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नेपाल के संकट में कूद कर चीन आया सामने

१ जनवरी २०२१

नेपाल के राजनीतिक संकट का साया चीन की रणनीतिक बेल्ट एंड रोड परियोजना पर पड़ने की आशंका से चीन को चिंता में है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के दूत हिमालयी राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन को रोकने की कोशिश कर रहे हैं.

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Nepal Demonstration in Kathmandu
तस्वीर: Prakash Mathema/AFP

नेपाल में संकट 20 दिसंबर को शुरू हुआ. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने फैसला कर लिया कि वो सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी के बीच काम नहीं कर सकते. यह पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी और माओवादी पार्टी के विलय से 2018 में बनी. 2017 के चुनाव में इन पार्टियों को जीत मिली थी. केपी शर्मा ओली के कार्यकाल में अभी दो साल का वक्त बाकी है. इसके पहले ही ओली ने संसद भंग कर दी और नए चुनाव कराने का प्रस्ताव रख दिया.

विदेशी राजनयिकों का कहना है कि ओली के इस कदम ने चीन को हैरान कर दिया और देश की तीन करोड़ की आबादी भी अनिश्चय की आशंका में घिर गई. ओली मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. महामारी के इस दौर में जब अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है तब राजनीतिक उठापटक और अंदरूनी कलह ने लोगों को गुस्सा भड़का दिया. नेपाल में प्रदर्शन हो रहे हैं और प्रधानमंत्री के पुतले जलाए गए हैं.

Nepal Demonstration in Kathmandu
तस्वीर: Aryan Dhimal/imago images/ZUMA Wire

नेपाल में चीन के दूत

आनन फानन में चीन ने अपने दूत गुओ येझुओ को काठमांडू भेज दिया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में अंतरराष्ट्रीय संपर्क विभाग के उप मंत्री येझुओ विदेशों में सत्ताधारी से लेकर विपक्ष तक हर तरह की राजनीतिक पार्टियों से संपर्क का काम देखते हैं. एक वरिष्ठ यूरोपीय राजनयिक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "यह साफ है कि महामारी के दौर में ओली के अचानक उठाए कदम से चीन नाराज हुआ है... उन्हें अपने भारी निवेश की चिंता है जिसका उन्होंने वादा किया है." यूरोपीय राजनयिक ने नाम जाहिर नहीं करने का अनुरोध किया क्योंकि उन्हें मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है. उनका कहना है, "वो हैरान हैं कि ओली कैसे इतना बड़ा राजनीतिक कदम पहले से विचार विमर्श किए बगैर कैसे उठा सकते हैं." 

ओली ने कहा है कि चुनाव दो चरणों  में अप्रैल और मई में कराए जाएं. हालांकि आगे क्या होगा, यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा क्योंकि विरोधियों ने संसद भंग करने की कार्रवाई को संविधान के खिलाफ माना है और सुप्रीम कोर्ट जनवरी में इस मामले की सुनवाई करेगा. गुआ ने ओली और कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरोधियों के साथ ही दूसरे दलों के नेताओं से अलग अलग बैठक की है ताकि सभी पक्षों की कहानी सुन सकें.

काठमांडू में चीनी दल के दौरे के बारे में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि चीन को उम्मीद है, "नेपाल की सभी पार्टियां राष्ट्रहित और संपूर्ण परिस्थिति को सबसे ऊपर रखेंगी और वहां से आगे बढ़ कर आंतरिक मतभेदों को ठीक से सुलझा कर राजनीतिक स्थिरता और देश के विकास के लिए काम करेंगी."

Nepal Demonstration in Kathmandu
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में ओली के प्रमुख आलोचक माधव कुमार नेपाल का नाम गुओ के मुलाकातियों की लिस्ट में ऊपर था. इसके साथ ही एनसीपी के विदेश मामलों के उप प्रमुख राम कार्की ने भी गुओ से मुलाकात की है. कार्की ने चीनी दल से मुलाकात के बारे में कहा, "वो बोलने से ज्यादा सुनना चाहते हैं. वो उन कारणों को जानना चाहते हैं जिसकी वजह से पार्टी में फूट पड़ी." कार्की का यह भी कहना है, "चीन हमेशा से नेपाल में स्थिरता चाहता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एनसीपी का भाइचारे का संबंध हैं इसलिए वो मौजूदा स्थिति को लेकर चिंता में हैं. वे यह जानने की कोशिश में हैं कि क्या पार्टी को एकजुट करने की कोई संभावना है."

असल चिंता निवेश की

गुओ ने विपक्षी नेपाली कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से भी मुलाकात की. बैठक में मौजूद दिनेश बट्टराई ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "नेपाल में कोई भी बदलाव हो, चीन हमेशा सभी राजनीतिक दलों से अपने रिश्ते और ट्रांस हिमालयन मल्टी डायमेंसनल कनेक्टिविटी नेटवर्क के लिए आर्थिक सहयोग जारी रखना चाहता है.

इस नेटवर्क में बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे, उड्डयन और संचार निर्माण शामिल है. इसके लिए अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेपाल दौरे पर सहमति बनी थी. अरबों डॉलर का यह निवेश नेपाल की बीमार अर्थव्यवस्था में जान फूंक सकता है.

हालांकि इसके बाद भी नेपाल में विदेशी राजनयिक गुओ के दौरे को नेपाल के आंतरिक मामले में चीन के बढ़ते दखल के रूप में देख रहे हैं. एक वरिष्ठ पश्चिमी राजनयिक ने कहा, "महामारी के दौर में कोई देश अपने प्रतिनिधिमंडल को इतनी जल्दबाजी में पड़ोसी देश में क्यों भेजेगा. साफ जाहिर है कि वे नेपाल की अंदरूनी राजनीति को नियंत्रित करना चाहते हैं क्योंकि भविष्य में वो वहां निवेश बढ़ाना चाहते हैं."

Nepal Proteste
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS

भारत और चीन के बीच नेपाल

एक एशियाई राजनयिक ने भी लगभग यही बातें दोहराई, "वे जमीन खरीद रहे हैं, बड़े स्तर पर बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं साथ ही सत्ताधारी दल और विपक्ष पर कड़ा नियंत्रण रख रहे हैं. बीजिंग का बहुत कुछ दांव पर है."

भारत और चीन के बीच फंसे नेपाल का चीन की तरफ झुकाव भारत के लिए भी चिंता बढ़ा रहा है. ओली ने नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद का मुद्दा ऐसे समय में उठाया जब भारत पहले से ही कई दशकों में चीन के साथ सबसे बड़े तनाव का सामना कर रहा था. नई दिल्ली के थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस के विश्लेषक कोंस्टानटिनो जेवियर का कहना है, "नेपाल में दखल देने का भारत का इतिहास रहा है लेकिन इस बार वह पीछे खड़ा है, ऐसे में नेपाली लोगों के बढ़ते असंतोष के सामने ज्यादा चीन है."

लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में रिसर्च फैजी इस्माइल मानते हैं कि अगर चीन ओली को राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद में ओली को समर्थन जारी रखता है तो उसे निराशा हाथ लगेगी. इस्माइल ने कहा, "ओली के तानाशाही रवैये और नागरिक अधिकारों पर बंदिशों के खिलाफ प्रदर्शन तेज होने की आशंका है."

एनआर/एके(रॉयटर्स)

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