फिर संगठित होने के प्रयास में माओवादी
२३ अक्टूबर २०१८साल 2011 में शीर्ष नेता किशनजी की मौत के बाद बंगाल में माओवादियों का सफाया हो गया था. उसके बाकी काडर इधर-उधर बिखर गए थे. बीती जुलाई से वह लोग दोबारा एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं. इसके लिए इलाके में परचे बांटे जा रहे हैं. दूसरी ओर, नेतृत्व के संकट और जमीनी स्तर पर काडरों की कमी से निपटने के लिए भाकपा (माओवादी) अब शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं के अलावा दलितों और आदिवासियों को संगठन में शामिल करने का प्रयास कर रहा है.
बढ़ती सक्रियता
पश्चिम बंगाल के झारखंड से लगे इलाकों में नए सिरे से तेज होती माओवादी गतिविधियों ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है. भूमिगत संगठन भाकपा (माओवादी) के पश्चिम बंगाल समिति के सचिव असीम मंडल उर्फ आकाश की अगुवाई में एक सशस्त्र गिरोह के विभिन्न इलाकों में देखे जाने के बाद खतरे की घंटी बजने लगी है. इसी साल जून और जुलाई में झारखंड में सुरक्षा बल के सात जवानों की हत्या के बाद वहां माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज होने के बाद इस गिरोह के बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में शरण लेने का अंदेशा है.
पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी कहते हैं, "किशनजी की मौत के बाद इलाके से माओवादियों का सफाया जरूर हो गया था. लेकिन पुरुलिया व झाड़ग्राम में अब भी उनसे सहानुभूति रखने वाले सैकड़ों लोग हैं.” राज्य के पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के चंद्रकोना टाउन के रहने वाले आकाश के गिरोह में रामप्रसाद मारडी, दिलीप सिंह सरदार, कमल माइती, मदन महतो और उसकी पत्नी जोबा शामिल हैं. आकाश सीधे भाकपा (माओवादी) के पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख प्रशांत बोस उर्फ किशन दा को रिपोर्ट करता है. वर्ष 2011 में सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में किशनजी समेत कई शीर्ष नेता मारे गए. अब आकाश संगठन की पश्चिम बंगाल समिति का इकलौता जीवित सदस्य है.
हाल ही में इलाके का दौरा करने वाले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानदिशेक राजीव राय भटनागर कहते हैं, "राज्य के पश्चिमी इलाकों में माओवादी गतिविधियां तेज हुई हैं. झाड़ग्राम में माओवादियों के दोबारा संगठित होने की खबरें भी मिल रही हैं.” पहले राज्य के चार जिले माओवाद-प्रभावित जिलों की सूची में थे, लेकिन केंद्र की ओर से जारी ताजा सूची में सिर्फ झाड़ग्राम का ही नाम है.
बदलता सियासी समीकरण
समझा जाता है कि माओवादी इलाके में बने नए राजनीतिक समीकरणों का फायदा उठाने का प्रयास कर सकते हैं. इसी साल मई में हुए पंचायत चुनावों में इन इलाकों में बीजेपी को काफी कामयाबी मिली थी. उसके बाद इलाके में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच हिंसक संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं. इलाके में दो बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या भी हो चुकी है. खासकर झाड़ग्राम व पुरुलिया पर सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रही है.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि 1990 के दशक के आखिरी दौर में भी इलाके में इसी तरह के राजनीतिक फेरबदल की वजह से माओवादियों को अपने पांव जमाने में सहायता मिली थी. वर्ष 2010-11 के दौरान तो किशनजी के नेतृत्व में माओवादियों ने झाड़ग्राम के अलावा पुरुलिया, बांकुड़ा व पश्चिमी मेदिनीपुर के ज्यादातर हिस्सों पर अपनी पकड़ बना ली थी. किशनजी की मौत के बाद रातोंरात माओवादी संगठन बिखर गया था. उसके बाद राज्य समिति का वजूद ही खत्म हो गया था. बाकी सदस्यों ने या तो हथियार डाल दिए थे या फिर पकड़े गए थे.
किसी दौर में इलाके में पांच सौ से ज्यादा माओवादी सक्रिय थे. वर्ष 2008 से 2011 के बीच इस संगठन ने लगभग सात सौ लोगों की हत्या की थी. अब आकाश की अगुवाई वाला दस्ता दोबारा राज्य समिति के गठन का प्रयास कर रहा है. वह अब अपने पुराने नेटवर्क को दोबारा बहाल करने में भी जुटा है.
काडरों की भर्ती
सरकारी सूत्रों का कहना है कि संगठन फिलहाल नेतृत्व और काडरों की कमी से जूझ रहा है. इसे पाटने के लिए ही माओवादी अब शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं के अलावा दलितों और आदिवासियों को संगठन में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं. अब अर्बन नक्सल के मुद्दे पर तेज होती बहस के बीच संगठन के नेता बुद्धिजीवी युवाओं की तलाश में जुट गए हैं. संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख प्रशांत बोस उर्फ किशनदा ने भी इसकी पुष्टि की है. बोस ने पार्टी के मुखपत्र लाल चिंगारी प्रकाशन में अपने ताजा लेख में कहा है कि संगठन में शिक्षित युवकों की कमी के चलते नेतृत्व की दूसरी कतार नहीं पनप सकी है. बोस ने अपने लेख में कहा है, "नेतृत्व की दूसरी कतार तैयार करना फिलहाल संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.” इससे पहले बीते साल संगठन ने बूढ़े और शारीरिक रूप से अनफिट नेताओं के लिए एक रिटायरमेंट योजना तैयार की थी. इसके तहत ऐसे लोगों को भूमिगत गतिविधियों से मुक्त कर उनको संगठन के पुनर्गठन के काम में लगाया जाना था.
बोस ने लिखा है, "बंगाल के अलावा असम, बिहार और झारखंड में संगठन ने दलितों, आदिवासियों और गरीबों के बीच खासी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की है. शिक्षित युवाओं की कमी पूरी करने के लिए संगठन को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. हमने तमाम समितियों से शिक्षित काडरों को अपने युद्धक्षेत्र में भेजने को कहा है. इससे नेतृत्व की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तैयार करने में सहायता मिलेगी.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले माओवादी की ताजा गतिविधियां सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं. इसी वजह से बंगाल और झारखंड पुलिस इन गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सीमावर्ती इलाकों में साझा अभियान चलाने पर विचार कर रही हैं.