1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

पूजा के पंडाल बदले लोगों की सोच नहीं

प्रभाकर मणि तिवारी
९ अक्टूबर २०१८

पश्चिम बंगाल में एक कलाकार ने अपनी पेंटिंग में सैनिटरी पैड के ऊपर कमल की तस्वीर बनाई है जिसका भारी विरोध हो रहा है. राज्य में दुर्गापूजा का त्योहार शुरू होने वाला है.

https://p.dw.com/p/36CcY
Durga Puja Festival
तस्वीर: P.M Tiwari

देश में प्रगतिशीलता के तमाम दावों और इक्कीसवीं सदी में लंबा अरसा गुजरने के बाद समाज की कुछ रूढ़िवादी परंपराएं अब भी जस की तस हैं. इनमें सबसे अहम है महिलाओं की माहवारी के प्रति समाज का नजरिया. हाल की दो घटनाओं ने इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया है. इनमें से पहली घटना केरल के शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बड़े पैमाने पर होने वाला विरोध है तो दूसरी घटना में एक कलाकार अनिकेत मित्र ने बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा के दौरान एक सैनिटरी पैड पर कमल का फूल बना कर मुसीबत मोल ली है.

मित्र की कलाकृति ने उनके लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ कर दी है. दिलचस्प है कि उनकी इस कलाकृति का विरोध करने वालों में महिलाओं की तादाद ही सबसे ज्यादा है. कोलकाता पुलिस में शिकायत के बाद इस तस्वीर को हालांकि फेसबुक से हटा लिया गया है लेकिन इसका विरोध लगातार तेज हो रहा है. मित्र का कहना है कि देश में माहवारी अब भी महिलाओं के लिए एक कलंक और लैंगिक समानता के दावे को मुंह चिढ़ाने वाली बात है.

सैनिटरी नैपकिन पर कला

दुर्गापूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है. इस दौरान सदियों पुराने धार्मिक रीति-रिवाजों के जरिए देवी का पूजन किया जाता है. बदलते समय के साथ इस पूजा के आयोजन में ढेरों बदलाव आए हैं.अब अलग अलग थीमों पर आधारित पूजा का प्रचलन है. इस साल भी महानगर में कहीं चित्तौड़गढ़ और रानी पद्मावती की थीम पर पूजा का आयोजन हो रहा है तो कहीं बचपन की यादों को सजीव करने वाली थीम पर.

Indien Aniket Mitra Artist
अनिकेत मित्र की कलाकृतितस्वीर: Aniket Mitra

इस पूजा से जुड़ी एक बात जो नहीं बदली है वह है माहवारी के दौरान महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया. सदियों से यह धारणा है कि माहवारी के दौरान अशुद्ध होने की वजह से महिलाएं पूजा-पाठ में हिस्सा नहीं ले सकतीं. मुंबई में रहने वाले बंगाल के एक कलाकर अनिकेत मित्र ने इसी मानसिकता का विरोध जताने के लिए जब अपनी कूची का सहारा लिया तो हजारों लोग उनके विरोध में उतर आए. उनकी इस हरकत के लिए कोलकाता पुलिस से शिकायत की गई. नतीजतन अनिकेत को अपनी वह फेसबुक पोस्ट हटानी पड़ी. कुछ लोग अनिकेत के समर्थन में भी हैं. लेकिन विरोध करने वालों की तादाद हजारों में हैं. इनमें से महिलाओं की तादाद ही ज्यादा है. महज 24 घंटे के भीतर मित्र की फेसबुक पोस्ट को साढ़े चार हजार बार शेयर किया गया. उसके बाद उन्होंने अपनी पोस्ट हटा ली थी. उनको सोशल मीडिया पर मिलने वाली धमकियों का सिलसिला अब तक जारी है.

Indien Durga Puja Festival
तस्वीर: DW/P. Samanta

अनिकेत मित्र कहते हैं, "विडंबना यह है कि इस कला का विरोध करने वालों में ज्यादातर महिलाएं ही हैं. आखिर मैं किसके लिए लड़ूं ?” अनिकेत की तस्वीर में सैनिटरी पैड के ऊपर एक सजावटी ‘चलचित्र' बना कर लाल रंग से कमल का फूल बना कर उसके नीचे शक्तिरूपेण यानी शक्ति का रूप लिखा था. आखिर उनके मन में इसे बनाने का ख्याल कैसे आया? मित्र कहते हैं, "मैंने पहले अपनी बहनों और अब अपनी पत्नी को माहवारी के दौरान लगाई जाने वाली तमाम पाबंदियों से जूझते देखा है. उनसे कहा जाता था कि तुम इस दौरान पूजा घर, मंदिर या रसोई में नहीं जा सकती. वर्ष 2018 में रहने के बावजूद ऐसी मानसिकता पर तरस भी आता है और गुस्सा भी.”

मित्र बताते हैं कि उनकी कलाकृति का मकसद यह बताना था कि महिलाओं को इन पाबंदियों से कितनी ठेस पहुंचती है. उनका कहना है कि लोग देवी दुर्गा की आराधना तो मां और बहन के तौर पर करते हैं, लेकिन वह जिस प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरती हैं, उसे स्वीकार क्यों नहीं कर सकते? अनिकेत अपने बचाव में लैंगिक समानता की दलील देते हैं. वह सवाल करते हैं, "जब पुरुषों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है तो माहवारी की वजह से मेरी पत्नी अष्टमी की पूजा में हिस्सा क्यों नहीं ले सकती?”

Indien Indian Festival Durga Puja 2016
तस्वीर: DW/ P. Tiwari

अनिकेत का कहना है कि असम के कामाख्या मंदिर में हर साल देवी के रजस्वला होने का उत्सव अंबुबासी मेले के तौर पर लोग मना सकते हैं तो इस तस्वीर में क्या बुराई है? अब तो शबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट तक ने मान लिया है कि माहवारी की वजह से महिलाएं अशुद्ध नहीं हो जातीं. लेकिन महिला अधिकारों और सशक्तिकरण का दावा करने के बावजूद यह बात समाज के गले के नीचे नहीं उतर रही है.

मित्र बताते हैं कि कोलकाता पुलिस ने इस मामले में अब तक उनसे संपर्क नहीं किया है. वह कहते हैं, "मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि लोग क्या कह रहे हैं. इस मुद्दे पर मिलने वाले समर्थन से मुझे खुशी है.”

शबरीमाला विवाद

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाल में केरल के शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी है. सदियों से इस मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. इसकी वजह यह थी कि इस आयुवर्ग की महिलाओं को माहवारी होती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जमकर विरोध हो रहा है. मंदिर प्रबंधन भी इसके विरोध में है और सत्तारुढ़ सीपीएम के अलावा तमाम राजनीतिक दल भी. बीजेपी और कांग्रेस ने इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं करने के लिए सीपीएम की अगुवाई वाली राज्य सरकार की आलोचना की है और खुद समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रही हैं. शबरीमाला मंदिर तीर्थयात्रा के सालाना सीजन के लिए 16 अक्टूबर को खुलेगा. उससे पहले महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर विवाद लगातार तेज हो रहा है.

समाजविज्ञानी प्रोफेसर अतनू राहा कहते हैं, "दुर्गापूजा बंगाल के जनमानस के साथ काफी गहराई से जुड़ा है. यही वजह है कि लोग देवी के खिलाफ जाने वाली कोई बात सहन नहीं कर सकते.” वह कहते हैं कि माहवारी के दौरान महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए को बदलने में अभी काफी वक्त लगेगा और इस मामले में पहल महिलाओं को ही करनी होगी.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी