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पहियों पर चलने वाला स्कूल

७ नवम्बर २०११

अगर बच्चे स्कूल ना जा पाएं, तो स्कूल ही उन तक चला आता है. ऐसा हो रहा है हैदराबाद में, जहां एक बस को स्कूल में तब्दील कर दिया गया है. गरीब बच्चे इसका फायदा उठा रहे हैं.

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पढ़ने के लिएतस्वीर: DW

हैदराबाद में गर्मी की दोपहर में एक पीले रंग की बस झुग्गियों में जाती हुई दिखती है. तरपाल और लकड़ी से बने छप्पर के नीचे बस छाया में आ कर रुक जाती है. छोटे छोटे बच्चे बस को देखते ही नंगे पैरों के साथ उस की ओर भागते हुए आते हैं. दरअसल यह बस यह एक चलता फिरता स्कूल है. जो बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, स्कूल खुद ही उन तक पहुंच जाता है. यह बस हर रोज पूरे शहर में घूमती है और कुछ घंटों के लिए अलग अलग जगह पर रुकती है. बच्चे कुछ घंटे बस में बैठ कर पढ़ाई कर सकते हैं.

मिला शिक्षा का अवसर

यहां अधिकतर वे बच्चे आते हैं जिनके माता पिता मजदूरी करते हैं, या लोगों के घरों में सफाई का काम करते हैं, या फिर सड़कों पर कूड़ा उठाते हैं. इन बच्चों के पास स्कूल जाने का कोई अवसर नहीं. सरकार ने भले ही इन्हें शिक्षा का हक दे दिया हो, लेकिन अधिकतर अपने मां बाप की दो वक्त की रोटी कमाने में मदद करते हैं. बस चलाने वाली संस्था क्लैप फाउंडेशन के टीएल रेड्डी ने इस बारे में कहा, "इन बच्चों के पास स्कूल जाने का समय नहीं है. ये स्कूल तभी जा सकते हैं अगर स्कूल खुद इन तक आ जाए."

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मजदूर पालकों के बच्चों के लिए खास स्कूलतस्वीर: DW

टीएल रेड्डी पिछले 25 साल से टीचर हैं. दस साल पहले उन्होंने गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने की दिशा में पहला कदम उठाया. तब उन्होंने झुग्गियों में टेंट लगाया. फिर तीन साल पहले बस का आइडिया आया, "पहले हमने यहां झुग्गियों में एक अस्थाई टेंट लगाया, ताकि उसमें बच्चों को पढ़ा सकें. फिर धीरे धीरे हमने बस में स्कूल बनाने के बारे में सोचा. बच्चे भी इसकी तरफ आकर्षित होते हैं."

बस को अंदर से अच्छी तरह साफ किया गया है, उसकी दीवारों पर नए सिरे से रंग किया गया है. जानवरों और फलों की तस्वीरों के साथ साथ अंग्रेजी और हिंदी के अक्षर भी बस की दीवारों पर बनाए गए हैं. बच्चों को स्लेट दी जाती है जिस पर वे लिखने का अभ्यास करते हैं. कभी कभी बस में इतनी भीड़ होती है कि बस की सीटें कम पड़ जाती हैं. ऐसे में कई बच्चों को नीचे बैठना पड़ता है.

छोटे बच्चों के बड़े सपने

बच्चे इस बस से बेहद खुश हैं. दस साल की देवी पिछले तीन साल से यहां आ रही है, "यहां पढ़ाई अच्छी है और कोई हमें मारता नहीं है." देवी अपने पिता की कूड़ा इकट्ठा करने में मदद करती हैं और बीच में वक्त निकाल कर यहां पढने आती है. उसका सपना है कि वह टीचर बने और अपने जैसे बच्चों की मदद कर सके. इस छोटी सी आशा की किरण ने बच्चों को बड़े बड़े सपने देखने का एक मौका दिया है. दस साल की मंजुला का सपना है कि वह डॉक्टर बने और अपनी बस्ती में लोगों का इलाज कर सके. एक मासूम सी मुस्कराहट के साथ वह कहती हैं, "अब मैं एक से लेकर दो सौ तक गिनती लिख और पढ़ सकती हूं."

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ताकि सभी के पास मौके होंतस्वीर: AP

टीएल रेड्डी का कहना है कि वह बच्चों को इतनी शिक्षा देना चाहते हैं जिसकी मदद से उन्हें सरकारी स्कूलों में आसानी से दाखिला मिल सके. वह अब तक चालीस बच्चों का दाखिला करा चुके हैं, "बच्चों के पास समय की कमी और माता पिता की पिछड़ी सोच इस काम में सबसे बड़ी बाधा बनते हैं." शिक्षा दिलाने के अलावा पहियों पर चलने वाले इस स्कूल की एक उपलब्धि यह भी है कि इसके चलते बच्चे कुछ समय खुद को दे पाते हैं. टीएल रेड्डी बताते हैं, "उनके लिए यह एक मौका होता है बच्चों की तरह पेश आने का, भले ही वह कुछ घंटों के लिए ही क्यों ना हो."

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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