नेपाल को मिला नया संविधान
सात सालों से चले आ रहे अंतरिम संविधान की जगह ली नेपाल के पहले लिखित संविधान ने. देखिए इसकी खास बातें.
नेपाल के कई छोटे छोटे राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति राम बरन यादव ने 20 सितंबर को नए संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए. राजधानी काठमांडू में संविधान सभा के सामने इस घोषणा का जोरदार स्वागत हुआ.
राष्ट्रपति यादव (बीच में) ने कहा, "हमें विश्वास है कि नए संविधान को स्वीकार करने के साथ ही देश के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है." नए संविधान ने उस पुराने अंतरिम संविधान की जगह ली है जो 2007 से ही नेपाल में लागू था.
संविधान सभा के बाहर इकट्ठे हुए हजारों लोगों ने नए संविधान की घोषणा का स्वागत किया. उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराए और पटाखे छोड़े. काठमांडू की सड़कों पर लोगों ने तेल के दिये और मोमबत्तियां जलाईं और इमारतों को रंगीन लाइटों से सजाया गया.
सात साल तक चली बातचीत और सौदेबाजी के बाद नेपाल हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया है. सात राज्यों के संघीय ढांचे वाले नेपाल के हर राज्य का एक मुख्यमंत्री होगा और एक विधायिका होगी.
मधेशी समुदाय समेत नेपाल के कई दूसरे स्थानीय और धार्मिक गुटों ने नए संविधान का विरोध किया है. उनका कहना है कि विधिनिर्माताओं ने राज्यों के निर्माण की प्रक्रिया में उनकी चिंताओं की अनदेखी की है. वे जातीय आधार पर बने और भी अधिक राज्य चाहते थे, साथ ही संसद और सरकार में जातीय अल्पसंख्यकों के लिए अधिक सीटें भी.
लागू होने के कुछ हफ्तों पहले से चली हिंसक मुठभेड़ों में कम से कम 45 लोगों की जान चली गई है. संविधान का समर्थन करने वाली नेपाल की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने मधेशी समुदाय से वार्ता करने की फिर से अपील की है. प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने उनसे फिर अपील की.
नेपाल में 100 से भी अधिक जातीय समूह हैं. इनमें से कईयों का मानना है कि नया संविधान उनका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं करता. संसद सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नियम से चुना जाना है. अल्पसंख्यक समूहों ने सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग की है.
देश की हिंदुबहुल आबादी में से भी कईयों का मानना है कि संविधान में नेपाल के हिन्दू राष्ट्र के स्वरूप को बरकरार रखना चाहिए था. इस प्रस्ताव को संविधान सभा में बहुमत नहीं मिला. विपक्षी दलों ने नए संविधान के खिलाफ आम हड़ताल का आह्वान किया था जो बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहा.
नेपाल के पड़ोसी भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी कर नेपाल के कई हिस्सों में व्याप्त तनावपूर्ण माहौल पर चिंता जताई गई है. भारत ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की जरूरत पर जोर दिया ताकि नए संविधान को "व्यापक स्वीकृति मिले."
समलैंगिकों के अधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संविधान का जोरदार स्वागत किया है. उनका मानना है कि इसमें समलैंगिकों की पहचान, सहभागिता और अधिकारों को स्थान मिला है.