दावे पर रामल्ला में उमंगों की बयार
२४ सितम्बर २०११दसियों हजार से ज्यादा लोग शुक्रवार की रात पश्चिमी तट से लगते शहरों के केंद्र में जमा हो गए. उधर न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की महासभा के मंच पर आकर फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने जैसे ही अपनी दावेदारी का दावा पेश किया और दस्तावेजों को हाथ में लेकर लहराया, इधर पश्चिमी तट गगनभेदी नारों से गूंज उठा. पिछले एक साल से इस्राएल के साथ शांति वार्ता पर लगे विराम और आए दिन होने वाली सैन्य कार्रवाइयों से जूझते फलीस्तीन में उत्सव जैसा माहौल है. लोग जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकल आए. फलीस्तीन के तीन प्रमुख अखबारों ने पहले पन्ने पर इसी जश्न की तस्वीरें छापी हैं और बड़े अक्षरों में फलीस्तीनी दावे की खबर को हेडलाइन बनाया है.
अखबारों में छाए महमूद अब्बास
अल कुद्स डेली ने महमूद अब्बास की तस्वीर के साथ शीर्षक दिया है, "प्रेसिडेंट अब्बासः द आवर ऑफ द पलेस्टिनियन स्प्रिंग...द आवर ऑफ इंडीपेंडेंस." अल-हयात अल-जदीदा अखबार के स्तंभकार आदिल अब्दुल रहमान ने संयुक्त राष्ट्र में महमूद अब्बास के भाषण के लिए उनकी जमकर तारीफ की है और कहा है कि राष्ट्रपति को वर्तमान में पश्चिमी तट में जितनी लोकप्रियता हासिल थी उसमें अभूतपूर्व इजाफा हुआ है. रहमान ने राष्ट्रपति के प्रचलित नाम का इस्तेमाल कर लिखा है, "राष्ट्रपति अबू माजेन का भाषण महान और सभी मानकों पर साहसिक था, आजादी के आंदोलन, अरब फलीस्तीनी राष्ट्र के राष्ट्रपति और एक राजनीतिज्ञ हर तरह से उन्होंने शानदार बात कही." एक और अखबार अल अय्याम लिखता है, "द प्रेसिडेंटः फलीस्तीन रिसरेक्टेड" इसके साथ एक कार्टून भी छापा गया है जिसमें एक उड़ान भरते बाज की तस्वीर है जिसके सीने पर फलीस्तीनी झंडे का रंग और एक लोगो बना हुआ है. नीचे लिखा है "द स्टेट ऑफ फलीस्तीन".
संयुक्त राष्ट्र के दांवपेंच
हालांकि इस उत्सव वाले दुर्लभ माहौल के पीछे मुश्किल सवाल हैं कि फलीस्तीन की संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता को कौन समर्थन देगा. पश्चिमी तट उल्लास से भरा है तो गजा पट्टी में बिल्कुल खामोश है. इस इलाके पर हमास का शासन है जो संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए दावे के खिलाफ है. हमास का कहना है, "देश संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से नहीं बनते." बहुत सारे फलीस्तीनियों का उत्साह इस बात से भी आशंकाओं में घिर रहा है क्योंकि अमेरिका इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने देगा. या तो वह सुरक्षा परिषद के सदस्यों को इसके खिलाफ या वोटिंग से बाहर रहने के लिए मना लेगा या फिर सीधे तौर पर वीटो कर देगा.
इसके अलावा महमूद अब्बास और उनकी फलीस्तीनी अथॉरिटी के खिलाफ कुछ और आशंकाएं भी हैं. फलीस्तीन के सेंटर फॉर पॉलिसी एंड सर्वे रिसर्च के पिछले हफ्ते कराए एक सर्वे में पता चला है कि 78 फीसदी फलीस्तीनियों को उम्मीद है कि इस्राएल इस दावे के विरोध में आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगा देगा. इसके अलावा यही काम अमेरिका की तरफ से होगा ऐसा मानने वाले लोगों की तादाद भी करीब 64 फीसदी है.
फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने संयुक्त राष्ट्र से फलीस्तीनी लोगों के लिए उनके देश को सदस्यता देने की मांग की है लेकिन इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू ने संयुक्त राष्ट्र को खारिज करते हुए इसे बेतुके लोगों का नाटक बताया और कहा कि सिर्फ सीधी बातचीत के जरिए ही शांति आ सकती है. महमूद अब्बास ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता की मांग वाला आग्रह पत्र सौंपा. सुरक्षा परिषद इस पर सोमवार को चर्चा करेगी. अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह इस मुद्दे पर इस्राएल का साथ देगा और अगर वोटिंग की नौबत आई तो वीटो का इस्तेमाल करेगा.
दावा पेश करते वक्त भावुक नजर आ रहे राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा, "मैं नहीं यकीन करता कि कोई भी शख्स अपनी अंतरात्मा की आवाज पर हमारे आवेदन और स्वतंत्र राष्ट्र की हमारी मांग को खारिज कर सकता है." अब्बास और नेतान्याहू दोनों ने अपने भाषण में कहा कि वे अपना हाथ दूसरे की तरफ बढ़ा रहे हैं लेकिन इसके साथ ही दोनों ने एक दूसरे पर शांति की कोशिशों की नाकामी के लिए आरोप भी लगाया. नेतान्याहू ने कहा, "हम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के जरिए शांति नहीं ला सकते". इस्राएल की मांग है कि फलीस्तीन इस्राएल को यहूदी राष्ट्र के रूप में स्वीकार करें जिसे फलीस्तीन मानने को तैयार नहीं. फलीस्तीन का मानना है कि इससे फलीस्तीनी शरणार्थियों के अधिकारों को नुकसान पहुंचेगा. महमूद अब्बास ने जब बस्तियां बसाने की कार्रवाई को तुरंत रोकने की मांग की तो नेतान्याहू ने अब्बास से न्यूयॉर्क में ही तुरंत मिलने का प्रस्ताव दिया.
टूट गया है भरोसा
फलीस्तीन का कहना है कि वह संयुक्त राष्ट्र को विचार करने के लिए कुछ समय देगा लेकिन अगर इसमें नाकामी मिलती है तो वह महासभा से पूर्ण सदस्यता के दर्जे की मांग करेगा जिससे कि वह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सदस्य बन सके. फलीस्तीन की यह मांग पिछले दो दशकों से अमेरिकी कोशिशों से चली आ रही शांतिवार्ताओं की नाकामी का नतीजा है. महमूद अब्बास ने कहा, "बस्तियां बसाने की नीति दो राष्ट्रों के रूप में समाधान की उम्मीदों को खत्म कर देगा. इससे फलीस्तीनी राष्ट्रीय अथॉरिटी की संरचना कमजोर होगी. यहां तक कि इसका अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा."
अब्बास ने पहली बार फलीस्तीनी अथॉरिटी के अस्तित्व पर संभावित खतरे का मसला उठाया है. देश के निर्माण के लिए खड़ी की गई इस संस्था को आलोचक किसी बड़ी म्युनिसिपाल्टी से ज्यादा नहीं मानते जो मुख्य इस्राएली कब्जे में मौजूद फलीस्तीनी शहरों के नागरिक मसलों का प्रबंधन देखती है. फलीस्तीनी अथॉरिटी का खत्म होना पूरे पश्चिमी तट की जिम्मेदारी इस्राएल के हाथों में सौंप देगा. इस्राएल और अमेरिकी राजनेताओं ने मदद में कटौती की धमकी दी है जिससे कि फलीस्तीनी अथॉरिटी कमजोर हो सकती है ऐसे में इसके लिए काम करने वाले डेढ़ लाख लोगों की नौकरी भी जा सकती है.
इतिहास का बोझ
संयुक्त राष्ट्र ने फलीस्तीन को 1947 में दो भागों में बांट दिया लेकिन अरब राष्ट्र ने इसे खारिज कर दिया और इस्राएल के साथ जंग छेड़ दी. इसके बाद इस्राएल ने संयुक्त राष्ट्र से मिले हिस्से के अलावा भी बहुत सारे और इलाकों पर कब्जा कर लिया. नतीजा यह हुआ कि लाखों लोग बेघर हो गए और शरणार्थी बनने पर मजबूर हुए. पूर्वी यरुशलम समेत पश्चिमी तट पर कब्जे के दो दशक बाद जब इस्राएल ने गजा पट्टी पर भी कब्जा कर लिया तो फलीस्तीन मुक्ति संगठन ने इस्राएल को मान्यता दी और राष्ट्र के रूप में अपनी मांग को बस इन्हीं इलाकों तक सीमित कर लिया. 1993 में फलीस्तीनी मुक्ति संगठन पीएलओ के नेता यासर अराफात और इस्राएली प्रधानमंत्री यित्जाक रॉबिन ने व्हाइट हाउस में हाथ मिलाया और फलीस्तीनियों को उनके अपने शासन स्थापित करने के लिए योजना बनी.
यह योजना पूरे तौर पर कभी अमल में आई ही नहीं. इस्राएल ने गजा पट्टी पर तो अपनी बस्तियां हटा लीं लेकिन पश्चिमी तट पर उसने अपनी बस्तियों को बढ़ा लिया. गजा पट्टी पर अब हमास का शासन है जो इस्राएल को मान्यता देने से इनकार करता है. अब्बास मानते हैं कि बातचीत जरूरी है लेकिन उनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र से उनके देश को राष्ट्र का दर्जा उन्हें बराबरी का हक देगा.
सुरक्षा परिषद में टकराव टालने के लिए मध्यपूर्व की चौकड़ी ने चार हफ्ते के भीतर शांतिवार्ता फिर से शुरू करने और छह महीने के भीतर 'मजबूत प्रगति' और साल भर के भीतर समझौता करने का आग्रह किया है. चौकड़ी में शामिल अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने इस्राएल और फलीस्तीन से तीन महीने के भीतर अपने इलाके और सुरक्षा पर प्रस्ताव पेश करने को कहा है. चौकड़ी के विशेष दूत और पूर्व ब्रिटिश प्रधानमत्री टोनी ब्लेयर ने कहा कि बड़ी शक्तियों का मानना है कि वे बहुत जल्द ऐसे दिशानिर्देश तैयार कर लेंगे जो दोनों देशों को स्वीकार होंगे.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार