में चीन का झुकाव भारत की ओर बढ़ा है. अहमर कहते हैं, "चीन ने कश्मीर पर अपनी राय बदली है. 30-40 साल पहले चीन पाकिस्तान का खुलेआम समर्थन करता था. लेकिन अब वह पाकिस्तान को बातचीत के जरिए मसले सुलझाने की नसीहत देता है."
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल बासित के मुताबिक चीनी प्रधानमंत्री 36 विकास परियोजनाओं पर दस्तखत कर सकते हैं. इनमें ऊर्जा और फाइनैंस से जुड़ीं कई योजनाएं हैं. पाक सरकार ने इंडस्ट्रियल एंड कमर्शल बैंक ऑफ चाइना के लाइसेंस को भी मंजूरी दे दी है. बदले में पाकिस्तान बड़ी परियोजनाओं की उम्मीद कर रहा है. हाल ही में आई बाढ़ के बाद उसे आर्थिक मदद की दरकार है. दोनों देशों के बीच 2009 में 6.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ और 2011 तक वे इसे बढ़ाकर 15 अरब डॉलर करना चाहते हैं.
आतंकवाद
भारत चाहता है कि चीन क्षेत्र में इस्लामिक आतंकवाद खत्म करने में भूमिका निभाए. भारत का सीधा मतलब है कि चीनी प्रधानमंत्री पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें क्योंकि भारत हमेशा से पाकिस्तान को ही आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है.
चीन भी अपने उत्तर पश्चिमी शिनजियांग इलाके में इस्लामिक आतंकवाद को लेकर चिंतित है. यह इलाका पाकिस्तान से लगता है. चीन को लगता है कि उसके इलाके के उइगुर आतंकवादियों के संबंध पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आतंकी संगठनों से हैं. इसलिए वह पाकिस्तान पर कार्रवाई करने का दबाव बना रहा है. हालांकि पाकिस्तान इससे इनकार करता रहा है लेकिन दोनों मुल्कों के बीच इस मुद्दे पर अब बात आगे बढ़नी ही है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार