नींद और दिमाग का रिश्ता
१ जनवरी २०१४स्वीडन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नींद से मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने में काफी मदद मिलती है. अगर ऐसा ना हो तो दिमाग को नुकसान पहुंचाने वाले अणु काम में लग जाते हैं. यह शोध स्वीडन की उपसाला यूनिवर्सिटी में किया गया. रिसर्चरों की एक टीम ने 15 लोगों पर नींद का टेस्ट किया. इन लोगों को दो ग्रूप में बांटा गया. कुछ को रात भर सोने नहीं दिया और बाकियों को आठ घंटे तक सुलाया गया. दोनों समूहों के बीच नींद में अंतर के कारण काफी अलग असर दिखाई दिया.
शोध के दौरान जब वैज्ञानिकों ने लोगों के खून की जांच की तो पाया कि जो लोग बिना सोये रहे, उनके खून में दो खास तरह के अणुओं की संख्या बढ़ गई. इनमें से एक था न्यूरॉन स्पेसिफिक इनोलेज या एनएसई और दूसरा एस-100 कैल्शियम-बाइंडिंग प्रोटीन बी या एस-100 बी. इन अणुओं की संख्या में सिर्फ एक रात ना सोने की बजह से करीब 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
अल्जाइमर का कारण
तंत्रिका विज्ञानी क्रिस्टियान बेनेडिक्ट बताते हैं, "यह अणु खून में तब बढ़ जाते हैं जब मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है." बेनेडिक्ट को लगता है कि नींद इस क्षति को रोक सकती है, "नींद की कमी से तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचने की प्रक्रिया तेज हो जाती है, जबकि रात की अच्छी नींद मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है."
यह रिसर्च भी उसी दिशा में इशारा करती है जिसे अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कुछ महीने पहले किया. अक्टूबर 2013 में अमेरिका के 'स्लीप' नाम के एक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र में बताया गया कि सोने से मस्तिष्क में पाए जाने वाले कोशिकीय कचरे की सफाई में मदद मिलती है. मस्तिष्क के मलबे में एमाईलॉएड बीटा नाम का एक प्रोटीन भी होता है जो अगर दिमाग में जमा होता रहे तो आगे चल कर अल्जाइमर या और कई दिमागी बीमारियों का कारण बन सकता है.
नींद में दिमाग की सफाई
अमेरिका के रॉचेस्टर मेडिकल सेंटर के रिसर्चरों ने चूहों पर शोध से पता लगाया कि दिमाग के पास उसका खुद का क्लीनिंग सिस्टम होता है. दिमाग की सफाई का काम करने वाले इस ग्लिम्फैटिक सिस्टम में मस्तिष्क की ग्लियल कोशिका प्रमुख भूमिका निभाती है. समस्या यह है कि ग्लियल कोशिकाएं दिमाग के कचरे को बाहर निकालने का काम तो करती हैं लेकिन उतनी तेजी से नहीं जितना होना चाहिए.
दिमाग की सफाई में हर दिन कम से कम आठ घंटे लगते हैं. यह वही आठ घंटे हैं जब हम सो रहे होते हैं. नींद में दिमाग की कोशिकाओं के बीच दूरी बढ़ जाती है और इससे कचरा आसानी से इनके बीच आ जाता है और उसके बाहर निकलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर नींद कम हो तो दिमाग की सफाई पूरी नहीं होती और इससे मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है. इस तरह नींद में समस्या को अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी दिमाग की बीमारियों से जोड़ा जा सकता है.
कम सोने से होते हैं मोटे
पहले कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि नींद की कमी के साथ मोटापे का भी गहरा रिश्ता है. बेनेडिक्ट और उनकी टीम ने ही 2011 में किए अपने एक शोध में पाया कि एक रात न सोने पर एक स्वस्थ इंसान के शरीर में ऊर्जा की खपत में 5 से 20 फीसदी तक कमी आ जाती है. नींद ठीक से न होने पर सुबह ब्लड शुगर, भूख नियंत्रित करने वाले हार्मोन घ्रेलीन व तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन कोर्टिजोल की मात्रा बढ़ जाती है.
कई दूसरे अध्ययनों में देखा गया है कि पांच घंटे तक या उससे कम सोने वालों में वजन बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है.
आरआर/आईबी (एएफपी)