नदियों के सीने पर जहाज उद्योग का फावड़ा
४ अप्रैल २०१२जर्मनी के उत्तरी इलाके की बड़ी नदी एल्बे की सातवीं बार खुदाई के लिए आखिरी बाधा भी खत्म हो गई है. श्लेसविग होलश्टाइन राज्य के बाद लोअर सेक्सनी ने भी इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है. इससे फायदा (या नुकसान) ये होगा कि एल्बे नदी में 14.5 मीटर गहरे जहाज भी चल सकेंगे और हैम्बर्ग के बंदरगाह तक पहुंच सकेंगे. अभी बड़े जहाजों से सामान छोटे जहाजों में लादा जाता है और फिर उसे हैम्बर्ग के बंदरगाह तक पहुंचाया जाता है. अभी तक एल्बे नदी को कुल छह बार जहाजों के लिए गहरा किया गया है. आखिरी बार इसे 1999 में गहरा किया गया था.
सातवीं बार
अब एल्बे कुक्सहाफेन और हैम्बर्ग के बीच करीब 130 किलोमीटर के इलाके में गहरी की जाएगी. इसके लिए कुल खर्च 40 करोड़ यूरो आने की संभावना है. हालांकि आलोचक इसके कहीं ज्यादा होने की आशंका जता रहे हैं. वहीं पर्यावरणवादी दावा कर रहे हैं कि इससे मछलियों और पानी में उगने वाले पौधों को भारी नुकसान होगा. नदी किनारे फलों की खेती करने वाले किसानों को डर है कि पानी खारा हो जाएगा. इसके लिए दो करोड़ यूरो खर्च करके मीठे पानी के गड्ढे बनाए जाएंगे जिससे उन इलाकों में खेती प्रभावित न हो.
एल्बे नदी जर्मनी के उत्तर में समुद्र से मिलती है और इसके पानी में ज्वार भाटे का बहुत ज्यादा प्रभाव होता है. नदी में ज्वार के समय ही जहाज हैम्बर्ग के बंदरगाह पर आ सकते हैं. नदी के गहरा करने से ज्यादा जहाज बंदरगाह तक आ सकेंगे. नदी और सागर का यह मेल हैम्बर्ग को बंदरगाह के रूप में महत्वपूर्ण बनाता है. यहां एशिया से काफी मालवाहक जहाज आते हैं.
व्यापार चोखा
हैम्बर्ग में ब्राजील, चीन सहित अनेक विकासशील देशों से मालवाहक जहाज आते हैं. बंदरगाह पर ट्रांसपोर्ट में 2011 के दौरान नौ फीसदी बढ़ोतरी हुई. इस साल हैम्बर्ग ने बेल्जियम के बंदरगाह अंटवैर्पन को पीछे छोड़ एम्सटरडम के रोटरडाम बंदरगाह के बाद दूसरे नंबर पर जगह बना ली. अब हैम्बर्ग और ब्रेमन की नजर विकास और लाभ पर टिक गई है. दोनों ही अपने अपने बंदरगाहों को और सक्षम बनाना चाहते हैं. इसके लिए एल्बे सहित एम्स और वेजर नदी की पारिस्थितिकी दांव पर लगाई जा रही है. उत्तरी सागर के आसपास बहने वाली इन तीन नदियों को तेजी से बड़े कंटेनर जहाजों के लिए विकसित किए जाने की योजना है. वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फेडरेशन का कहना है कि लोअर सेक्सनी, हैम्बर्ग और श्लेसविग होलश्टाइन को विकसित किए जाने के लिए तीनों नदियों को गहरा करने की जरूरत नहीं है. पूरी योजना में टिकाऊ विकास और पारिस्थितिकी को बिलकुल ध्यान में नहीं रखा गया है.
नेताओं की मुहर के बाद भी यह योजना 2014 में पूरी हो ही जाएगी ऐसा जरूरी नहीं. पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठनों ने पहले ही कह दिया है कि इस मामले को लेकर पर जर्मनी की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत में जाएंगे.
रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए,रॉयटर्स)
संपादनः महेश झा