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नाटो की बैठक, लीबिया की अंधी गली से निकलने की कोशिश

१२ अप्रैल २०११

लीबिया के विद्रोहियों ने संघर्षविराम के लिए अफ्रीकी संघ के प्रस्ताव को नहीं माना. सैनिक मोर्चे पर अवरोध के बीच लीबिया पर विचार के लिए नाटो सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली है.

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गद्दाफी को जाना है.तस्वीर: ap

बर्लिन में दो दिन तक चलने वाली यह बैठक गुरुवार को शुरू होगी जिसमें मुख्यतः लीबिया और अफगानिस्तान की स्थिति की चर्चा की जाएगी. लीबिया में गद्दाफी के सैन्य लक्ष्यों पर नाटो की भारी बमबारी के बावजूद अवरोध की स्थिति बनी हुई है. सप्ताहांत के दौरान गद्दाफी की सेना के दर्जनों टैंक ध्वस्त किए गए, लेकिन विरोधियों का आगे बढ़ना रुक गया है. राजनयिक मोर्चे पर भी कोई प्रगति नहीं हो पाई है. अफ्रीकी संघ की ओर से पांच देशों के नेताओं ने त्रिपोली में गद्दाफी के साथ बातचीत के बाद संघर्षविराम की पहल की थी, लेकिन बेनगाजी में विद्रोही नेताओं से उनकी भेंट के बाद पता चला है कि सहमति नहीं हो सकी है. विद्रोहियों का कहना है कि एक स्वीकार्य समाधान के लिए गद्दाफी का हटना जरूरी है.

नाटो के महासचिव आंदर्स फो रासमुसेन ने स्वीकार किया है कि सिर्फ सैनिक ताकत के जरिए लीबिया संकट का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि एक राजनीतिक समाधान जरूरी है. उन्होंने कहा कि संघर्षविराम विश्वसनीय और जांचा परखा होना चाहिए. रासमुसेन ने कहा कि जब तक गद्दाफी की सेना जनता को खतरे में डालती रहेगी, उन पर हवाई हमले किए जाते रहेंगे.

बर्लिन की बैठक में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भी भाग लेंगी. उन्होंने फिर एक बार गद्दाफी से गद्दी छोड़ने की मांग की. उन्होंने कहा है कि ऐसे एक परिवर्तन की जरूरत है, जिसमें जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति हो और गद्दाफी सत्ता का त्याग करते हुए लीबिया छोड़ दें.

लीबिया में बमबारी के पहले दौर की जिम्मेदारी अमेरिकी जनरल कार्टर हैम पर थी. उन्होंने कहा है कि लीबिया का संघर्ष लंबा खिंचता दिख रहा है और यह मुमकिन नहीं लगता है कि विद्रोही त्रिपोली पर कब्जा कर पाएंगे.

नाटो की यह बैठक जर्मनी की राजधानी में हो रही है. यानी एक ऐसे देश में, जिसने लीबिया के खिलाफ ताकत के प्रयोग के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया था. जर्मनी बमबारी में भी भाग नहीं ले रहा है, बल्कि सिर्फ मानवीय सहायता के क्षेत्र में सक्रिय है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ए कुमार

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