फ्रैकिंग से कांपती धरती
१० जनवरी २०१५फ्रैकिंग ऐसी प्रक्रिया को कहा जाता है जिसके तहत जमीन के भीतर सैकड़ों मीटर की गहराई में दबी चट्टानों को तोड़ा जाता है. लाखों लीटर पानी, बालू और हजारों लीटर रसायनों की मदद से ये किया जाता है. भारी दबाव के साथ जब ये मिश्रण सुराख के जरिये धरती के भीतर डाला जाता है तो चट्टान दरकने लगती हैं. दरार और वहां पहुंचे केमिकल से चट्टानों के भीतर दबी गैस या वहां मौजूद तेल निकलने लगता है.
अमेरिका में पर्यावरण प्रेमी काफी समय से फ्रैकिंग को बंद करने की मांग कर रहे हैं. उनका तर्क है कि फ्रैकिंग में इस्तेमाल होने वाले घातक रसायनों से भूजल दूषित हो जाता है और इसका खामियाजा हर किसी को उठाना पड़ रहा है. इस वक्त अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 16 देशों में फ्रैकिंग जोरों पर है और हर जगह इसका विरोध भी हो रहा है. पर्यावरण प्रेमियों के मुताबिक फ्रैकिंग से दूषित पानी को मौजूदा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी साफ नहीं कर सकते.
अब फ्रैकिंग के खिलाफ एक और मजबूत वैज्ञानिक तर्क सामने आ रहा है. अमेरिकन सिसमोलॉजिकल सोसाइटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक फ्रैकिंग की वजह से भूंकप भी आ सकते हैं. 2014 में अमेरिका में फ्रैकिंग से संबंध रखने वाला सबसे ताकतवर भूकंप आया. मार्च में ओहायो राज्य के पोलैंड कस्बे में आए उस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर तीन आंकी गई.
भूकंप विज्ञानियों के मुताबिक शोध में उन्हें पता चला कि उस भूकंप का सीधा संबंध इलाके में हो रही फ्रैकिंग से था. ये अकेला मामला नहीं. अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने एक से तीन रिक्टर पैमाने वाले 77 भूकंप दर्ज किए. सिसमोलॉजिकल सोसायटी का दावा है कि इन भूकंपों का संबंध इलाके में हो रही फ्रैकिंग से है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक उच्च दबाव से जमीन में तरल डालने की वजह से पुराने घाव हरे हो रहे हैं. कई चट्टानों के पुराने फॉल्ट फिर से सक्रिय हो रहे हैं. इसी वजह से भूकंप आ रहे हैं. ड्रिलिंग बंद करते ही भूंकपीय गतिविधियां तेजी से खत्म होने लगती हैं.
इस दावे के बाद ओहायो राज्य ने एक रेग्युलेटरी सिस्टम बना दिया है. ये सिस्टम ड्रिल वाले इलाकों में आ रहे भूकंपों पर नजर रखेगा. जैसे ही फ्रैकिंग वाले किसी इलाके में एक रिक्टर पैमाने का भूंकप आएगा, मामले की जांच की जाएगी. तीव्रता दो हुई तो फ्रैकिंग बंद कर दी जाएगी.
कई लोगों की मांग है कि फॉल्ट लाइन वाले इलाकों की पहले ही पहचान की जाए और वहां फ्रैकिंग की अनुमति न दी जाए. फ्रैकिंग उद्योग से जुड़ी कुछ कंपनियां इसमें मदद को तैयार हैं, लेकिन उनका आरोप है कि फॉल्ट दिखाने वाला कोई सिस्टम अभी बना ही नहीं है. तेल और गैस के तेजी से खत्म होने के चलते कंपनियां अब फ्रैकिंग को सबसे बड़ी संभावना के तौर पर देख रही हैं.