न्याय देने में पिछड़ता भारत
२८ नवम्बर २०१२नागरिकों को न्याय दिलाने के मामले में भारत काफी पिछड़ा हुआ है. लोकतांत्रिक देश होते हुए भी यहां कानून की नहीं चलती. आम लोगों को न्याय दिलाने के मामले में दुनिया के 97 देशों की एक सूची में भारत को 78वें नंबर पर रखा गया है.
वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट ने 'रूल ऑफ लॉ इंडेक्स 2012' तैयार किया है. इसमें हर देश को कानून के राज के आठ मुद्दों की कसौटी पर परखा गया है. भारत के बारे में रिपोर्ट कहती है कि यहां रोकने और संतुलित करने का तंत्र है, स्वतंत्र न्यायपालिका भी है इसके अलावा अभिव्यक्ति की आजादी के लिए मजबूत संरक्षण और तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो उदार सरकार है.
अगर देश में यह सब मौजूद है तो भारत इतना पिछड़ा क्यों है. रिपोर्ट कहती है, "प्रशासनिक एजेंसियां ठीक से काम नहीं करती, नागरिक अदालतों का तंत्र काफी बुरी हालत में है क्योंकि अदालतों में एक तरह से जाम लगा है और मामला निपटाने की प्रक्रिया में बहुत देरी लगती है." सिर्फ इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, "भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है, पुलिस का भेदभाव और दुर्व्यवहार बहुत आम बात है, सुव्यवस्था और सुरक्षा के साथ ही अपराध, सामाजिक विवाद और राजनीतिक हिंसा चिंताजनक स्थिति में है."
दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत का पड़ोसी श्रीलंका इन मामलों में इलाके का सिरमौर है. रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका अपने पड़ोसियों की तुलना में ज्यादातर मामलों में पिछड़ा हुआ है लेकिन कानून के राज के मामले में उसने बाजी मार ली है. श्रीलंका का नागरिक प्रशासन काफी बेहतर है. रिपोर्ट के मुताबिक, "देश ने ज्यादातर मध्यवर्गीय आय वाले देशों को पीछे छोड़ दिया है. अपराधिक न्याय के मामले में यह दूसरे नंबर पर है, उदार सरकार के मामले में यह तीसरे नंबर पर है, यहां नियामकों का नियंत्रण है और भ्रष्टाचार नहीं है. हालांकि इसके साथ ही यहां हिंसा और गृह युद्ध की वजह से होते आ रहे मानवाधिकार उल्लंघन की गंभीर समस्या है."
रिपोर्ट में पाकिस्तान को सभी मामलों में बहुत कमजोर बताया गया है खासतौर से उसके पड़ोसी देशों की तुलना में. पाकिस्तान के बारे में रिपोर्ट कहती है, "सरकार के उत्तरदायित्व का स्तर काफी नीचे है और उस पर व्यापक भ्रष्टाचार, कमजोर न्याय तंत्र और बेहद खराब सुरक्षा हालत, खासतौर से आतंकवाद और अपराध के मामले इसे और बुरा बनाते हैं."
एनआर/ओएसजे (पीटीआई)