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पाक से खून से बनकर आया गांधी का संदेश

२ अक्टूबर २०११

हाथों में खून से बनाई महात्मा गांधी की तस्वीर और दिल में दुनिया को शांति का संदेश पहुंचाने की तमन्ना. यही सब लेकर भारत के दरवाजे पर खड़े हैं पाकिस्तान के पेंटर बाबू.

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तस्वीर: AP

पेंटर बाबू के मन में भारत जाने की इतनी लालसा इतनी तीव्र है कि वीजा मिलने के बाद उन्हें बेचैनी के मारे पिछली कई रातों से उन्हें नींद नहीं आ रही. भारत के गांधी म्यूजियम को देने के लिए पेंटर बाबू ने जो तस्वीर बनाई है उसमें रंग उनके खून का है. शांति दूत की इस तस्वीर को म्यूजियम तक पहुंचा कर वह भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि पाकिस्तान की आवाम हिंसा में यकीन नहीं रखती. वह कहते हैं, "मैं भारतवासियों को बताना चाहता हूं कि मेरी तरह आम पाकिस्तानी शांति पसंद लोग हैं. मैंने इस महान नेता की तस्वीर को अपने खून से रंगा है ताकि शांति और प्यार का संदेश दुनिया तक पहुंचा सकूं."

40 साल के पेंटर बाबू यानी अब्दुल वसील लाहौर के पुराने इलाके गढ़ी शाहू के रहने वाले हैं. इलाके के लोग उन्हें पेंटर बाबू कह कर ही बुलाते हैं. उनकी हमेशा से यह इच्छा थी कि कुछ ऐसा करें जिससे उनकी आम चित्रकारों से अलग पहचान बने. उनकी इसी ललक ने महात्मा गांधी की इस अनोखी तस्वीर की बुनियाद रखी. पेंटर बाबू बताते हैं, "मेरी कड़ी मेहनत की वजह से लोग मुझे जानते हैं और इलाके का बेहतरीन चित्रकार मानते हैं लेकिन मेरी कुछ अलग करने की इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी. दो साल पहले दोस्तों से बात करते वक्त दुनिया के महान नेताओं की तस्वीर अपने खून से बनाने का विचार मेरे मन में आया."

Sicherheit in Indien Gandhi heute
तस्वीर: AP

वसील ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने महात्मा गांधी की तस्वीर बनाई. इसके बाद पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह, महान शायर अल्लामा मोहम्मद इकबाल, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और दक्षिण अफ्रीकी नेता नेल्सन मंडेला की तस्वीर बना डाली. अहिंसा के लिए महात्मा गाधी की प्रतिबद्धता के बारे में पढ़ कर पेंटर बाबू को उनका पोर्ट्रेट बनाने की प्रेरणा मिली. वह कहते हैं, "पुराने जमाने में खून ही सब कुछ था. लोग अपने दोस्तों के लिए खून की आखिरी बूंद तक लुटा देते थे. इस पेंटिंग के जरिए मैंने अपने खून से गांधी को श्रद्धांजलि दी है."

नई दिल्ली और अजमेर के लिए 15 दिन का वीजा मिलने के बाद वसील ने फैसला किया है कि वो ट्रेन से दिल्ली जाएंगे. उनके अनुरोध पर भारतीय उच्चायुक्त ने उन्हें अजमेर का ट्रांजिट वीजा भी दिया है जिससे वह वाघा सीमा पर भारत की ओर से भारत पाकिस्तान के झंडों को उतारे जाने का रिवाज भी देख सकें.

नई दिल्ली के गांधी स्मृति भवन में इस मौके की तैयारी की जा रही है जब वसील अपने हाथों से इस पेंटिंग को म्यूजियम के हवाले करेंगे. यह म्यूजियम उसी घर को बनाया गया है जिसमें बापू जीवन के आखिरी दिनों में रह रहे थे और जहां उनकी 1948 में हत्या कर दी गई.

असली मुसीबत पेंटिंग बनाने के बाद

पेंटर बाबू अहमद वसील को भारत आने की मंजूरी मिल तो गई लेकिन यहां तक का सफर इतना आसान भी नहीं रहा. इतना ही नहीं तस्वीर बनाने के बाद उन्हें इच्छित जगहों तक पहुंचाने में पेंटर बाबू को काफी कुछ सहना पड़ा है. उनकी अपनी ही जमीन पर जिस तरह से अधिकारी उनसे पेश आए उससे उनका मन व्यथित है. पेंटर बाबू बताते हैं, "बेनजीर भुट्टो की तस्वीर मैं राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को देना चाहता था लेकिन मुझे लाहौर के गवर्नर हाउस में बुलाया गया. यहां पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के एक नेता ने कहा कि मेरी बनाई तस्वीर राष्ट्रपति के पास भेज दी जाएगी."

Mahatma Gandhi Indien, 59th Republic Day
तस्वीर: AP

इसी तरह गांधी जी की तस्वीर वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप कर कहना चाहते थे, "ज्यादातर पाकिस्तानी मेरी तरह भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं. हम बम क्यों बना रहे हैं? हमें बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए और यह सब भारत पाकिस्तान के बेहतर रिश्तों से ही मुमकिन हो सकता है."

वसील ने बताया कि कई जगहों पर विरोध का सामना करने के बावजूद उन्होंने भारत यात्रा की अपनी कोशिश जारी रखी. उन्होने बताया कि जब वह इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के पास वीजा के लिए इंटरव्यू देने गए तो परिसर के बाहर मौजूद पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों ने उनसे पूछताछ की. वह बताते हैं, "जब मैंने उन्हें अपने भारत जाने के उद्देश्य के बारे में बताया तो उन्होंने मुझ पर फब्तियां कसीं, 'लो देखो शांति के इस नए नेता को. क्या तुम्हें हम शांति का नोबेल पुरस्कार दे दें.' लेकिन मैंने अपना इरादा नहीं बदला."

इरादा अटल हो तो क्या मुमकिन नहीं. पेंटर बाबू को भारत आने का वीजा मिल गया और अब वह खुशी खुशी अपनी तमन्नाओं के रथ पर सवार हसरतों की झोली में ढेर सारी नेक दुआएं और बाबू की तस्वीर ले कर भारत के सफर पर चल निकले हैं.

रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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