भारत और चीन के बीच रेल
२५ जुलाई २०१४चीन के सरकारी अखबार द ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन ये विस्तार 2020 तक करना चाहता है. उसने 2006 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में रेल सेवा शुरू की, जो 5000 मीटर की ऊंचाई पर बर्फीले पहाड़ों के बीच से होकर गुजरती है. वहीं निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों और मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि इस रेल लाइन के कारण यहां तिब्बत से बाहर के लोग आकर बस गए हैं और इनसे बौद्ध धर्म के विश्वास और पारंपरिक जीवनशैली को खतरा है.
अखबार के मुताबिक तिब्बत के दूसरे सबसे अहम धार्मिक गुरु पंचम लामा की जगह शिंगात्से की रेल लाइन का औपचारिक उद्धाटन अगले महीने होगा. इसी लाइन का और विस्तार 2016 से 2020 के बीच किया जाएगा. इसका एक हिस्सा नेपाल की सीमा पर होगा और दूसरा भारत और भूटान की सीमा पर. इस बारे में और जानकारी नहीं दी गई है.
तिब्बत सिर्फ चीन के नियंत्रण के विरोध की वजह से ही नहीं बल्कि भारत, नेपाल और म्यांमार के साथ रणनीतिक पोजिशन के कारण भी है काफी संवेदनशील इलाका समझा जाता है.
चीन और भारत दोनों ही अपने पड़ोसी देशों पर प्रभाव बनाने की कोशिश में लगे हैं. इधर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नेपाल गई हैं. उनकी बातचीत का एजेंडा नेपाल में पनबिजली क्षमता को बढ़ाना है. हालांकि नेपाल के विपक्षी माओवादी इस परियोजना के खिलाफ हैं उन्हें डर है कि इससे भारतीय कंपनियों को फायदा पहुंचेगा और चीन अलग थलग हो जाएगा.
भारत के पूर्वोत्तर राज्य पर चीन और भारत में 1962 में युद्ध हो चुका है. अभी भी अरुणाचल प्रदेश पर दोनों के बीच तनातनी चलती रहती है. इतना ही नहीं तिब्बत पर भी भारत के रुख से चीन नाराज रहता है. 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा जमा लिया था. नौ साल बाद तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा भारत भाग आए. तब से वह भारत में ही निर्वासन में रह रहे हैं.
एएम/एजेए (एएफपी)