बर्लिन फिल्म महोत्सव - डायरी का एक पन्ना
१३ फ़रवरी २०११महोत्सव शुरू होने पर सभी को खुशी होती है, चाहे वे डायरेक्टर हों, ऐक्टर हों, आम दर्शक हों या पत्रकार. लेकिन पहले और दूसरे दिन की रिपोर्टों पर अक्सर अचरज भी होता है. एक मिसाल : टेलिविजन के एक नामी-गरामी पत्रकार ने डायरेक्टर विम वेंडर्स के साथ इंटरव्यू किया, प्रसिद्ध नर्तकी पीना बाउष पर बनी जिनकी फिल्म रविवार को बर्लिन महोत्सव में दिखाई जा रही है. कुछ पत्रकारों ने उसे देखा है. टीवी के प्रसिद्ध पत्रकार उसकी तारीफ के पुल बांधते रहे - कितनी मशहूर थी पीना बाउष, कितने मशहूर हैं डायरेक्टर विम वेंडर्स और कितनी शानदार बनी है उनकी फिल्म. और अचानक बात बाहर निकल आई. पत्रकार महोदय ने यह फिल्म अभी तक देखी ही नहीं है.
कोई बात नहीं, हम मीडिया लोकतंत्र में जी रहे हैं, मीडियम ही सब कुछ है, उसका विषय तो बस यूं ही है. लेकिन कभी कभी इस बात की याद दिला देना चाहिए कि जो कुछ सार्वजनिक रूप से कहा जाता है, असली घटनाओं से उसका कम ही लेनादेना रहता है. भड़कीले पर्दे के पीछे इन दिनों काफी कुछ छिपता जा रहा है. और फिल्म महोत्सव में आम तौर पर फिल्मों की शायद ही कोई भूमिका रह गई है.
फिल्म और वित्तीय संकट
इस हिसाब से देखा जाए तो प्रतियोगिता में फिल्म मार्जिन कॉल फिल्म को शामिल करना एक अच्छा फैसला था. अमेरिकी डाययरेक्टर जेसी चंदोर की यह फिल्म विश्व वित्तीय संकट के पूर्ववेला पर बनाई गई है. फिल्म में गुब्बारे की तरह फुलाई कहानी, इन गुब्बारों का फूटना और काफी बड़बोलापन शामिल है. न्यूयार्क के एक बड़े इन्वेस्टमेंट बैंक के बॉस, अधिकारी, मैनेजर और विशेषज्ञ - ये सभी पर्दे पर आते हैं और हम देखते हैं कि एक सर्वनाश से पहले वे कैसे पेश आते हैं और फिर कैसे अचानक आई बाढ़ के पानी की तरह वित्तीय संकट छा जाता है. जेसी चंदोर ने दिखाया है कि कैसे इस संकट में उसके लिए जिम्मेदार लोग अपनी चमड़ी बचाते हैं, उससे मुनाफा कमाने की सोचते हैं.
वित्तीय संकट पर इस बीच कई फिल्में बनी है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध फिल्म है वॉल स्ट्रीट - मनी नेवर स्लीप्स. लेकिन चंदोर की फिल्म मार्जिन कॉल बेशक लीक से कुछ हटकर है, जो सोचने के लिए मजबूर कर देती है.
लेखक: योखेन कुएर्टेन/उ भट्टाचार्य
संपादन: वी कुमार