पेटेंट के मामले में पिछड़ा क्यों है भारत
९ दिसम्बर २०१९भारत सरकार के मुताबिक देश के शीर्ष शोध और प्रौद्योगिकी संस्थानों ने 2009-2019 की अवधि यानी एक दशक में 25 हजार से अधिक पेटेंट के आवेदन दिए लेकिन उनमें से करीब पांच हजार को ही पेटेंट हासिल हो पाया. राज्यसभा में लिखित जवाब में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने बताया कि सबसे ज्यादा पेटेंट आवेदन आईआईटी ने जमा कराए थे, उसके बाद वैज्ञानिक और औद्योगिक शोध परिषद (सीएसआईआर), एनआईटी और डीआरडीओ की अर्जियों का नंबर था. सीएसआईआर की 2,400 में से 1,917 अर्जियां पेटेंट के लिए स्वीकृत हुईं, आईआईटी के आवेदन तो तीन हजार से ज्यादा थे लेकिन स्वीकृत पेटेंट की संख्या केवल 519 थी. लगभग इतने ही पेटेंट डीआरडीओ को मिले, जबकि उसने 998 के लिए आवेदन किया था. एनआईटी के 2016 आवेदनों के सापेक्ष उसके सिर्फ 11 पेटेंट स्वीकृत हुए. जीबी पंत यूनिवर्सिटी को 14 और अन्ना यूनिवर्सिटी को 13 पेटेंट मिले.
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के मुताबिक अमेरिका और चीन की तुलना में भारत के पेटेंट पंजीकरण काफी कम है. एक साल में अमेरिका और चीन में एक लाख से अधिक पेटेंट रजिस्टर किए जाते हैं जबकि भारत में करीब दो हजार. 2017 में भारत में साढ़े 46 हजार आवदेन जमा किए गए तो उसी अवधि में अमेरिका में छह लाख और इससे दोगुना चीन में जमा हुए. इस अवधि में भारत में स्वीकृत पेटेंट सिर्फ 12 हजार थे.
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के एक आकलन के मुताबिक 2016-17 के दौरान भारत ने अपनी जीडीपी का महज दशमलव सात प्रतिशत ही आर एंड डी यानि शोध और विकास कार्यकर्मों पर खर्च किया. जापान में ये प्रतिशत 3.2 था, अमेरिका में 2.8 और चीन में 2.1.
अंतरराष्ट्रीय पेटेंट के सबसे अधिक आवेदनों के लिहाज से 2018 में दुनिया के पांच शीर्ष देश रहे - क्रमशः अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया. घरेलू पेटेंट के मामले में चीन दुनिया में सबसे आगे है. पेटेंट ग्रांट के मामले में भी अमेरिका सबसे आगे है. 2018 में उसने एक लाख 72 हजार से ज्यादा पेटेंट स्वीकृत कराए तो 2019 में सितंबर तक उसके पास ग्रांटेड पेटेंट की संख्या एक लाख 44 हजार थी. अमेरिका के बाद जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और जर्मनी का नंबर आता है. टेकरिपब्लिक वेबसाइट के मुताबिक पेटेंट के मामले में नवोन्मेषी देशों में शीर्ष पर ताईवान और इस्राएल के नाम भी हैं. वैसे डब्ल्यूआईपीओ के मुताबिक दुनिया का सबसे अधिक नवाचार उद्यत देश स्विट्जरलैंड है. 2019 के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में उसके बाद स्वीडन, अमेरिका, नीदरलैंड्स और यूके का नंबर है. 129 देशों के इस सूचकांक में भारत की रैंक 52वीं है.
भारत में पेटेंट की प्रक्रिया भारतीय पेटेंट कानून, 1970 से निर्धारित होती है. ट्रिप्स के तहत कुछ संशोधन हुए हैं. 2005 में भारत ने अपने पेटेंट कानून में संशोधन किया था और विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के मुताबिक उसे ढालने की कोशिश की थी. उस समय 56 हजार आवेदन लंबित थे. पेटेंट देने के मामले में भी भारत में ज्यादा समय खर्च होता है. ओईसीडी के मुताबिक 2017 में जहां जापान ने 15 महीने, चीन ने 22 और अमेरिका ने 24 महीने पेटेंट स्वीकृत करने में लगाए वहीं भारत ने 64 महीनों में ये काम किया.
शोधार्थियों की भी कमी है. 2016 के एक आंकड़े के मुताबिक प्रति दस लाख की आबादी में भारत में 216 शोधकर्ता हैं जबकि जापान में पांच हजार से ज्यादा, अमेरिका में चार हजार से ज्यादा और चीन में हजार से ज्यादा शोधकर्ता हैं. अमेरिका में तो कहा ही जाता है कि सिलिकॉन वैली, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध और पेटेंटों की देन है.
और भारत में बात सिर्फ पेटेंट की संख्या की ही नहीं उनकी गुणवत्ता और उनकी वाणिज्यिक और नीतिगत सामर्थ्य की भी है. गहन क्वालिटी रिसर्च और पर्याप्त फंडिंग की बदौलत किसी नई खोज को पेटेंट तक पहुंचाया जा सकता है. देश में बौद्धिक संपदा अधिकारों की अहमियत को लेकर जागरूकता का अभाव माना जाता है. जब भी कोई नवाचार संबंधी सर्वे जारी होता है तो भारत की रैंक इसमें नीचे ही नजर आती है. नवोन्मेष की ओर पीठ इसलिए भी है कि सामने और भी कई सारी चुनौतियां और कमजोरियां और विवशताएं हैं. कमजोर बुनियादी ढांचा और सीमित संसाधनों की वजह से एक विशाल बैकलॉग बना है. आवेदनों की संख्या ज्यादा है और उनकी जांच करने वाले पर्यवेक्षकों की संख्या कम. जाहिर है इसका असर स्वीकृत पेटेंट की गुणवत्ता पर भी पड़ता है. बौद्धिक संपदा प्रशासन को पारदर्शी और चुस्त बनाए जाने की जरूरत भी है. पेटेंट विभाग अभी वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन आता है, जिसकी भारी-भरकम और जटिल सरकारी मशीनरी में पेटेंट का मुद्दा शायद उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता.
2016 में सरकार राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति लाई थी. इससे प्रक्रिया में गति और पेटेंट इकोसिस्टम में नयी जागरूकता आने का दावा किया गया. आवेदनों की जांच और सुनवाई की व्यवस्था ऑनलाइन की गई और इंडियन पेटेंट की वेबसाइट को अपडेट और अपग्रेड किया गया है. हालांकि वेबसाइट को देखकर लगता है कि उसे और यूज़र फ्रेंडली, सुरक्षित और इंटरएक्टिव बनाया जा सकता है. कर्मचारियों, अधिकारियों और विशेषज्ञों की कमी से निपटने के लिए नयी भर्तियां खोलने और खाली पद भरे जाने का दावा किया गया है. और स्टार्टअप इनिशिएटिव के तहत पेटेंट आवेदन शुल्क में छूट भी दी गयी है. इसी साल नवंबर में भारत सरकार ने इंडियन पेटेंट ऑफिस (आईपीओ) और अन्य देशों के पेटेंट दफ्तरों के बीच पेटेंट प्रोसीक्यूशन हाईवे (पीपीएच) बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. हाईवे से आशय है कि पेटेंट आवेदन पर कार्रवाई के लिए फास्टट्रैक प्रकिया अपनाई जाए. पीपीएच का एक पायलट प्रोग्राम फिलहाल जापान के साथ शुरू किया गया है.
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