बहुत पास है कैंसर का खतरा
१३ दिसम्बर २०१३संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है बीते पांच सालों में दुनिया भर में कैंसर के मामलों में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. 2012 में कैंसर के 1.4 करोड़ मामले सामने आए. खासकर स्तन कैंसर के मामलों में 20 फीसदी वृद्धि हुई हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि 2008 से 2012 के बीच कैंसर के मामलों में काफी वृद्धि हुई है. इन सालों में कैंसर से होने वाली मौतें 8.4 फीसदी बढ़ गईं.
इंटरनेश्नल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएसीआर) ने 184 देशों से जमा 2012 के आंकड़ों के आधार पर 28 तरह के कैंसर से जुड़ी रिपोर्ट 'ग्लोबोकैन 2012' छापी है. इसके अनुसार बीते सालों में स्तन कैंसर, फेफड़ों के कैंसर और आतों के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं. सबसे ज्यादा (20 फीसदी) मौतों के लिए फेफड़ों का कैंसर जिम्मेदार पाया गया.
स्तन कैंसर बड़ा खतरा
स्तन कैंसर के मामले दुनिया भर में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं. 2012 में 17 लाख महिलाओं में कैंसर पकड़ा गया. 2008 से अब तक स्तन कैंसर के मामले 20 फीसदी बढ़े हैं.
महिलाओं की मौत के लिए स्तन कैंसर सबसे ज्यादा आम है. 2012 में इससे 5,22,000 जानें गईं. महिलाओं को होने वाले कैंसर का हर चौथा मामला स्तन कैंसर का है.
हाल में 4,000 महिलाओं पर एक खास रिसर्च हुई. इसमें सामने आया है कि जिन महिलाओं के परिवारों में स्तन कैंसर के मामले पाए जाते हैं या जिनमें यह बीमारी अनुवांशिक कारणों से होने की संभावना होती है, उनमें इसका खतरा कम किया जा सकता है. लैंसेंट पत्रिका के अनुसार एंटी हार्मोन पिल की मदद से इन महिलाओं में कैंसर का खतरा आधा हो सकता है.
आइएआरसी के कैंसर डाटा विभाग के प्रमुख डेविड फोरमैन ने कहा, "कम विकसित देशों में कैंसर से होने वाली मौतों में स्तन कैंसर प्रमुख है. इसके लिए बदलती जीवनशैली भी जिम्मेदार है. दूसरी वजह यह कि इन इलाकों में महिलाओं तक इससे निपटने के तरीके नहीं पहुंच पा रहे हैं."
चपेट में गरीब देश
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 2025 तक कैंसर के मामले 1.9 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से बढ़ेंगे. 2012 में कैंसर के करीब 57 फीसदी मामले विकासशील देशों में सामने आए. साथ ही कैंसर से होने वाली 65 फीसदी मौतें भी इन्ही देशों में हुईं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन इलाकों में कैंसर के मामलों में बढ़ते ही जाएंगे.
गरीब देशों में सर्वाइकल कैंसर के भी खूब मामले सामने आ रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि इन देशों में कैंसर की शुरुआती जांच और इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं ना होना भी एक बड़ी वजह है.
एसएफ/ओएसजे (एएफपी, एपी)