धंस रहा है बैंकॉक
२ मई २०१३पानी का चढ़ रहा जोर और धंसती जमीन को सरकार भले ही संजीदगी से न ले रही हो लेकिन थाइलैंड के वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ती जा है. थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक सालों से लगातार धंसती जा रही है और इस मुसीबत से निबटने के लिए समय भी तेज रफ्तार में भाग रहा है. हर साल जमीन लगभग डेढ़ इंच धंस रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर शीघ्र ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो बात हाथ से निकल सकती है.
थाइलैंड के वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार इस बात को लगातार नजरंदाज कर रही है जो कि सही नहीं है. सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए जानकारी देने वाली राष्ट्रीय एजेंसी के अनुसार बैंकॉक की स्थिति समय बीतने के साथ और भी खराब हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या से निबटने के लिए हाथ में बस सात से दस साल का समय ही शेष है. उन्होंने चेतावनी दी है कि शहर के डूबने की यह रफ्तार आने वाले समय में और भी तेज हो सकती है. जियो इन्फोर्मेटिक्स और स्पेस टेकनोलॉजी डेवलेपमेंट रिसर्च एजेंसी के प्रमुख डॉक्टर एनॉन्द सानितवॉन्ग बताते हैं, "इमारतें 20 मिलीमीटर धंस रही हैं साथ ही आसपास की मिट्टी भी 10 से 20 मिलीमीटर धंस रही है. यह इस तरफ इशारा करता है कि हर साल जमीन का स्तर कम से कम 30 मिलीमीटर नीचे उतर रहा है. यह जितना हमने सोचा थी उससे कहीं ज्यादा तेज रफ्तार है." बीते सालों में बार बार आई बाढ़ ने बैंकॉक की सड़कों पर भी कई दरारें छोड़ी हैं. सानितवॉन्ग ने चेतावनी देते हुए कहा, "मौजूदा आंकड़े आने वाले खतरे की तरफ इशारा करते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि हम डूब ही जाएंगे, लेकिन ज्वार के समय में जब पानी ऊपर आएगा तो नालियों में ऊपर तक पानी भर सकता है." उनके अनुसार इस समस्या के लिए 50 फीसदी कारखानों से निकल कर जमीन की तह में भरने वाला पानी है. हालांकि कानूनी तौर पर इस पर पाबंदी लग चुकी है लेकिन ऐसा होना बंद नहीं हुआ है. साथ ही आधुनिक गगनचुंबी इमारतों का वजन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है.
पर्यावरण परिवर्तन का असर
सानितवॉन्ग ने बताया कि बैंकॉक करीब 230 साल पहले अस्तित्व में ही पर्यावरण परिवर्तन के कारण आया था. यहां हवा और तूफान के साथ आई मिट्टी और रेत जमा होती गई और कुछ सालों में यह इलाका बैंकॉक बन गया. यही कारण है कि पर्यावरण परिवर्तन का यहां बहुत ज्यादा असर पड़ता है. उन्होंने कहा, "इस समय यहां बहुत ज्यादा तेज आंधी या तूफान जैसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है जिसके कारण यहां न तो समुद्र से और रेत यहां आकर इकट्ठा हो रही है ना मिट्टी."
ऐतिहासिक इमारतों को खतरा
थाइलैंड में विदेश मामलों के पूर्व उपमंत्री और वैज्ञानिक आर्तोंग युम्साइ सालों से थाइलैंड सरकार को इस बात की चेतावनी देते आए हैं. उन्होंने बताया, "कोई आगे आकर इस मामले में कोई कदम नहीं उठाना चाहता. सबका ध्यान सिर्फ आगामी चुनाव पर है. लोग इस तरह की बातें सुनना नहीं चाहते. सरकार सिर्फ कारोबारी फायदों में दिलचस्पी ले रही है, उनकी रुचि पर्यटकों को लुभाने भर में है, इसलिए वे नहीं चाहते कि लोग किसी भी नकारात्मक विषय में बात करें."
शहर के आधुनिकीकरण के साथ नए शॉपिंग माल भी बढ़ते जा रहे हैं. अधिकारी यह भी नहीं चाहते कि निवेषक इस तरह की किसी भी बात से बिदक जाएं. इन नई इमारतों को कई मंजिला बनाने के लिए नींव भी कई मीटर गहराई तक डाली जा रही है, जबकि शहर के पुराने मंदिरों और दूसरी ऐतिहासक इमारतों के पास उतना मजबूत ढांचा नहीं है.
युम्साइ ने कहा, "पुरानी इमारतों को ज्यादा खतरा है क्योंकि उनकी नींव नई इमारतों जैसी मजबूत नहीं है. पानी का स्तर ऊपर आ जाने के कारण कई मंदिरों में जलभराव की समस्या सामने आ रही है. बैंकॉक का बान खुन तियान मंदिर पानी के बीच में बना है. पानी ऊपर चढ़ जाने की वजह से मंदिर की निचली मंजिल को पहले ही पानी में डूब चुका है.
कैसे निबटा जाए
समस्या से निबटने के उपायों में वैज्ञानिकों के अलग मत हैं. कुछ का तो यह भी सुझाव है बैंकॉक की जगह देश के किसी उत्तरी शहर को राजधानी बना दिया जाए. वहीं कुछ और वैज्ञानिकों का मानना है कि बैंकॉक के किनारों पर वायुशिक दलदल जैसे प्राकृतिक तरीकों की मदद से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.
यहां घूमने आने वाले लोगों को यहां खरीदारी करना बहुत भाता है लेकिन वे यह नहीं जानते कि शहर धीरे धीरे धंसता जा रहा है. जिन शॉपिंग मॉल में वे खरीदारी करते हैं उन्ही का वजन जमीन पर भारी पड़ रहा है. युम्साइ को लगता है कि अधिकारियों को बैंकॉक के इर्द गिर्द बड़े बांध बनाने के बारे में भी सोचना चाहिए. उनके अनुसार जिस तरह समुद्री सतह से भी नीचे पहुंच चुके नीदरलैंड ने अपनी रक्षा के लिए पैसे खर्चे हैं वैसे ही बैंकॉक को भी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए कई अरब डॉलर का निवेश करना होगा.
रिपोर्ट: निक मार्टिन/ समरा फातिमा
संपादनः आभा मोंढे