कोरोना महामारी ने पंडितों को भी डराया
१० मई २०२१कोरोना से लगातार हो रही मौत के बाद महामारी के डर से अब पंडित भी नहीं मिल रहे हैं और इसके कारण मृतकों के परिजनों को श्राद्ध कराने में भी मशक्कत करनी पड़ रही है. पंडितों को भी कोरोना का डर सताने लगा है, यही कारण पंडित अपने यजमानों के यहां भी जाने से बच रहे हैं. बिहार में कोरोना संक्रमण से डरे पंडित भी अब घर में ही कैद रहना चाह रहे हैं. शहर के लोगों को श्राद्ध कराने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के पंडितों की शरण में जाना पड़ रहा है. उन्हें मुंहमांगा दक्षिणा देने की सिफारिश कर रहे हैं, जिससे श्राद्धकर्म पूरा हो और मृतात्मा को शांति मिल सके.
कई लोग तो पंडितों की खोज में अन्य राज्यों की ओर रूख कर रहे है. ऐसा नहीं कि ऐसे लोगों को अगर पंडित जी मिल भी जा रहे हैं लॉकडाउन में बाजार बंद रहने के कारण श्राद्ध में जरूरी चीजें नहीं मिल रही है, ऐसे में पंडित जी पैसा ही लेकर काम चला ले रहे हैं. औरंगाबद जिले के उपाध्याय बिगहा गांव के रहने वाले सत्यदेव चौबे की मौत तीन दिन पहले हो गई, लेकिन उनके श्राद्धकर्म के लिए पंडित नहीं मिल रहे थे. अंत में उन्हें पड़ोसी राज्य झारखंड के हरिहरगंज से एक पंडित को लाना पड़ा जो अंतिम संस्कार से लेकर श्राद्धकर्म तक करने के लिए राजी थे.
पड़ोसी राज्य से आए पंडित
सनातन मार्ग में मृत्यु के 10 वें दिन दषगात्र होता है, 11 वें दिन श्राद्धकर्म, 12 वें दिन कर्म कांड पूरा होता है और 13 वें दिन पूजा-पाठ से अंतिम क्रिया संपन्न होती है. कोरोना काल में कर्म कांड के लिए पंडितों की दक्षिणा भी काफी बढ गयी है. ऐसा ही एक मामला भागलपुर में देखने को मिला जहां सिंकदरपुर के रहने वाले मुकेश कुमार सिंह के कोरोना से हुए निधन के बाद उनके परिजनों को गोड्डा से पंडित बुलाना पड़ा.
औरंगाबाद में कर्मकांड के लिए चर्चित पंडित विंदेश्वर पाठक कहते हैं, "सनातन धर्म में मृतात्मा की शांति के लिए 13 दिनों तक का विधान है. इसके बाद मृतक की आत्मा को शांति मिलती है. अभी कोरोना से प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं. पहले इस समय में एक-दो लोगों के श्राद्ध के लिए कॉल आता था. अभी पांच से छह लोगों का कॉल आ रहा है." कोरोना से हुई मौत के बाद बहुत से पंडित श्राद्ध कराने से कतरा रहे हैं. उन्हें डर है कि उनके परिजनों को भी कोरोना का संक्रमण हो सकता है.
वैकल्पिक श्राद्ध और कर्मकांड
दूसरी ओर, उन लोगों की भी चिंता है जिनके परिवार का कोई मरा है. वे कर्मकांड के चक्कर में खुद संक्रिमत नहीं होना चाहते तथा अपने परिवार को भी बचाना चाहते हैं. इसलिए लोग भी कम से कम समय में कर्मकांड पूरा कराने के लिए लोग जुगाड़ लगा रहे हैं. कई लोग सनातन विधि विधान को छोड़कर गायत्री परिवार और आर्य समाज के विधि विधान से कर्मकांड निपटाने लगे हैं, जिससे कम समय में विधि विधान से संपन्न कराया जाए.
इसके लिए लोग इन दोनों समाज के कर्मकांड के जानकारों के पास भी पहुंच रहे हैं. गायत्री परिवार में श्राद्ध के लिए कर्मकांड अधिक से अधिक तीन दिन और कम से कम एक दिन में पूरा हो जाता है. शादी, विवाह के लिए भी स्थिाति ऐसी ही हो गई है. शादी कराने के लिए पंडित जल्दी नहीं मिल रहे हैं. लोगों का कहना है पंडित शादी के लिए भी दक्षिणा की अधिक मांग करने लगे हैं.
रिपोर्ट: मनोज पाठक (आईएएनएस)