दलितों के खिलाफ अपराध के 94 प्रतिशत मामले रह जाते हैं लंबित
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्हें न्याय भी नहीं मिलता. अधिकतर मामले अदालतों में लंबित ही रह जाते हैं.
बढ़ रहे हैं अपराध
देश में 2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ 45,935 अपराध हुए, जो 2018 में हुए अपराधों के मुकाबले 7.3 प्रतिशत ज्यादा हैं. इस संख्या का मतलब है दलितों के खिलाफ हर 12 मिनट में एक अपराध होता है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ अपराध में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में
राज्यवार देखें, तो 11,829 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश में हालात सबसे गंभीर हैं. एक चौथाई मामले अकेले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए. इसके बाद हैं राजस्थान (6,794) और बिहार (6,544). 71 प्रतिशत मामले इन्हीं पांच राज्यों में थे. राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जाती के लोगों की आबादी के अनुपात के लिहाज से, अपराध की दर राजस्थान में सबसे ऊंची पाई गई. उसके बाद नंबर है मध्य प्रदेश और फिर बिहार का.
अधिकतर मामले चोट पहुंचाने के
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में सबसे बड़ा हिस्सा (28.89 प्रतिशत) शारीरिक पीड़ा या अंग-दुर्बलता के रूप में क्षति पहुंचाने के मामलों का है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में भी सबसे बड़ा हिस्सा (20.3 प्रतिशत) क्षति पहुंचाने के मामलों का ही है.
दलित महिलाओं का बलात्कार
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 7.59 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा (554) मामले राजस्थान से थे और उसके बाद उत्तर प्रदेश से. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 13.4 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा मामले (358) मध्य प्रदेश से थे और उसके बाद छत्तीसगढ़ से. 10.7 प्रतिशत मामले एसटी महिलाओं की मर्यादा के उल्लंघन के इरादे से किए गए हमलों के थे.
लंबित मामले
पुलिस की कार्रवाई के लिहाज से कुल 28.7 प्रतिशत और सुनवाई के लिहाज से 93.8 प्रतिशत मामले लंबित रह गए. ये आम मामलों के लंबित रहने की दर से ज्यादा है.
सुनवाई भी नहीं
2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए 204,191 मामलों में सुनवाई होनी थी, लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत मामलों में सुनवाई पूरी हुई. इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत मामलों में दोषी का अपराध साबित हुआ और 59 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो गए.
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