मनोविज्ञान का सहारा लेकर समलैंगिकों को 'सुधारने' के कोशिश
१५ अगस्त २०१८साल 2014 में अमेरिका की रहने वाली 17 वर्षीय लीला अल्कर्न ने तेज रफ्तार ट्रैफिक के सामने आकर अपनी जान दे दी. वजह थी उनका ट्रांसजेंडर होना. मौत के पहले उन्होंने एक ब्लॉग लिखा था जिसमें ईसाई समुदाय के कुछ लोगों द्वारा उन्हें 'सुधारने' की कोशिशों की जिक्र था. लीला ने लिखा कि कैसे कुछ कट्टरपंथियों ने उनके ट्रांसजेंडर होने को गलत बताकर उन्हें प्रताड़ित किया.
इस घटना ने अमेरिका में ऐसे सुधारकों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. कुछ महीनों बाद ही एक ऑनलाइन पीटिशन द्वारा लोगों ने ऐसे सुधारकों पर कानूनन प्रतिबंध लगाने की मांग की. 6 महीने बीत जाने पर तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस कानून को मंजूरी दे दी. वहीं, मार्च 2018 में यूरोपियन संसद ने सभी देशों को ऐसे सुधारकों के खिलाफ कानून बनाने के निर्देश दिए.
गे, लेस्बियन या ट्रांसजेंडर लोगों को गलत साबित कर उनकी थेरेपी करने वालों के खिलाफ अब दुनिया भर में मुहिम शुरू हो चुकी है. अमेरिका में कानून बनने के बाद न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में भी सख्त कानून बन चुके हैं.
ब्रिटिश एलजीबीटी ग्रुप स्टोनवॉल की अध्यक्ष लॉरा रूसेल के मुताबिक, ''एलजीबीटी समुदाय के लोगों को किसी हीट्रोसेक्सुअल की तरह व्यवहार करने पर मजबूर करना गलत है.''
ब्रिटेन में 1,08,000 एलजीबीटी समुदाय पर हुए सर्वे में 2 फीसदी ने माना कि उन्हें 'सुधारने' की कोशिशें की गई हैं. करीब 13 फीसदी ट्रांसजेंडरों ने माना कि उन्हें ठीक करने के लिए प्रस्ताव भेजे गए हैं या थेरेपी दी गई है.
मनोविज्ञानी जिगमुंड फ्रॉएड बताते थे कि ऐसे सुधार बड़े ही विचित्र होते है. एलजीबीटी समुदाय के लोगों को सुधारने का मतलब उन्हें विपरीत लिंग की तरफ आकर्षित करवाने की कोशिश करना है. इसके लिए सम्मोहन और बिजली के झटकों का भी सहारा लिया जाता है.
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अमेरिकी सर्जन जनरल डेविड सैशर की 2001 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि अब तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जिससे यह साबित हो सके कि हम किसी शख्स के सेक्सुअल व्यवहार और पसंद को बदल सकते हैं.
हालांकि थेरेपी देने वालों का अपना पक्ष है. अमेरिका में बैन के बावजूद कई मेडिकल सेंटरों पर सेक्सुअल झुकाव को बदलने की कोशिशें की जा रही है्. एक थेरेपिस्ट ने बताया, ''एलजीबीटी समुदाय ने थेरेपी को लेकर गलत धारणा बना ली है. हम ऐसे थेरेपिस्ट हैं जिन्हें सरकार की तरफ से लाइसेंस मिला हुआ है. हम ऐसे लोगों का इलाज करते हैं जिनमें इमोशंस की वजह से किसी समान लिंग वाले शख्स के प्रति झुकाव हो गया है. ऐसे लोग गे या लेस्बियन नहीं हुआ करते हैं.''
इस तर्क से एलजीबीटी समुदाय सहमत होता दिखाई नहीं देता है. उनका मानना है कि मेडिकल साइंस का सहारा लेकर ऐसी प्रैक्टिस हमेशा से की जाती रही है.
वीसी/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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