दक्षिणी ध्रुव पर जीत के 100 साल
१४ दिसम्बर २०११नॉर्वे ने आमुंडसेन के सम्मान में दक्षिणी ध्रुव पर खास आयोजन का फैसला किया. ठीक वैसा ही रूट तैयार किया गया, जैसा 100 साल पहले आमुंडसेन ने लिया था. उन्हीं की तरह यात्रा की शुरुआत 19 अक्तूबर को की गई और इसे 14 दिसंबर को पूरा करना था. लेकिन सौ साल बाद भी यह संभव नहीं हो पाया और टीम के कुछ लोगों को हवाई यात्रा करने के बाद ही दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में कामयाबी मिल पाई.
नॉर्वे के पोलर इंस्टीट्यूट प्रमुख यान-गुनर विन्थर ने बताया, "हमसे जो बन पड़ा हमने वही किया ताकि हम वक्त पर दक्षिणी ध्रुव पहुंच सकें और आयोजन कर पाएं. हमने रात में अहसास किया कि अब कुछ ही घंटे बचे हैं और भले ही थ्योरी में यह संभव दिख रहा हो लेकिन प्रैक्टिकल तौर पर यह मुमकिन नहीं था."
इस बीच नॉर्वे के प्रधानमंत्री यंस स्टोल्टेनबर्ग भी साउथ पोल पर पहुंच गए. खिली धूप लेकिन चिलचिलाती सर्दी के बीच उन्हें बर्फ के बीच स्कीइंग करते देखा गया. नॉर्वे टेलीविजन ने इसका प्रसारण भी किया.'b#
बर्फ से प्यार
सौ साल बाद भले ही यह काम आसान लग रहा हो लेकिन सीमित तकनीकी जानकारी के साथ 1911 में इस बात की कल्पना करना भी मुश्किल रहा होगा. कई बड़े लोगों की तरह आमुंडसेन भी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई बीच में छोड़ चुके थे. बर्फ से प्यार हो चुका था. दिमाग में दुनिया को नाप देने की धुन समा चुकी थी. अपने वक्त के अंग्रेज खोजकर्ता रॉबर्ट एफ स्कॉट से मुकाबला चल रहा था. दोनों ही दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले शख्स बनना चाहते थे.
इस लड़ाई में आमुंडसेन ने वह किया जो मोहब्बत और जंग में जायज होता है. खुफिया तरीके से अपनी योजना पर अमल करते हुए 19 अक्तूबर को पांच पुरुषों और 52 कुत्तों का दल दक्षिणी ध्रुव की ओर निकल गया. जमा देने वाली सर्दी और सीमित रसद के बीच 14 दिसंबर, 1911 को पांच लोग और 16 कुत्ते दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गए. बाकी के कुत्तों का इस्तेमाल भूख मिटाने के लिए कर लिया गया. आमुंडसेन इतिहास बना चुके थे.
उधर, स्कॉट के खेमे ने भी एक नवंबर को चढ़ाई शुरू कर दी. लेकिन उन्हें दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में ज्यादा वक्त लग गया. 17 जनवरी को जब वे पहुंचे, तो पता चला कि आमुंडसेन वहां पहले ही पहुंच चुके थे. फिर भी स्कॉट ने अपनी एक तरफ की यात्रा पूरी कर ली. लौटते वक्त भूख, बुखार और हड्डियों को गला देने वाली सर्दी से नहीं जीत पाए. स्कॉट लौटते वक्त मारे गए.
दुस्साहसी आमुंडसेन
पर आमुंडसेन का दुस्साहसी अभियान जारी रहा. छह साल बाद उन्होंने दुनिया के उत्तरी हिस्से का शिकार करने का फैसला किया और लंबी यात्रा पर निकल गए. वह नॉर्थ पोल पर पहुंच कर ही रुके. और इस तरह दोनों ध्रुवों की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति बन गए. एक दुस्साहसी खोजकर्ता दुनिया में अलग पहचान बना चुका था. लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह शख्सियत अचानक गुमनाम हो जाएगी.
1928 में नॉर्थ पोल से लौट रहा एक विमान लापता हो गया. इसकी खोज के लिए जो दल गया, उसमें 55 साल के आमुंडसेन भी थे. लेकिन उनका विमान भी कोहरे के बीच अचानक गायब हो गया. समझा जाता है कि खराब मौसम ने विमान को लील लिया और आमुंडसेन भी उसमें मारे गए. लेकिन भारी तलाशी के बाद भी कभी उनका शव बरामद नहीं किया जा सका. लगभग सौ साल बाद 2003 में भी उनके अवशेष खोजने की कोशिश हुई, जो नाकाम साबित हुई. आमुंडसेन भले ही अचानक गायब हो गए लेकिन उनका साहस लोगों के साथ है.
रिपोर्टः डीपीए, रॉयटर्स/ए जमाल
संपादनः महेश झा