बीफ निकले भी तो क्या हत्या सही?
१ जून २०१६सितंबर 2015 में दादरी के पास एक गांव में मोहम्मद अखलाक को घर में बीफ रखने के आरोप में पीट पीट कर मार डाला गया था. बीते महीनों में कई बार इस पर बहस हुई कि मृतक अखलाक के घर के फ्रिज में रखा मीट सचमुच बीफ था या कुछ और. तमाम राउंड की जांच के बाद भी इसका जवाब मिलाजुला रहा है.
सबसे हाल की रिपोर्ट यूपी सरकार की मथुरा स्थित फॉरेंसिक लैब से आई है, जिसमें सैंपल के बीफ होने की पुष्टि हुई. वहीं प्रमुख अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में यूपी के ही एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से लिखा है कि सैंपल के बीफ होने से यह तो सिद्ध नहीं होता कि अखलाक ने घर में बीफ रखा था या खाया था, और ना ही यह साबित होता है कि सैंपल उसी के घर से लाया गया है.
सबसे अहम सवाल यह है कि भारत में 58 साल के एक आम मुसलमान नागरिक की हत्या का मकसद क्या था. मीट अगर वाकई बीफ निकला भी तो क्या उसको पीट पीट कर मार डालना जायज ठहराया जा सकता है? हत्या के मामले की जांच में मीट की प्रकृति नहीं, बल्कि हत्या करने की वजह ढ़ूंढना जरूरी है.
कई आम-ओ-खास लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर लिख रहे हैं कि सैंपल की जांच करवाने की कोई जरूरत ही नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि किसी की हत्या के लिए ऐसी वजह साबित करने के भारतीय न्याय व्यवस्था तक में कोई मायने नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में बीफ खाना कानून की नजर में अपराध नहीं है लेकिन गोहत्या पर प्रतिबंध है.
मोहम्मद अखलाक की हत्या की जांच के सिलसिले में अब तक 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें एक स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ता का बेटा भी शामिल है. अखलाक मामले की सुनवाई गौतम बुद्ध नगर के फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही है.
इस हत्याकांड से भारत में असहनशीलता पर एक बड़ी बहस छिड़ गई थी. असहनशीलता या इनटॉलरेंस हर उस व्यक्ति, कार्य या रहन सहन के प्रति जो बहुसंख्यकों के मानक से मेल ना खाती हो. यह भारतीय संविधान में हर नागरिक को अपनी इच्छा के धर्म, मान्यता और रहन सहन को मानने के लिए मिली बुनियादी स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है.