बायोगैस पाने के लिए गाय की नकल
४ मई २०१०हनोवर के पशुचिकित्सा महाविद्यालय के मिशाएल स्ट्रेकर जैव-रसायनशास्त्री (बायोकेमिस्ट) हैं. वे जानते हैं कि गायें कैसे हरे या सूखे चारे को पचा कर ऊर्जा प्राप्त करती हैं. अतः सोचा कि क्यों न एक ऐसा बायोगैस संयंत्र बनाया जाये, जो गाय के पेट की तरह काम करे.
मिशाएल स्ट्रेकर इन दिनों अपने पशुचिकित्सा महाविद्यालय के एक हॉल में इस बायोगैस संयंत्र को आजमा रहे हैं. दो हिस्सों वाला उनका संयंत्र गाय के पेट की तरह तो बिल्कुल नहीं दिखता, बल्कि तेल की एक टंकी जैसा लगता है, पर काम करता है गाय के पेट की तरह ही.
मिशाएल स्ट्रेकर कहते हैं, "यहां सामने जो बांया रिएक्टर है, वही बनावटी पेट है. वह पांच घन मीटर जगह वाला एक पात्र है. उस में चार गायों के पेट की सारी सामग्री, यानी क़रीब चार सौ लीटर के बराबर चारा और पाचक रस भरे हुए हैं. इन चीज़ों को हम केवल कसाईघर से ही प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए, शुरू-शुरू में हमारे सामने दो बड़े प्रश्न थेः पहला यह कि गाय के पेट में होने वाली जैव-रासायनिक क्रिया को क्या एक मशीन में भी चलाया और संवर्धित किया जा सकता है? दूसरा प्रश्न यह था कि यह संवर्ध (कल्चर) कितना टिकाऊ सिद्ध होगा? कल्पना कीजिये कि आपको यदि हर सप्ताह कसाईघर जाना पड़े, तो आप इसे बहुत व्यावहारिक नहीं कहेंगे. आप यही चाहेंगे कि प्रकृति में जिस तरह गाय का बछड़ा मां के दूध के बाद घास-भूसा खाने का आदी हो जाता है और जीवनपर्यंत आदी बना रहता है, वैसा ही यहां भी होना चाहिये."
मशीन में गाय के पेट का चारा
जर्मनी में एक पालतू गाय का औसत जीवनकाल क़रीब 15 साल होता है. मिशाएल स्ट्रेकर का बनाया कृत्रिम पेट अभी केवल दो साल से है. गाय के पेट में रहने वाले वे सारे बैक्टीरिया, जो चारे को गलाने और पचाने में सहायक बनते हैं, अब भी इस तरह काम कर रहे हैं कि स्ट्रेकर को असली गाय के पेट से ली गयी सामग्री इस संयंत्र में दुबारा डालने की ज़रूरत अभी तक नहीं पड़ी. उनका कहना है कि उनके संयंत्र में ठीक वही जैव-रासायनिक क्रियाएं अपने आप चल रही हैं, जो किसी असली गाय के पेट में चलती हैं.
गाय के पेट के नमूने पर बने इस कृत्रिम पेट में भी घास और पत्तियों के सेल्यूलोज़-धारी रेशों को फ़ैटी ऐसिडों में विघटित किया जाता है. गाय के पेट में ये फ़ैटी ऐसिड पाचक रसों की मदद से उसकी रक्तसंचार प्रणाली में पहुंच जाते हैं. कृत्रिम पेट में पाचकरस का काम एक विशेष तरल पदार्थ करता है, जो मिशाएल स्ट्रेकर का एक व्यावसायिक रहस्य है.
बायोगैस का बनना दस गुना तेज़
यह तरल पदार्थ फ़ैटी ऐसिडों को संयंत्र के दूसरे हिस्से में पहुंचाता है, जो वास्तव में एक गैस-रिएक्टर है. यहां फ़ैटी ऐसिडों को कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन में विघटित किया जाता है. मिशाएल स्ट्रेकर कहते हैं कि उनका संयंत्र पारंपरिक किस्म के बायोगैस संयंत्रों की अपेक्षा कहीं जल्दी गैस बनाता है. "यदि आपके पास भूसे जैसा अच्छा चारा है, तो 10 दिनों में उसका 90 प्रतिशत तक विघटन हो जायेगा. प्रचलित क़िस्म के बायोगैस संयंत्रों में भूसे का सेल्यूलेज़ वाला हिस्सा, जो 20 से 25 प्रतिशत तक होता है, बचा रह जाता है."
प्रचलित क़िस्म के संयंत्रों में मकई या घास को विघटित कर गैस प्राप्त करने में 200 दिन लग जाते हैं. इसीलिए उनका आकार-प्रकार भी दैत्याकार होता है. गाय के पेट की नकल करने से यह समय कम से कम दस गुना घट जाता है. एक दूसरा बड़ा लाभ यह है कि दो कंटेनरों जैसे रिएक्टरों वाले इस संयंत्र को, कंटेनरों की संख्या घटा या बढ़ा कर, ज़रूरत के अनुसार हर समय घटाया-बढ़ाया जा सकता है.
रिपोर्ट: राम यादव
संपादन: महेश झा