नाजी शासन जैसा था आपात कालः आडवाणी
३ जनवरी २०११आडवाणी ने अपने ब्लॉग को "1975 की इमरजेंसी नाजी शासन के समान" शीर्षक दिया है. हालांकि आडवाणी ने यह नहीं लिखा है उन्होंने क्यों नाजी शब्द का इस्तेमाल किया है, लेकिन उन्होंने जस्टिस एचआर खन्ना का हवाला दिया है. 1976 में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस खन्ना ने सरकार से असहमति जताते हुए नाजी शब्द का इस्तेमाल किया. यह फैसला उन्होंने इमरजेंसी के दौरान मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) कानून के तहत हिरासत में लिए गए लोगों के पक्ष में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारत सरकार की अपील से जुड़े मामले में दिया.
आडवाणी ने इस फैसले के अंश को अपने ब्लॉग का हिस्सा बनाया है जिसके मुताबिक, "यह दलील दी जाती है कि अपने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को लागू करने के लिए किसी भी अदालत में जाने के व्यक्ति के अधिकार पर रोक संविधान के प्रावधान के तहत ही लगाई गई है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि इससे पैदा हालात कानून का राज नहीं है. एक तरह से तो यह भी दलील दी जा सकती है कि सैंकड़ों लोगों की जिंदगी से कानून की परवाह किए बिना मनमर्जी से दुर्व्यवहार किया जा सकता है. ऐसे में तो व्यवस्थित तरीके से नाजी दौर में बड़े पैमाने पर की गई हत्याओं को भी कानून के मुताबिक करार दिया जा सकता है." इस फैसले में संविधान के 21वें अनुच्छेद का जिक्र है जो न सिर्फ निजी स्वतंत्रता बल्कि जीने का भी अधिकार देता है.
आडवाणी ने ब्लॉग में लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान 1,10,806 लोगों को हिरासत में लिया गया. वह बताते हैं कि इनमें से 34,988 लोगों को मीसा कानून के तहत हिरासत में रखा गया जिसमें इन लोगों को जेल में रखने का कोई आधार नहीं बताया गया. इन कैदियों में जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वायपेयी, बाला साहेब देवरास और बड़ी संख्या में सांसद, विधायक और कई जाने माने पत्रकार शामिल थे. इनमें से कई लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस पर हुए फैसले को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सर्वोच्च अदालत की पांच जजों वाली बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया. सिर्फ जस्टिस खन्ना की राय इससे अलग थी.
आडवाणी ने कहा है कि कांग्रेस ने अपने 125 साल पूरे होने के मौके पर जो 172 पन्नों की किताब "कांग्रेस और भारतीय राष्ट्र का निर्माण" जारी की गई है उसमें सिर्फ दो छोटे पैराग्राफ्स में समेट दिया गया है कि 1975 से 1977 के बीच क्या हुआ. वहीं इमरजेंसी लगाने के कारणों को गिनाने के लिए दो पन्ने समर्पित किए गए हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम